RSS और BJP ने सबरीमाला पर कब्जा जमा लिया, पुलिस बनी रही मूकदर्शक : कांग्रेस
कांग्रेस पार्टी ने बुधवार को कहा कि सबरीमाला मंदिर खुलने के 24 घंटे के दौरान संघ परिवार ने मंदिर को स्पष्ट रूप से अपने कब्जे में ले लिया था, लेकिन पुलिस मूकदर्शक बनी रही।
तिरुवनंतपुरम:
कांग्रेस पार्टी ने बुधवार को बड़ा आरोप लगाते हुए कहा कि सबरीमाला मंदिर खुलने के 24 घंटे के दौरान संघ परिवार ने मंदिर को स्पष्ट रूप से अपने कब्जे में ले लिया था, लेकिन पुलिस मूकदर्शक बनी रही. विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने बुधवार को संवाददाताओं से कहा, 'सरकार और पुलिस बिल्कुल विफल रहीं क्योंकि एक दिन बाद कल (मंगलवार को) जब मंदिर रात 10 बजे बंद हुआ, तब तक भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ताओं ने जो चाहा, आखिरकार वही हुआ.'
उन्होंने कहा, 'पुलिस मूकदर्शक बनी रही जबकि इन ताकतों (बीजेपी, आरएसएस) ने मंदिर पर कब्जा बनाए रखा.' मंदिर सोमवार को सुबह पांच बजे खुला और मंगलवार को रात 10 बजे बंद हुआ.
विपक्ष के नेता ने यह भी कहा कि बीजेपी और आरएसएस ने 50 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को धमकाने के साथ-साथ सबरीमाला को कवर कर रहे मीडियाकर्मियों पर भी हमला किया, इन सबके बावजूद पुलिस मूकदर्शक बनी रही.
उन्होंने कहा कि दक्षिणपंथी समूहों ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वे मंदिर में 10 साल से 50 साल तक की उम्र की महिलाओं को प्रवेश करने की अनुमति नहीं देंगे, जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने 28 सितंबर को अपने आदेश में कह रखा है कि मंदिर में सभी उम्र वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की इजाजत देनी चाहिए.
इसके अलावा सीपीएम के राज्य सचिव कोदियरी बालाकृष्णन ने कहा कि संघ परिवार जबरन तरीके से महिलाओं को परेशान कर दंगे भड़काने की कोशिश कर रहा था. उन्होंने कहा कि संघ के लोग हरसंभव ऐसी कोशिश कर रहे थे जिससे मंदिर में महिलाएं न जा पाएं.
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सीपीएम नेताओं ने राज्य सरकार से मांग की है कि सबरीमाला में दंगे की स्थिति उत्पन्न करने के लिए बीजेपी राज्य अध्यक्ष के खिलाफ केस दर्ज किया जाए.
बता दें कि भगवान अयप्पा मंदिर के सोमवार की शाम 5 बजे खोले जाने के बाद भक्तों ने देर रात व मंगलवार की सुबह हिंसक प्रदर्शन किए जब उन्होंने 10-50 आयु वर्ग की महिलाओं के मंदिर की तरफ बढ़ते देखा.
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पिनाराई विजयन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 28 सितंबर के फैसले का पालन करने का वादा किया था लेकिन फिर भी इस पर अमल नहीं हो सका है. शीर्ष अदालत ने सभी आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने के पक्ष में फैसला सुनाया था.
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