गुजरात: कांग्रेस और हार्दिक के बीच 'आरक्षण डील' पर उठे सवाल, BJP ने समझौते को बताया 'मजाक'
गुजरात में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और पाटीदार अमानत आंदोलन समिति के अध्यक्ष हार्दिक पटेल के बीच आरक्षण को लेकर समझौता हो गया।
highlights
- पटेलों का आरक्षण देने के वादे पर जानकारों ने उठाए सवाल
- बीजेपी ने समझौते को बताया धोखेबाजी, कहा ऐसा करना संभव ही नहीं
नई दिल्ली:
गुजरात में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और पाटीदार अमानत आंदोलन समिति के अध्यक्ष हार्दिक पटेल के बीच आरक्षण को लेकर समझौता हो गया।
कांग्रेस ने वादा किया है कि अगर वह सत्ता में आती है तो पाटीदार समुदाय को नौकरी में आरक्षण दिया जाएगा। आरक्षण को लेकर कांग्रेस ने कहा है कि पाटीदारों को आरक्षण देने का सुझाव संविधान के अनुरूप होगा।
हालांकि, इसे लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। बीजेपी ने भी इस 'डील' को मजाक और एक-दूसरे के साथ धोखा करने जैसा बताया है।
पाटीदारों को आरक्षण को लेकर विशेषज्ञों की जो राय है वो आने वाले समय में कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है। विशेषज्ञों के मुताबिक कांग्रेस ने हार्दिक पटेल से जो वादा किया है वो सिर्फ चुनाव से प्रेरित है क्योंकि वास्तविक तौर पर ऐसा करना संभव नहीं है।
विशेषज्ञों ने कहा, सत्ता में आने के बाद अगर कांग्रेस उन्हें आरक्षण देती है तो ये सुप्रीम कोर्ट में कहीं नहीं टिकेगा क्योंकि साल 1992 के एक मामले में कोर्ट ने पहले ही साफ कर दिया है कि आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती। अगर ऐसा हुआ तो सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर फिर से विचार करना पड़ेगा।
साल 1992 के मंडल कमीशन केस में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले सुनाते हुए साफ किया था कि एससी, एसटी, पिछड़ा वर्ग और किसी भी अन्य श्रेणी में आरक्षण की सर्वाधिक सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती है।
कानूनी जानकारों का मानना है कि साल 1992 में सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण को लेकर सुनाया गया फैसला सिर्फ एक सुझाव नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट का एक निर्धारित कानून जैसा है इसलिए इसका उल्लंघन कोई नहीं कर सकता।
गुजरात हाई कोर्ट के वकील गिरीश पटेल ने कहा, 'यहां तक की अगर किसी पिछड़ी जाति को लेकर सर्वेक्षण करवाया जाया तो भी आरक्षण की पात्रता रखने वाले लोग भी इस 50 फीसदी के कोटे में शामिल हैं। इसलिए इसमें किसी अतिरिक्त कोटे की कोई गुंजाइश नहीं है।'
वहीं दूसरे वकील कृष्णकांत वखारिया ने कहा, '50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण सिर्फ संसद में संविधान में संशोधन के जरिए ही लागू किया जा सकता है।' वखारिया ने कहा, 'अगर साल 1992 में सुप्रीम कोर्ट के दिए हुए फैसले को कोई फिर से चुनौती देता है तो ऐसा संभव हो सकता है।'
वखारिया ने कहा, 'हम सभी सुप्रीम कोर्ट ने जो संविधान की व्याख्या की है उसे मानने के लिए बाध्य हैं। 1992 में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में संविधान की व्याख्या करते हुए कहा था, समानता के अधिकार की रक्षा के लिए आरक्षण पर 50 फीसदी की सीमा जरूरी है। अगर इस बाध्यता को नहीं मानी गई तो संविधान में समानता के अधिकार के सिद्धांत का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा।'
इसके साथ ही वखारिया ने आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से ऊपर ले जाने के दो रास्ते भी बताए।
उन्होंने कहा, 'लोकसभा और राज्यसभा में अनुच्छेद 368 के तहत दो तिहाई बहुमत के साथ संविधान में संशोधन करें या 1992 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दाखिल की जाए।' वखारिया ने कहा, 'याचिका में बीते 25 साल के सामाजिक ताने-बाने में बदलाव को इसके लिए आधार बनाया जा सकता है।'
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वहीं वरिष्ठ वकील और देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कांग्रेस और पाटीदार नेताओं के बीच हुए समझौते को मजाक बताया और इसे एक-दूसरे के साथ धोखा करने जैसा बताया।
उन्होंने कहा, 'अब तक मैंने जो बयान देखे हैं, कांग्रेस और हार्दिक परस्पर धोखेबाजी का एक क्लब हैं। देश का कानून बहुत ही स्पष्ट है और यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित किया गया है।
जेटली ने इसके लिए राजस्थान का भी उदाहरण दिया। राजस्थान में भी आरक्षण के मामले में कोर्ट ने कहा था कि 50 फीसदी की सीमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। है।'
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