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स्काईमेट का अनुमान, 2017 में मॉनसून रहेगा कमजोर, औसत से कम बारिश और 'एल नीन्यो' का भी होगा खतरा

भारत में खरीफ की खेती अधिकतर दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून पर ही आधारित होती है। ऐसे में अगर औसत से 5 फीसदी कम बारिश हुई तो खेती पर असर पड़ना स्वाभाविक है।

Updated on: 28 Mar 2017, 10:25 AM

highlights

  • भारत में इस साल औसत से कम बारिश के आसार
  • स्काईमेट ने कमजोर मॉनसून की जताई आशंका

नई दिल्ली:

2017 मॉनसून को लेकर पहला अनुमान सामने आ गया है। स्काईमेट ने कमजोर मॉनसून की आशंका जताया है। इस बार मॉनसून में औसत (LPA) के 95 फीसदी ही बारिश का अनुमान है।

भारत के मॉनसून के लिए यह LPA 887 एमएम है और इस बार इससे कम बारिश की आशंका है। इसके अलावा 'एल नीन्यो' की भी आशंका जताई गई है। स्काईमेट का यह अनुमान भारत के लिए चिंता का विषय है।

ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में होने वाली 70 फीसदी बारिश जून से लेकर सितंबर माह तक होती है। स्काईमेट का यह अनुमान कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरनाक संकेत है, क्योंकि खरीफ की फसल की बुआई मॉनसून की बारिश के भरोसे होती है।

भारत में खरीफ की खेती अधिकतर दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून पर ही आधारित होती है। ऐसे में अगर औसत से 5 फीसदी कम बारिश हुई तो खेती पर असर पड़ना स्वाभाविक है।

पूर्वी भारत के हिस्सों खासकर ओडिशा, झारखंड और पश्चिमी बंगाल में अच्छी बारिश की संभावना जताई गई है। स्काईमेट ने अपने अनुमान में 'एल नीन्यो' के खतरे की भी आशंका जताई है।

स्काईमेट के मुताबिक मॉनसून के सेकंड हाफ में 'एल नीन्यो' की 60 फीसदी आशंका जताई गई है। इसकी वजह से मॉनसून के लंबी अवधि के 3 महीनों यानी जुलाई, अगस्त और सितंबर में कम बारिश का अनुमान जताया गया है।

जानें क्या है एल नीन्यो

'एल नीन्यो' स्पेनिश भाषा का शब्द है, जिसका मतलब होता है 'छोटा लड़का'। पहली बार 1923 में सर गिल्बर्ट थॉमस वॉकर ने एल-नीन्यो की स्टडी की थी। अल-नीन्यो के कारण दुनिया में बाढ़, सूखा जैसे अनेक मौसमी बदलाव आते हैं।

अगर समझने के लिए कहें तो हवाओं की दिशा बदलने, कमजोर पड़ने और समुद्र के सतही पानी के तापमान में बढ़ोतरी में एल-नीन्यो की खास भूमिका है। इससे बारिश के प्रमुख क्षेत्र बदल जाते हैं।

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इस कारण दुनिया के ज्यादा बारिश वाले इलाकों में कम और कम बारिश वाले इलाकों में ज्यादा बारिश होने लगती है। हालांकि कभी-कभी ऐसा नहीं भी होता है। हर 10 साल में 2 या 3 बार एल-नीन्यो की बदौलत प्रशांत महासागर के पानी का तापमान कहीं-कहीं 10 से. तक बढ़ जाता है।

एल नीन्यो के कारण साउथ अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया से लेकर साउथ-ईस्ट एशिया तक की ओर बहने वाली हवाओं की रफ्तार बेहद धीमी पड़ जाती है और इन क्षेत्रों में सूखे के हालात बन जाते हैं।