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सरकार समर्थक होने के आरोपों पर SC ने जताया ऐतराज, कहा-आरोप लगाने वाले कोर्ट आकर देखें, कैसे होता है काम

सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे और फली नरीमन की ओर से उठाए गए सवालों के बाद मामला आगे विचार के लिए संविधान बेंच को सौप दिया है।

Updated on: 05 Oct 2017, 05:09 PM

highlights

  • सरकार समर्थक होने के आरोपों का सुप्रीम कोर्ट ने किया खंडन
  • कोर्ट ने कहा आरोप लगाने वालों को कोर्ट आकर देखना चाहिए, यहां कैसे होता है काम

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट के जज, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट के जजों के बारे में  की  गई टिप्पणी पर नाराजगी ज़ाहिर की है।

जस्टिस चंद्रचूड़ इस बात से भी आहत नजर आए कि कैसे बार एसोसिएशन के सीनियर मेंबर ने जजों पर सरकार का पक्ष लेने का आरोप लगाया।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, बार के एक सीनियर मेंबर ने यहाँ तक कहा कि सुप्रीम कोर्ट में ज़्यादातर  जज सरकार का पक्ष लेने वाले है, उन्हें कोर्ट में आकर देखना चाहिए कि कैसे अदालत ,लोगों के हितों की रक्षा को लेकर सरकार को घेरती है।

सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी इसलिए भी अहम है क्योंकि बुधवार को ही गुजरात हाई कोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट असीम पांड्या ने  सोशल मीडिया पर एक ओपन लेटर  लिखकर जजों पर सरकार के पक्ष में काम करने का आरोप लगाया था।

सोशल मीडिया के ग़लत इस्तेमाल पर कोर्ट की चिंता

सुनवाई के दौरान ही सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया के ग़लत इस्तेमाल पर भी चिन्ता जाहिर की।

कोर्ट ने कहा कि लोग बिना तथ्यों की पड़ताल किये, कोर्ट की कार्यवाही के बारे में ग़लत जानकरी फैलाते हैं। हरीश साल्वे ने भी इस पर सहमति जताते हुए कहा  कि ट्विटर पर गाली-गलौच के चलते उन्होंने अपना ट्वीटर एकाउंट डिलीट कर दिया। सिर्फ सरकार ही नही, बल्कि लोग भी  दूसरों की निजता का हनन कर रहे है।

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आपराधिक मामलों में जांच के दौरान मंत्री/ सरकारी पदों पर बैठे लोगों की बयानबाजी का मसला संविधान बेंच सुनेगी

वही दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच अब ये तय करेगी कि क्या मंत्री या सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों को ऐसे मामलों में  बयान देने से रोका जा सकता है, जिनमे जांच जारी है।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की  बेंच ने  सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे और फली नरीमन की ओर से उठाए गए सवालों के बाद  मामला आगे विचार के लिए संविधान बेंच को सौप दिया है। 

संविधान बेंच को ये तय करना है कि क्या ऐसे संजीदा मामलों में भी मंत्री या सार्वजनिक पद पर बैठे लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई दे सकते हैं।

आज़म खान की टिप्पणी से शुरू हुआ था मामला

दरसअल ये मामला बुलंदशहर गैंगरेप मामले में आज़म खान के बयान से शरू हुआ था। आजम खान ने  गैंगरेप को राजनीतिक साज़िश बताया था।

घटना की नाबालिग पीड़िता ने इसकी शिकायत सुप्रीम कोर्ट से की थी। बाद में कोर्ट ने आज़म का माफीनामा कबूल कर लिया था। लेकिन इसके बाद कोर्ट ने बड़े पद पर बैठे लोगों की आपराधिक मामलों पर बेवजह बयानबाज़ी पर लगाम लगाने के मसले पर भी सुनवाई शुरू की थी।

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