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सवर्ण आरक्षण को कांग्रेस का साथ लेकिन टाइमिंग को लेकर सरकार की मंशा पर उठाया सवाल

मोदी सरकार के इस फैसले पर कांग्रेस ने तंज कसते हुए कहा कि चुनाव के 100 दिन पहले मोदी को समाज के कमजोर वर्ग याद आ रहे हैं.

Updated on: 07 Jan 2019, 09:01 PM

नई दिल्ली:

केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण को मंजूरी दे दी. सरकार 10 सवर्णों को फीसदी आरक्षण देने के लिए संसद में संविधान संशोधन विधेयक पेश कर सकती है. सरकार के इस फैसले को विपक्षी पार्टयों ने लोकसभा चुनाव से पहले चुनावी स्टंट और जुमला बताया है. सरकार के इस फैसले पर कांग्रेस ने तंज कसते हुए कहा कि चुनाव के 100 दिन पहले मोदी को समाज के कमजोर वर्ग याद आ रहे हैं. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, 'समाज के आर्थिक रूप से कमजोर तबकों को रोजगार के साथ संभावनाएं देने वाले हर कदम का लगातार समर्थन करेंगे. लेकिन सच यह है कि सरकार 4 साल और 8 महीनों के बाद मोदी सरकार आर्थिक रूप से गरीब लोगों के लिए अचानक जगी है.'

सुरजेवाला ने कहा, 'चुनाव (लोकसभा चुनाव) में 100 दिन बांकी है और मोदी जी अब समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को याद कर रहे हैं. इससे सरकार की नियति और वास्तविकता पर खुद-ब-खुद सवाल उठते हैं.'

वहीं कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने 10 फीसदी आरक्षण के कदम को एक 'चुनावी हथकंडा' बताया. सिंघवी ने सवाल किया कि क्या मोदी सरकार के पास संविधान संशोधन के लिए संसद में बहुमत है. सिंघवी ने कहा कि यह कदम मोदी के 2019 चुनाव में हार और डर का संकेत है.

सिंघवी ने ट्विटर पर कहा, 'क्या आपको (सरकार) इसके बारे में 4 साल और 8 महीने में ख्याल नहीं आया? इसलिए, स्पष्ट तौर पर आप ने चुनावी आचार संहिता से 3 महीने पहले इसे चुनावी हथकंडे के तौर पर सोचा है. आप जानते हैं कि आप 50 फीसदी की सीमा को पार नहीं कर सकते, इसलिए ऐसा सिर्फ दिखावे के लिए किया गया है. आप ने असंवैधानिक चीज करने की कोशिश की है.'

उन्होंने कहा, 'अगड़ों को आरक्षण लोगों को बेवकूफ बनाने का हथकंडा है. 50 फीसदी सीमा का कानून बना रहेगा. सरकार सिर्फ राष्ट्र को गुमराह कर रही है. आंध्र प्रदेश व राजस्थान 50 फीसदी आरक्षण को पार करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अदालत द्वारा इसे अमान्य किया गया है.'

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 10 फीसदी आरक्षण मंजूरी देने पर कहा, 'मेरा सवाल है, चुनाव के नाम पर क्या एक सरकार लोगों और बेरोजगार युवाओं को धोखा दे सकती है? उन्हें स्पष्ट करना होगा कि क्या इसे लागू किया जा सकता है या नहीं और क्या है संवैधानिक और कानून तरीके से वैध है या नहीं.'

पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने कानूनी जटिलताओं और समय की कमी का जिक्र करते हुए सरकार की इच्छा पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया, क्योंकि संसद का मौजूदा सत्र मंगलवार को खत्म हो रहा है.

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यशवंत सिन्हा ने ट्वीट कर कहा, 'आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण एक जुमला से ज्यादा कुछ नहीं है. इसमें कई कानूनी जटिलताएं हैं और संसद के दोनों सदनों के पास इसे पारित करने का वक्त नहीं है. सरकार का कदम पूरी तरह से बेनकाब हो गया है.'

वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस फैसले पर सरकार का समर्थन देने का भरोसा दिया, साथ ही इसे चुनावी स्टंट भी बताया है. केजरीवाल ने ट्वीट किया, 'चुनाव के पहले भाजपा सरकार संसद में संविधान संशोधन करे. हम सरकार का साथ देंगे. नहीं तो साफ हो जाएगा कि ये मात्र भाजपा का चुनाव के पहले का स्टंट है.'

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राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए पीएम मोदी को 15 लाख रुपये और रोजगार देने चाहिए थे. तेजस्वी ने कहा, 'आरक्षण आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए हैं. यह सामाजिक रूप से पिछड़े तबकों के प्रतिनिधित्व के लिए था. अगर आर्थिक स्थिति सुधारना था तो पीएम मोदी को 15 लाख रुपये और रोजगार देने चाहिए थे.'

सरकार के इस फैसले को चुनावी हथकंडा बताते हुए पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल ने कहा, 'मूल बात यह है कि जब संसद के शीतकालीन सत्र के खत्म होने में मात्र दो दिन बचे हैं, तब सरकार एक विधेयक लाती है. यह खुद बताता है कि यह एक राजनीतिक हथकंडा है.'

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पटेल ने कहा, 'यह एक और लॉलीपॉप है..हर खाते में 15 लाख रुपये के वादे और दो करोड़ रोजगार के बाद एक और जुमला है. इसे सवर्ण और हालिया विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की ओर गए मतदाताओं को वापस अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए लाया गया है.'