दागी नेताओं पर स्पेशल कोर्ट बनाए केंद्र, 6 हफ्तों के भीतर विस्तृत योजना सौंपने का आदेश: SC
सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग ने दागी सांसदों और विधायकों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाए जाने की वकालत की है।
highlights
- सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग ने दागी सांसदों और विधायकों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाए जाने की वकालत की है
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दागी नेताओं से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का गठन किया जाना चाहिए
नई दिल्ली:
सांसदों और विधायकों पर आपराधिक मामलों को लेकर सख्ती दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस तरह के मामलों की तेजी से सुनवाई सुनिश्चित किए जाने के लिए केंद्र सरकार को विशेष अदालतों के गठन का आदेश दिया है।
बुधवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दागी नेताओं से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का गठन किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने दोषी ठहराए गए नेताओं को सजा पूरी होने के बाद छह साल के लिए चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किए जाने वाले जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान को असंवैधानिक करार देने के लिये वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि दागी नेताओं के केस की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट बनने चाहिए और इसमें कितना वक्त और फंड लगेगा, यह केंद्र हमें 6 हफ्तों में बताएं।
सुप्रीम कोर्ट नेताओं के मुकदमों को साल भर के भीतर निपटाए जाने के पक्ष में दिखा और इसके जवाब में सरकार ने कहा कि उसे करीब 1000 विशेष कोर्ट की ज़रूरत होगी।
सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग ने दागी सांसदों और विधायकों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाए जाने की वकालत की है।
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केंद्र के जवाब के बाद हम यह देखेंगे कि जजों की नियुक्ति कैसे की जानी है। मामले की अगली सुनवाई 13 दिसंबर को मुकर्रर की गई है।
याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को भी कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि बिना आंकड़ों के आपने इस बारे में याचिका कैसै दाखिल कर दी? क्या आप यह चाहते हैं कि हम केवल कागजी फैसला देकर साबित कर दें कि भारत में राजनीति का अपराधीकरण हो चुका है।
सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका पर मंगलवार को भी बहस हुई थी।
इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से 2014 के चुनाव के दौरान 1581 उम्मीदवारों के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों के बारे में पूछा। कोर्ट ने पूछा कि इनमें से कितने मामलों में सजा हुई, कितने लंबित हैं और इनकी सुनवाई में कितना समय लगेगा।
कोर्ट ने 2014 से 2017 के बीच जनप्रतिनिधियों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले और उनके निपटारे की पूरी जानकारी भी कोर्ट से मांगी।
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