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महाराष्ट्र के स्कूलों में पढ़ाई जाएगी इलाहाबाद की बेटी रेखा की कहानी, 953 बेसहारा बच्चों की कर चुकी है मदद

आरपीएफ की एक महिलाकर्मी को बाल-सुरक्षा के उनके कामों को महाराष्ट्र के उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों की पुस्तकों में पढ़ाया जाएगा।

Updated on: 13 Jun 2018, 11:03 AM

नई दिल्ली:

कर्म किए जा, फल की चिंता मत कर... इस वाक्य को अपने जीवन का मूल मंत्र मानने वाली इलाहाबाद की बेटी रेखा मिश्रा ने 953 बेसहारा बच्चों की मदद कर समाज के सामने एक अनूठी मिसाल पेश की है। 

महाराष्ट्र सरकार ने रेखा मिश्रा को सम्मान देते हुए उनके निस्वार्थ भावना से लोगों की मदद करने की अनूठी कहानी को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने का फ़ैसला किया है।

उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद के एक सैन्य अफसर के खानदान से ताल्लुक रखने वाली रेखा मिश्रा (32) 2014 में आरपीएफ में नियुक्त हुई थीं और वर्तमान में प्रसिद्ध क्षत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (सीएसएमटी) पर कार्यरत हैं।

उन्होंने पिछले कुछ सालों में अदम्य साहस का परिचय देते हुए सैंकड़ों निराश्रित, लापता, अपहृत या घर से भागे हुए बच्चों को विभिन्न रेलवे स्टेशनों से बचाया है।

बच्चों को बचाने के उनके साहसिक कार्यो और इस दौरान उनके सामने आने वाली बाधाओं को चालू शैक्षणिक सत्र में महाराष्ट्र राज्य बोर्ड के कक्षा 10 में मराठी में पढ़ाया जाएगा।

मध्य रेलवे के महाप्रबंधक डी के शर्मा ने सोमवार को एक विशेष समारोह आयोजित कर उनके कामों के लिए उन्हें सम्मानित किया है। 

शर्मा ने कहा, 'वह बहुत अच्छा काम कर रही हैं और इसके साथ ही अपने नेक कार्यो से समाज सेवा भी। पाठ्यक्रम में उन्हें शामिल करने से नई पीढ़ी जरूर प्रेरित होगी।'

इस सम्मान से सम्मनित होने के बाद ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए रेखा ने कहा, 'मैं बहुत खुश हूं कि लापता और बेसहारा बच्चों और औरतों के लिए किए गए हमारे काम को अब सराहना मिल रही है। इस काम से बच्चों में भी जागरुकता बढ़ेगी कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं, अब तक मैं 953 बच्चों की मदद कर चुकी हूं।'

मिश्रा ने कहा, 'यह मेरे लिए बड़े गर्व की बात है। ज्यादातर बच्चे घर पर परिजनों से लड़ाई होने के बाद भाग जाते हैं। कुछ फेसबुक पर बने दोस्तों से मिलने के लिए भागते हैं या कभी-कभी तो अपने पसंदीदा फिल्मी कलाकारों से मिलने के लिए भी भागते हैं और कुछ मुंबई की चकाचौंध से प्रभावित होते हैं। कुछ बेचारे बच्चों का तो अपहरण भी हुआ है।'

उन्होंने कहा कि उनकी टीम सुनिश्चित करती है कि ऐसे बच्चे खासकर आसानी से फुसलाए जाने वाले बच्चे (13-16 साल) गलत हाथों में पहुंचकर परेशानी में न पड़ जाएं। टीम का लक्ष्य होता है कि बच्चों को उनके परिवार से मिलाना।

उन्होंने बताया कि उनमें ज्यादातर बच्चे उत्तर प्रदेश और बिहार के थे और बाकी अन्य राज्यों से थे । ऐसे बच्चों की संख्या गर्मी की छुट्टियों के समय अक्सर बढ़ जाती थी।

आरपीएफ जहां दो दर्जन से ज्यादा बच्चों को उनके परिजनों से मिलाने में सफल रही, बचे हुए बच्चों को उनके परिजनों का पता लगने तक शहर में स्थित बाल सुधार गृहों में रखा जाता है।

(इनपुट आईएएनएस से)

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