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26/11 मुंबई आतंकी हमला: 18 साल का 'दही वड़ा' बेचने वाला कसाब कैसे बन गया मौत का सौदागर

26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले में अगर कोई विलेन पूरे देश को नजर आया तो वो था महज 18 साल का लश्कर-ए-तैयबा का आतंकी अजमल आमिर कसाब।

Updated on: 26 Nov 2017, 03:39 PM

highlights

  • मुंबई आतंकी हमले में एकमात्र जिंदा आतंकी पकड़ा गया था कसाब
  • कसाब के पिता बेचते थे दही वड़ा, गुस्से में कसाब ने छोड़ा था घर

नई दिल्ली:

26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले में अगर पूरे देश को कोई विलेन नजर आया तो वो था महज 18 साल का लश्कर-ए-तैयबा का आतंकी अजमल आमिर कसाब।

कसाब उन 10 आतंकियों में इकलौता ऐसा था जिसे भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने हमले के दौरान जिंदा पकड़ा था। 26/11 के आतंकी हमले की 9वीं बरसी पर हम आपको बता रहे हैं 18 साल के ऐसे लड़के की कहानी जो दही बड़े बेचते-बेचते आतंक का सौदागर बन गया।

बात मुंबई हमले से ठीक 3 साल पहले यानि की 2005 की है। पाकिस्तान के फरीदकोट में जन्मे कसाब ने दही बड़ा बेच कर परिवार पालने वाले पिता से झगड़ा करने के परिवार और गांव दोनों छोड़ दिया। रिपोर्ट के मुताबिक कसाब के नए कपड़े खरीदने की जिद की वजह से पिता से उसका झगड़ा हुआ था जिसके बाद उसने घर छोड़ दिया।

घर छोड़ने के बाद कसाब बड़े भाई के पास मजदूरी करने चला गया। मजदूरी में मन नहीं लगने की वजह से कसाब चोरी और छोटे-मोटे अपराध करने लगा। इस बीच कसाब की दोस्ती कुछ ऐसे युवकों से हो गई जिनका संबंध लश्कर-ए-तैयबा था। कसाब के दोस्त ही उसे एक दिन रिवॉल्वर लेने के लिए लश्कर-ए- तैयबा के पर ले गए थे। इसी के बाद कसाब आतंक की राह पर इतना आगे बढ़ा गया कि उसे जिसने उसे फांसी की तख्त तक पहुंचा दिया।

लश्कर-ए-तैयबा में शामिल होने के बाद कसाब को एक खास मिशन के लिए किया गया। तीन महीने की ट्रेनिंग में हथियार चलाना, बम फेंकना, रॉकेट लांचर और मोर्टार चलाने की ट्रेनिंग दी गई। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद 24 में से 10 लड़के चुने गए। इन्हीं में एक नाम अजमल आमिर कसाब का भी था।

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देश के सबसे व्यस्ततम रेलवे स्टेशनों में से एक छत्रपति शिवाजी टर्मिनल पर आतंक के इस खूनी खेल का सबसे खौफनाक मंजर देखने को मिला। कसाब ने अपने साथी इस्माइल खान के साथ मिलकर अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दी।सीएसटी में 58 लोगों की मौत हुई। एक मुश्किल ऑपरेशन में सीएसटी स्टेशन पर गोलियां बरसाने वाले कसाब को जिंदा पकड़ लिया गया जबकि उसका साथी मारा गया।

कसाब पर करीब 4 सालों तक मुकदमा चलने के बाद कोर्ट ने उसे फांसी की सजा सुनाई। बेहद गोपनीय तरीके से पुणे की यरवदा जेल में 21 नवंबर 2012 की रात उसे फांसी पर चढ़ा दिया गया। मामले की गंभीरता को देखते हुए कसाब के शव को भी जेल परिसर में ही दफना दिया गया।

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