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रामविलास पासवान की यह 'आदत' बीजेपी को कहीं लोकसभा चुनाव में मुश्किल में ना डाल दे

लोकजनशक्ति पार्टी इन दिनों बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है. बिहार में सीट शेयरिंग को लेकर एलजेपी बीजेपी पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है.

Updated on: 21 Dec 2018, 09:52 AM

नई दिल्ली:

लोकजनशक्ति पार्टी इन दिनों बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है. बिहार में सीट शेयरिंग को लेकर एलजेपी बीजेपी पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) बीजेपी का दामन झटकर महागठबंधन में शामिल हो गया. आरएलएसपी के बाद एलजेपी अध्यक्ष रामविलास पासवान के भी तेवर पूरी तरह बदल चुका है. अब पासवान और उनके बेटे चिराग पासवान दोनों बीजेपी पर दबाव बनाना शुरू कर दिए हैं कि अगर सीट को लेकर जल्दी कुछ फैसला नहीं किया गया तो नतीजा नुकसानदेय हो सकता है.

रामविलास पासवान की तरह से उठाया गया ऐसा कदम पहला नहीं है. इससे पहले भी वो सत्ता के आसपास बने रहने के लिए बगावती कदम उठा चुके हैं. यू कहें तो रामविलास पासवान को आदत है सत्ता के अंदर बने रहने की. दलित राजनीति के प्रमुख नेताओं में से एक रामविलास पासवान पहली बार केंद्र में उस वक्त मंत्री बने जब भारत में संयुक्त मोर्चा की सरकार थी. देवेगौड़ा सरकार में रामविलास पासवान रेल मंत्री थे. वो 1996-1998 तक रेल मंत्री की बागडोर संभाले. लेकिन साल 2000 में जनता दल (यूनाइटेड) में फूट पड़ी तो राम विलास पासवान ने अलग पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी बना ली. इसके बाद जब अटल बिहार वाजपेयी की अगुवाई में बीजेपी की सरकार केंद्र में विराजमान हुई तो रामविलास पासवान ने पैंतरा बदला और उस सरकार में शामिल हो गए.

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अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में शामिल होने के बाद रामविलास पासवान को तोहफे के स्वरूप में सूचना एवं प्रचार मंत्रालय मिला. यह मंत्रालय उनके हाथ में एक साल रहा यानी 1999 से 2000 तक वो इस पद पर विराजमान रहें. लेकिन बाद में उनसे यह मंत्रालय छिन लिया गया. जिसके लेकर वो काफी दिनों तक परेशान रहे. हालांकि 2001 में उन्हें अटल जी ने केंद्रीय खनिज मंत्री बनाया, लेकिन पहले मंत्रालय के छिन जाने से उनकी नाराजगी कम नहीं हुई थी. 2002 में जब गोधरा कांड हुआ तब राम विलास पासवान ने मंत्री पद के साथ-साथ एनडीए से भी ये कहते हुए रिश्ता तोड़ लिया कि ‘हम दंगा कराने वालों के पक्ष में रहने वाली सरकार के घर का सदस्य बनकर नहीं रह सकते हैं.

उस वक्त तक पासवान मौसम का रूख पहचान गए थे और एनडीए का साथ छोड़कर कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए में शामिल हो गए. 2004 में जब यूपीए की सरकार बनी तो केंद्रीय रसायन एवं उवर्रक मंत्री बने. हालांकि वो यह मंत्रालय काफी मान मनौव्वल के बाद ग्रहण किया, क्योंकि वो रेल मंत्री बनना चाहते थे, लेकिन लालू यादव को विभाग दे दिया गया था, जिसके बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह कई दिनों का पासवान को मनाया तब जाकर वो उवर्रक मंत्री का पदभार संभाला.

लालू यादव और राम विलास पासवान 2009 लोकसभा तथा 2010 विधानसभा चुनाव एक साथ लड़े पर एनडीए के हाथों बुरी तरह पराजित होकर जल्द ही अलग हो गए. रामविलास पासवान खुद को चुनावी मौसम वैज्ञानिक बताते हैं, इसलिए हवा का रूख जिस तरफ होता है वो उधर के हो जाते हैं. लालू यादव से अलग होने के बाद पासवान ने कहा था कि 2014 में केंद्र में एनडीए की सरकार बनने जा रही है. इसलिए बिना मौका गंवाए वो उस बीजेपी के साथ हो गए जिस पर दंगा का आरोप लगाते हुए कभी उसे छोड़ा था. दलितों का जनाधार पाने के लिए बीजेपी ने भी एलजेपी को अपने साथ लेने में हिचकिचाया नहीं. जब केंद्र में मोदी सरकार आई तो रामविलास पासवान को केंद्रीय खाद्य मंत्री बनाया गया.

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पांच राज्यों में आए विधानसभा चुनाव के नतीजे को देखते हुए रामविलास पासवान के अंदर का मौसम वैज्ञानिक एक बार फिर से जिंदा हो उठा है. उन्हें लग रहा है कि एनडीए की नाव डूबने वाली है इसलिए वो अपने बेटे के साथ मिलकर बीजेपी को अपनी शर्तों पर झुकाना चाहते हैं. रामविलास को लग रहा है कि उनसे ज्यादा अब नीतीश कुमार को बीजेपी ज्यादा तवज्जो दे रही है. वो चाहते हैं कि सीट बंटवारे के मामले में फैसला जल्द हो जाए. ताकि अगर उनके मन के मुताबिक सीट नहीं मिलती है तो वो महागठबंधन में अपनी जगह बना सके.

अगर आरएलएसपी के बाद एलजेपी भी बीजेपी का साथ छोड़ती है तो बिहार में एक बड़ा झटका लग सकता है, क्योंकि रामविलास की पार्टी एलजेपी दलितों के बीच अपनी अलग पहचान बनाकर कर रखी हुई है. अगर वो अलग होती है तो बिहार में बीजेपी और जेडीयू एक साथ बच जाएगी जिसका असर लोकसभा चुनाव में नजर आएगा. शायद यही वजह है कि चिराग पासवान और रामविलास से बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी मुलाकात की और अब अरुण जेटली भी मिलेंगे.