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नेताजी सुभाष चंद्र बोस के 'आजाद हिंद फौज' की कहानी, जानिए उनकी ज़िंदगी से जुड़े रोचक तथ्य

तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा..! का नारा बुलंद करने वाले महान क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस की कल पुण्यतिथि है।

Updated on: 18 Aug 2018, 12:30 AM

नई दिल्ली:

तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा..! का नारा बुलंद करने वाले महान क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस  की आज  पुण्यतिथि है। 15 अगस्त 1947, को भारत को अंग्रेजों के शासन से आज़ादी मिली। आज बिना किसी बंदिशों के हम सबसे मजबूत लोकतंत्र में जी रहे हैं, जिसके पीछे एक लंबी कहानी है। 'तुम मुझे खून दो, मैं तुझे आजादी दूंगा' के जज्बों के साथ वीरों की जीवन की अपनी धरती के लिए क़ुरबानी की कहानी, 'जय हिंद' के साथ हर भारतीय की आवाज़ है, 'कदम-कदम बढ़ाए जा, खुशी के गीत गाए जा' जैसे गाने हैं, सुभाष चंद्र बोस, रासबिहारी बोस और कैप्टन डॉक्टर लक्ष्मी सहगल जैसे हीरो हैं।

यहां बात हो रही है 'आजाद हिंद फौज' की, जिसकी स्थापना टोक्यो (जापान) में 1942 में रासबिहारी बोस ने की थी। उन्होंने 28 से 30 मार्च तक फौज के गठन पर विचार के लिए एक सम्मेलन बुलाया और इसकी स्थापना हुई। जिसका उद्देश्य द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना था। आजाद हिंद फौज के निर्माण में जापान ने काफी सहयोग दिया। देश के बाहर रह रहे लोग इस सेना में शामिल हो गये। सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज की कमान अपने हाथों में लेकर इसे संभाला। उन्होंने 1943 में टोक्यो रेडियो से घोषणा की, 'अंग्रेजों से यह आशा करना बिल्कुल व्यर्थ है कि वे स्वयं अपना साम्राज्य छोड़ देंगे। हमें भारत के भीतर व बाहर से स्वतंत्रता के लिये स्वयं संघर्ष करना होगा।'

बोस ने फौज की बिग्रेड को नाम दिये- 'महात्मा गांधी ब्रिगेड', 'अबुल कलाम आजाद ब्रिगेड', 'जवाहरलाल नेहरू ब्रिगेड' और 'सुभाषचन्द्र बोस ब्रिगेड'। सुभाषचन्द्र बोस ब्रिगेड के सेनापति शाहनवाज खां थे। 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक संपन्न बंगाली परिवार में जन्मे सुभास चंद्र बोस को प्यार से नेताजी कहा जाता है। नेता जी का मशहूर नारा 'तुम मुझे खून दो, मै तुम्हे आज़ादी दूंगा ' ने बर्मा में दिया था। चार जुलाई 1944 को आज़ाद हिन्द फ़ौज के साथ नेताजी बर्मा पहुंचे थे।


24 साल की उम्र में नेताजी सुभाष चंद्र बोस राष्ट्रिय नेशनल कांग्रेस से जुड़े। कुछ साल राजनीति में सक्रिय रहने के बाद उन्होंने महात्मा गांधी से अलग अपना एक दल बनाया।जिसमें खास तौर पर युवाओं को शामिल किया। नेताजी युवाओं के बीच हमेशा से खास प्रचलित रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेज़ों से लोहा लेने की प्रेरणा उन्हें भगवत गीता से मिली थी। नेताजी हमेशा महत्मा गांधी के विचारों से असहमत रहते थे।

देश को आजाद कराने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी और बाद मं पूर्वी एशिया में रहते हुए अपनी अलग सेना बनाई. इसके बाढ़ इन्होने आज़ाद हिन्द फ़ौज का नाम दिया...अपने आक्रामक अंदाज के जाने जाने वाले नेताजी ने जुलाई, 1944 को रंगून से रेडियो पर गांधी जी को संबोधित किया और राष्ट्रपिता कहकर पुकारा। उन्होंने कहा, 'भारत की स्वाधीनता का आखिरी युद्ध शुरू हो चुका हैं। हे राष्ट्रपिता! भारत की मुक्ति के इस पवित्र युद्ध में हम आपका आशीर्वाद और शुभकामनाएं चाहते हैं।'

आजाद हिन्द फौज जापानी सैनिकों के साथ रंगून से होती हुई थलमार्ग से भारत की ओर बढ़ती हुई 18 मार्च 1944 को कोहिमा और इम्फाल के भारतीय मैदानी क्षेत्रों में पहुंच चुकी थी।
नेताजी की मौत की गुथी अभी भी बानी हुई है। सरकार ने एक आरटीआई के जवाब में बताया था कि 18 अगस्त 1945 को नेताजी की मौत ताइवान में हुए प्लेन क्रैश में हुई थी। 18 अगस्त 1945 को जब वह मंचूरिया की ओर जा रहे थे, तभी उनका विमान लापता हो गया और वह फिर कभी नजर नहीं आए। 23 अगस्त, 1945 को टोकियो रेडियो ने बताया कि सैगोन आते वक्त 18 अगस्त, 1945 को एक विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें नेताजी गंभीर रूप से जल गए और ताइहोकू सैन्य अस्पताल में उन्होंने दम तोड़ दिया। हालांकि इस घटना की पूरी तरह से कभी पुष्टि नहीं हो पाई और उसका रहस्य अभी तक बरकरार है। कई लोग इस बात पर विश्वास करने से इंकार करते हैं कि बोस 1945 में ताइपे में एक विमान दुर्घटना में मारे गए थे। 

नेताजी के प्रेम कहानी ऑस्ट्रिया की राजधानी विएना में इलाज के दौरान हुई थी। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जेल में बंद नेताजी की तबियत बिगड़ने के कारण उन्हें विदेश इलाज के लिए भेजा गया। नेताजी बीच में आंदोलन छोड़ना नहीं चाहते थे, इसलिए उन्होंने भारतीय को इसमें जुड़ने का सोचा।

उन्होंने यूरोप में रह रहे भारतीय छात्रों को आज़ादी की लड़ाई के लिए एकजुट करने की योजना बनाई। इसी दौरान उन्हें 'द इंडियन स्ट्रगल' नाम की किताब लिखने का मौका मिला। इस दौरान उन्हें अंग्रेजी टाइप करने के लिए सहयोगी की ज़रुरत थी। इसी खोज ने उन्हें एमिली शेंकल से मिलवाया। अपनी इस 14 साल छोटी सहयोगी के साथ उन्हें प्यार हो गया। ऐसा कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस और एमिली ने रहस्यमयी तरीके से शादी भी की। 29 नवंबर, 1942 को बेटी का जन्म हुआ, जिसका नाम अनीता रखा गया।