logo-image

राजस्थान: अध्यादेश पर झुकी वसुंधरा सरकार, मंत्रियों से कहा- करें पुनर्विचार

राजस्थान सरकार के नए लोकसेवकों के संरक्षण विधेयक को लेकर हो रहे चौतरफा विरोध के चलते सरकार विधेयक में कुछ बदलाव कर सकती है।

Updated on: 24 Oct 2017, 12:05 AM

नई दिल्ली:

राजस्थान सरकार के नए लोकसेवकों के संरक्षण विधेयक को लेकर हो रहे चौतरफा विरोध के चलते सरकार विधेयक में कुछ बदलाव कर सकती है। बता दें कि इस अध्यादेश का कांग्रेस समेत कई सामाजिक संगठनों ने विरोध किया था।

अध्यादेश पर चौतरफा विरोध झेल रही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने मंत्रिमंडल से इसमें पुनर्विचार करने के लिए कहा है। सूत्रों के मुताबिक सोमवार शाम को सीएम वसुंधरा ने अपने आवास पर मंत्रियों से मुलाकात की।

इस दौरान बीजेपी विधायक भवानी सिंह राजावत, अलका गुर्जर ने भी इस तरह के संकेत दिए हैं कि बिल में बदलाव संभव है।

वहीं गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने विधेयक को सदन की मेज पर जब रखा था, इस दौरान उन्होंने कहा था कि, अभी तो विधेयक सदन की मेज पर आया है कुछ गुंजाइश होगी तो फिर बदलाव भी संभव है।

और पढ़ें: राहुल का मोदी पर हमला, 'गुड्स एंड सिंपल टैक्स' नहीं, यह 'गब्बर सिंह टैक्स' है

लेकिन चौतरफा विरोध के बाद यह तय माना जा रहा है कि सरकार विधेयक में फेरबदल कर सकती है। बता दें कि सबसे ज्यादा विरोध जिन बिंदुओं पर हो रहा है सरकार उन पर फिर से विचार कर सकती है। 

इनमें 180 दिन की अवधि और मीडिया पर खबरों की पाबन्दी पर सरकार पुनर्विचार कर सकती है। अब सभी की निगाहें कल होने वाली विधानसभा की कार्रवाई पर टिकी हुई हैं।

कांग्रेस ने किया विरोध

इस बीच कांग्रेस विधायकों ने विधानसभा के बाहर इस अध्यदेश के खिलाफ प्रदर्शन किया। कांग्रेस नेताओं ने जयपुर में विधानसभा के बाहर वसुंधरा राजे सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और अध्यादेश को लोकतंत्र की हत्या बताया।

कांग्रेस की ओर से सचिन पायलट ने अपना विरोध जताते हुए कहा कि सरकार अपना भ्रष्टाचार छिपाना चाहती है और पार्टी इस संबंध में राष्ट्रपति के पास जाएंगी।

और पढ़ें: मनीष तिवारी बोले- नरेंद्र पटेल रिश्वतखोरी मामले की जांच SC का जज करे

हाई कोर्ट भी पहुंचा मामला

इस बीच सीनियर वकील एके जैन ने हाईकोर्ट में 'दंड विधियां (राजस्थान संशोधन) अध्यादेश, 2017' के खिलाफ जनहित याचिका दायर कर दी है।

बता दें कि वसुंधरा राजे सरकार की ओर से लाए गए इस अध्यादेश के मुताबिक कोई भी व्यक्ति जजों, अफसरों और लोक सेवकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं करा सकेगा और न ही रिपोर्टिंग की जा सकेगी।

यही नहीं, मजिस्ट्रेट बिना सरकार की इजाजत के न तो जांच का आदेश दे सकेंगे न ही प्राथमिकी का दर्ज कराने का आदेश दे सकेंगे। ऐसा करने से पहले राज्य सरकार से मंजूरी लेनी होगी। वहीं, इस सबके बीच राज्य विधानसभा में यह बिल पेश किया गया। इसके कुछ देर बाद ही सत्र कल तक के लिए स्थगित कर दिया गया है।