logo-image

LGBT होना गुनाह नहीं लेकिन यह प्रकृति और भारतीय समाज के खिलाफ: RSS

सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को IPC 377 के खिलाफ दायर याचिका पर ऐतिहासिक सुनवाई करते हुए समलैगिंकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है।

Updated on: 06 Sep 2018, 04:45 PM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को IPC 377 के खिलाफ दायर याचिका पर ऐतिहासिक सुनवाई करते हुए समलैगिंकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है। समलैंगिकता के अपराध के दायरे से बाहर होने के बाद इस पर राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (RSS) ने कहा है कि फैसले के मुताबिक हम भी इसे अपराध नहीं मानते लेकिन यह समाज के खिलाफ है।

आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख ने धारा 377 आए फैसले को लेकर कहा, 'सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हम भी इसे अपराध नहीं मानते। लेकिन समान लिंग में शादी और रिश्ता न तो प्राकृतिक है और न ही सामाजिक इसलिए हम इसका समर्थन नहीं करते हैं।'

गौरतलब है कि धारा 377 पर आज सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इस आपराधिक दायरे से बाहर कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, सेक्शुअल ओरिएंटेशन (यौन रुझान) बयॉलजिकल है। इस पर रोक संवैधानिक अधिकारों का हनन है। कोर्ट ने कहा LGBT समुदाय के अधिकार भी अन्य लोगों की तरह हैं।'

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि, हमारी विविधता को स्वीकृति देनी होगी। व्यक्तिगत पसंद को सम्मान देना होगा। एलजीबीटी को भी समान अधिकार है। राइट टु लाइफ उनका अधिकार है और यह सुनिश्चित करना कोर्ट का काम है।

2013 का अपना ही फैसला पलटा 
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला देकर दिसंबर 2013 को सुनाए गए अपने ही फैसले को पलट दिया है। इस साल सीजेआई दीपक मिश्रा, के साथ जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संवैधानिक पीठ ने 10 जुलाई को मामले की सुनवाई शुरु की थी और 17 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

क्या है धारा 377

भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के अनुसार किसी पुरूष, स्त्री या पशुओं से अप्रकृतिक रूप से संबंध बनाना अपराध है। इस अपराध के लिए दोषी को दस साल कैद के साथ आर्थिक दंड की सजा का प्रावधान है। इस धारा के अनुसार अगर कोई व्यस्क आपसी सहमति से भी समलैंगिक संबंद बनाते हैं तो यह अपराध होगा।