मशहूर कवि और शायर पद्मश्री बेकल उत्साही का हुआ निधन
गंगा जमुनी तहजीब के प्रतीक और मशहूर शायर पद्मश्री बेकल उत्साही का दिल्ली में निधन हो गया। दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली।
नई दिल्ली:
गंगा जमुनी तहजीब के प्रतीक और मशहूर शायर पद्मश्री बेकल उत्साही का दिल्ली में निधन हो गया। दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उन्होंने 88 साल की उम्र में अंतिम सांस ली।
एक जून, 1928 को उतरौला के गांव रमवापुर में जन्मे बेकल उत्साही ने गजल व शेरों-शायरी के क्षेत्र में कई प्रयोग किए। जिसे श्रोताओं ने काफी पसंद किया। बेकल उत्साही को उत्साही उपनाम पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने दिया था। धर्मनिरपेक्षता के समर्थक रहे बेकल उत्साही गंगा जमुनी तहजीब के प्रतीक थे। उनकी ये पंक्तियां भी इस बात को सिद्ध करती हैं।
धर्म मेरा इस्लाम है, भारत जन्म स्थान।
वुजू करूँ अजमेर में, काशी में स्नान।'
उनकी धर्मनिरपेक्षता का एक और उदाहरण देखिये
माँ मेरे गूंगे शब्दों को, गीतों का अरमान बना दे।
गीत मेरा बन जाये कन्हाई, फिर मुझको रसखान बना दे।
एक और उदाहरण देखिये-
मन तुलसी का दास हो अवधपुरी हो धाम,
साँस उसके सीता बसे , रोम - रोम में राम।
उन्होंने न सिर्फ धर्म निरपेक्षता पर शायरी लिखी बल्कि सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ भी मोर्चा खोला
इक दिन ऐसा भी आएगा होंठ-होंठ पैमाने होंगे
मंदिर-मस्जिद कुछ नहीं होंगे घर-घर में मयख़ाने होंगे
जीवन के इतिहास में ऐसी एक किताब लिखी जाएगी
जिसमें हक़ीक़त औरत होगी मर्द सभी अफ़्साने होंगे
उत्साही का असली नाम शफी खान था। अंग्रेज़ी आधीनता के समय में बेकल अंग्रेज हुक्मरानों के खिलाफ युवावस्था में ही राजनीतिक नज़्म व गीत लिखने लगे। जो अंग्रेजों को नागवार गुजरी और बेकल को कई बार इस वजह से जेल भी जाना पड़ा। जेल से ही उन्होंने नातिया शायरी की शुरुआत की जो बेहद पसन्द की गई।
खड़ी हिंदी बोली, उर्दू और अवधी तीनों भाषाओँ में लिखने में सिद्धहस्त रहे हैं। बेकल तुलसी और कबीर को मानते और सम्मान देते थे। एक उदाहरण देखिये-
छिड़ेगी दैरो हरम में ये बहस मेरे बाद,
कहेंगे लोग कि बेकल कबीर जैसा था।
वे कहते थे-
मैं ख़ुसरो का वंश हूँ, हूँ अवधी का संत।
हिंदी मिरी बहार है, उर्दू मिरी बसन्त।
उन्होंने 1952 में विजय बिगुल कौमी गीत और 1953 में बेकल रसिया लिखी। नगमा व तरन्नुम, निशात-ए-जिन्दगी, नूरे यजदां, लहके बगिया महके गीत, पुरवईयां, कोमल मुखड़े बेकल गीत, अपनी धरती चांद का दर्पण इनकी मशहूर किताबें हैं।
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