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Video सब दिखता है: अजमेर के इस विद्यालय के दिव्यांगों के लिए आवाज निकालती क्रिकेट गेंद किसी संगीत से कम नहीं

अगर कभी आपको 'विकलांग' शब्द सुनकर किसी बेबस और बेसहारा इंसान की याद आती है तो अब आपको अपनी सोच बदलने की कोशिश करनी होगी।

Updated on: 30 Aug 2017, 08:14 PM

नई दिल्ली:

अगर कभी आपको 'विकलांग' शब्द सुनकर किसी बेबस और बेसहारा इंसान की याद आती है तो अब आपको अपनी सोच बदलने की जरूरत है। 

अब इन दिव्यांगों को सहानुभूति की नहीं बल्कि साथ की जरूरत है। न्यूज़ नेशन का खास कार्यक्रम 'सब दिखता है' एक ऐसी ही पहल है जिससे इन दिव्यांगों के प्रति समाजिक और राजनीतिक तौर पर लोगों को जगरुक करने का प्रयास है।

इस कास कार्यक्रम को देखकर आपको एहसास होगा कि विकलांगता सिर्फ़ दिमाग की उपज है।

आज हम आपको ऐसे ही पक्के इरादे और दृढ़ विश्वास की एक कहानी बताने जा रहे है। राजस्थान में अजमेर के राजकीय उच्च माध्यमिक अन्ध विद्यालय एक ऐसी जगह जहां क्रिकेट देखकर नहीं सुकर खेला जाता है।

यहां क्रिकेट खेलने वालों की आंखों में रोशनी नहीं है। दिव्यांगों के इस क्रिकेट मैच को देखकर आपको बिलकुल नहीं लगेगी कि यहां किसी दूसरे मैच की तरह खेल रोमांच नहीं है। खिलाड़ी जिस हौसले से मैच के खेलते हैं उसी तरह अन्य खिलाड़ी उनका हौसला अफजाई करते हैं।

इस अन्ध विद्यालय में कई शानदार दिव्यांग खिलाड़ी हैं। इन्ही में एक हैं इस्लाम अली।  इस्लाम आंखों से देख नहीं सकते लेकिन यह कमी उनके हुनर के रास्ते में बाधा नहीं बनी और अब तक 22 राज्यों में राजस्थान के लिए खेल चुके हैं। इस्लाम अली पिछले 6 वर्षों से राजस्थान टीम के कप्तान भी हैं।

इस्लाम अली कहते हैं, 'हम अंडर आर्म बॉलिंग करते हैं और उसी की आवाज को सुनकर बैट्समैन हिट करते हैं और बॉल की आवाज को सुन कर ही फिल्डर उसे पकड़ते हैं।'

इस्लाम अकेले ऐसे खिलाड़ी नहीं हैं। इनके अलावा मोहम्मद आजम बृजराज मीणा, जुगल किशोर जैसे कई प्रतिभाशाली क्रिकेट खिलाड़ी इस विद्यालय में हैं।

मोहम्मद आजम का कहना है कि, 'आसान नहीं होता है खेलना, मालिक एक चीज लेता है तो कई चीज देता है। बॉल को सुन कर खेलते हैं। बृजराज मीणा की बातों से उनका आत्म विश्वास साफ झलकता है। वह कहते हैं- तीनों चीजें करता हूं - बैटिंग, फिल्डिंग, बॉलिंग। आगे इंटरनेशनल लेवल तक खेलने की इच्छा हैं। दुआएं रहीं तो जरूर खेलेंगे।'

दिव्यांगों के क्रिकेट में भी कई सख्त नियम होते हैं जिसके बारे में इस्लाम बताते हैं, 'इस क्रिकेट के कुछ नियम भी होते हैं। नॉर्मल क्रिकेट जैसा ही होता है हालाकि इसमें तीन कैटेगरी होती है - बी 1 प्लेयर होते हैं जो चार होते हैं - जो बिल्कुल भी नहीं देख सकते हैं जैसा कि मैं हूं। उनका एक रन दौड़ने पर 2 रन काउंट होता है। बी 2 कटेगरी वो होती है तो 6 से 8 मीटर की दूरी पर देख सकते हैं और बी 3 प्लेयर वो होते हैं जो 11 से 16 मीटर की दूरी पर देख सकते हैं।'

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क्रिकेट इनकी अंधेरी जिंदगी में रोशनी की तरह है और आवाज निकालती क्रिकेट गेंद इनके लिए किसी संगीत से कम नहीं।इन खिलाड़ियों को क्रिकेट खेलते देखकर यही लगता है कि हौसला हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं। यह लोग साबित करते हैं। आपके पास जज्बा है तो कुछ भी असंभव नहीं है।

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