logo-image

नोटबंदी के बाद सहकारी बैंकों में घोटालों का RBI के पास नहीं है कोई आंकड़ा: RTI

अनिल गलगली ने आरटीआई के तहत 8 नवम्बर से 10 दिसम्बर तक सहकारी बैंकों के कथित अनियमितता और भ्रष्टाचार से संबंधित जानकारी मांगी थी।

Updated on: 16 Jan 2017, 10:01 PM

highlights

  • आरटीआई से 8 नवम्बर से 10 दिसम्बर तक सहकारी बैंकों से संबंधित जानकारी मांगी थी
  • पुराने नोटों को बदलने के क्रम में राज्य और जिला सहकारी बैंकों में बड़े पैमाने पर की गई धांधली

नई दिल्ली:

आरटीआई (सूचना के अधिकार) ने सोमवार को खुलासा किया कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पास नोटबंदी के बाद पुराने नोटों में सहकारी बैंकों की कथित संलिप्ता का कोई भी आंकड़ा नहीं है। 

प्रमुख आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने आरटीआई से 8 नवम्बर से 10 दिसम्बर तक सहकारी बैंकों के कथित अनियमितता और भ्रष्टाचार से संबंधित जानकारी मांगी थी।

गलगली ने कहा, 'आरटीआई के तहत मिले जवाब के अनुसार ऐसा नहीं लगता है कि पुराने नोटों को बदलने के क्रम में राज्य और जिला सहकारी बैंकों के बड़े पैमाने पर की गई धांधली के निष्कर्ष के संबंध में आरबीआई के पास कोई आंकड़ा है।'

और पढ़ें: आयकर विभाग के पास नहीं है अपने कर्मचारियों का ब्योरा!

बता दें कि नोटबंदी के 6 दिन बाद केंद्र सरकार ने राज्य और जिला सहकारी बैंकों को अमान्य नोट बदलने और नए नोट के वितरण की अनुमति देने के फैसले को अचानक पलट दिया था। केंद्र सरकार के इस फैसले से सहकारी बैंकों पर निर्भर लाखों किसान, ग्रामीण और अर्ध ग्रामीण लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए थे। इससे राजनीतिक हंगामा भी हुआ था।

और पढ़ें: आयकर विभाग ने कहा, नोटबंदी के बाद सहकारी बैंकों ने कालेधन को खूब किया सफेद

गलगली ने कहा, 'मैंने बीजेपी नेताओं से सहकारी बैंकों पर लगाए गए आरोपों की जमीनी हकीकत के बारे में तथ्यों की जानकारी मांगी थी, जिससे गैर शहरी लोग बुरी तरह प्रभावित हुए थे।'

सूचना के अधिकार के तहत सहकारी बैंकों में कथित अनियमितताओं, घोटालों, के आंकड़ों की मांग राज्यों, बैंकों के नामों के साथ की गई थी। इसके साथ ही दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की की मांग की गई थी।

और पढ़ें: नोटबंदी के बाद महज 5 दिनों में मालाबार सहकारी बैंक में जमा हुए 169 करोड़ रुपये जब्त

भारतीय रिजर्व बैंक के लोक सूचना अधिकारी ए.जी.राय ने कहा कि उनके पास शीर्ष राज्य सहकारी और जिला सहकारी बैंकों के आंकड़े नहीं हैं, जबकि शहरी सहकारी बैंकों के बारे में आंकड़े कहीं और से उपलब्ध हो सकते हैं।

गलगली के अनुसार, ऐसा प्रतीत होता है कि सबसे जटिल नेटवर्क वाले वित्तीय संस्थान सहकारी बैंकिंग के बारे में फैसला महज अफवाहों के आधार पर किया गया था, जबकि सहकारी बैंक भारत की बड़ी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।