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राफेल डील: सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर, अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग, गलत जानकारी सौंपने का आरोप

अर्जी में कहा गया है कि अधिकारियों ने कोर्ट के सामने सीलबंद लिफाफे में राफेल डील पर गलत और भ्रामक जानकारी दी थी और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए जाएं.

Updated on: 18 Feb 2019, 11:06 PM

नई दिल्ली:

राफेल डील मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर भारत सरकार के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए निर्देश देने की मांग की है. अर्जी में कहा गया है कि अधिकारियों ने कोर्ट के सामने सीलबंद लिफाफे में राफेल डील पर गलत और भ्रामक जानकारी दी थी और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए जाएं. याचिका में कहा गया है, 'गलत और कागजात में जानकारियों को छुपाना झूठी गवाही को बयां करता है और साथ ही यह अवमानना भी है क्योंकि कोर्ट के आदेश के बाद कागजात जमा किए गए थे.'

हाल ही में नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (कैग) द्वारा राफेल पर सौंपे गए रिपोर्ट और मीडिया रिपोर्ट के आधार पर इस याचिका को दाखिल किया गया है. साथ ही याचिका में सरकार द्वारा कोर्ट को सौंपी गई 'गलत तथ्यों' की जानकारी भी दी गई है.

याचिका में कहा गया है कि सरकार द्वारा जानकारियों को छुपाया जाना कोर्ट को पूरी तरह तथ्यों से दूर करना है और जिसके कारण इस मामले में दाखिल जनहित याचिकाएं खारिज हुई थी.

सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार द्वारा हस्ताक्षरित राफेल लड़ाकू विमान सौदे की कीमत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार द्वारा प्रस्तावित कीमत से 2.86 फीसदी कम है.

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कैग की रिपोर्ट में एनडीए सरकार द्वारा साइन की गई डील में 36 राफेल लड़ाकू विमानों के वास्तविक मूल्य का खुलासा नहीं किया गया है. हालांकि, रिपोर्ट में कीमत की जांच शामिल है.

इससे पहले सिन्हा, शौरी और भूषण ने जनवरी में राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के मामले में सरकार को क्लीन चिट दिए जाने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार की मांग करते हुए याचिका दायर की थी.

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शीर्ष अदालत ने 14 दिसंबर को सरकार को क्लीन चिट देते हुए कहा था कि इस सौदे की प्रक्रिया में कुछ भी संदेहजनक नहीं है. कोर्ट ने कहा था कि राफेल विमानों की कीमत और राफेल विनिर्माण कंपनी दसॉ द्वारा ऑफसेट साझेदार चुनने की उनकी पसंद पर सवाल करना अदालत का काम नहीं है और पीठ को इस मामले में कुछ भी संदेहजनक नहीं लगा.