LGBT मामले में धारा 377 की संवैधानिक वैधता की जांच करेगा सुप्रीम कोर्ट
एलजीबीटी (लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल और ट्रांसजेंडर) समुदाय की एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में तीन जजों के बेंच ने केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है।
highlights
- एलजीबीटी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को भेजा नोटिस
- धारा 377 के संवैधानिक वैद्यता की होगी जांच: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली:
एलजीबीटी (लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल और ट्रांसजेंडर) समुदाय की एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में तीन जजों के बेंच ने केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है।
सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस भेजकर केंद्र सरकार से इस पर स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। याचिका पर सुनवाई के दौरान तीन जजों की बेंच ने कहा कि संवैधानिक वैद्यता के अनुसार धारा 377 की जांच की जाएगी।
कोर्ट के इस कदम पर एलजीबीटी समुदाय के लोगों ने खुशी जाहिर की है। उन्होंने कहा, 'हम इसका स्वागत करते हैं। हमें अभी भी भारतीय न्याय व्यवस्था से उम्मीद हैं। हमलोग 21 वीं शताब्दी में रह रहे हैं। सभी राजनेताओं और राजनीतिक दलों को इस पर अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए और व्यक्तिगत तौर ऐसे लोगों के सेक्शुअल ओरिएंटेशन का समर्थन करना चाहिए।'
We need to welcome it. We still have hope from Indian judiciary. We are living in 21st century. All politicians & political parties must break their silence & support individual's sexuality: Akkai, LGBT Activist on SC bench to reconsider constitutional validity of section 377 pic.twitter.com/pXWSL7TMTW
— ANI (@ANI) 8 January 2018
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का कांग्रेस ने भी स्वागत किया है। महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुष्मिता देव ने कहा, 'हर व्यक्ति को अपने इच्छा अनुसार जीवन जीने की आजादी है।'
Congress welcomes Supreme Court's decision. Everybody has equal right to live life the way they want: All India Mahila Congress President Sushmita Dev on SC bench to reconsider constitutional validity of section 377
— ANI (@ANI) 8 January 2018
(file pic) pic.twitter.com/wb91vPH9uQ
इससे पहले एलजीबीटी समुदाय के 5 लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि अपने सेक्शुअल ओरिएंटेशन को लेकर वो पुलिस की वजह से डर के साये में रहते हैं। गौरतलब है कि अभी धारा 377 के मुताबिक समलैंगिकता ( पुरुष-पुरुष के बीच संबंध और महिला-महिला के बीच संबंध) अपराध के दायरे में आता है।
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इस मामले में पहले सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शुअल ओरिएंटेशन को निजता के अधिकार के तहत महत्वपूर्ण अंग माना था। सेक्शुअल ओरिएंटेशन को निजता का अहम अंग करार देने के बाद अब LGBT समुदाय की उम्मीद बढ़ गई थी।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान धारा-377 यानी होमोसेक्शुअलिटी को अपराध करार दिया था। समाज के छोटे हिस्से LGBT (लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल और ट्रांसजेंडर) की ये बात है कि निजता का अधिकार जीवन के अधिकार का हिस्सा है।
माना जा रहा था कि कोर्ट के इस कमेंट के बाद समलैंगिकता को अपराध मानने वाले आईपीसी के सेक्शन 377 को खत्म करने का रास्ता साफ हो सकता है। फिलहाल समलैंगिकता को लेकर सुप्रीम कोर्ट की लार्जर बेंच में सुनवाई चल रहा है।
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