मदर्स डे : 'मां' एक अपरिभाषित रिश्ते को शायरों ने कैसे-कैसे बयां किया
आइए जानते हैं इस खास दिन पर उन शायरों की बेहतरीन शायरी जिसमें मां के प्यार और त्याग का जिक्र है।
नई दिल्ली:
मां एक ऐसा शब्द जो अपरिभाषित है। दुनिया के सारे शब्द मिल कर भी मां की ममता को परिभाषित नहीं कर सकते फिर भी कुछ शायरों ने इस पवित्र रिश्ते को लफ्जों में पिरोने की कोशिश की है।
आज मदर्स डे है। कुछ विद्वानों का दावा है कि मां के प्रति सम्मान यानी मां की पूजा का रिवाज पुराने ग्रीस से आरंभ हुआ है। कहा जाता है कि स्य्बेले ग्रीक देवताओं की मां थीं और उनके सम्मान में यह दिन मनाया जाता था।
आइए जानते हैं इस खास दिन पर उन शायरों की बेहतरीन शायरी जिसमें मां के प्यार और त्याग का जिक्र है।
'ए मां तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी' हिन्दी फिल्म के इस गाने में दुनिया की सबसे बड़ी सच्चाई है। मशहूर उर्दू शायर मुनव्वर राना की मां पर लिखी शायरी पूरी दुनिया में पढ़ी जाती है। उन्होंने अपनी शायरी में मां को जन्नत बताया है। वह लिखते हैं
चलती फिरती हुई आंखों से अज़ां देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है मां देखी है
तनवीर सिप्रा ने अपनी शायरी में मां के गोद का जिक्र किया है। याद कीजिए जब बचपन में खेलने के बाद या स्कूल से आने के बाद आप थक कर मां की गोद में सर रख कर सो जाते थे तो कितना सुकून मिलता था। मां के गोद के उसी सुख का जिक्र तनवीर के इस शायरी में है
ऐ रात मुझे मां की तरह गोद में ले ले
दिन भर की मशक़्क़त से बदन टूट रहा है
नाम और पैसे की चाहत में गांव छोड़कर शहर में कई लोग आ जाते है। शहर की चकाचौंध की जिंदगी में वह भूल जाते हैं कि गांव में कोई बूढ़ी मां भी है जो रोज उसकी सलामती की दुआ मांगती है और उसके नाम का दिया जलाती है। शायर इरफ़ान सिद्दीक़ी ने इसी भावना को व्यक्त किया है।
एक लड़का शहर की रौनक़ में सब कुछ भूल जाए
एक बुढ़िया रोज़ चौखट पर दिया रौशन करे
बचपन में मेला देखने आपमें से कई लोग गए होंगे। पिता के कंधों पर बैठकर या मां की उंगली को पकड़कर मेला देखा होगा। कई बार मेले में किसी खिलौने के लिए जिद्द भी किया होगा लेकिन मुफलिसी के कारण कई बार माता-पिता आपकी जिद्द पूरी नहीं कर पाते। क़ैसर-उल जाफ़री ने इसी दर्द को शायरी में बयां किया है।
घर लौट के रोएंगे मां बाप अकेले में
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में
मां जिंदगी भर अपने सपनों को बच्चों के लिए कुर्बान कर देती है। उसके लिए उसकी औलाद ही सबसे बड़ी दौलत होती है। मां के इसी त्याग पर असलम कोलसरी लिखते हैं।
शहर में आ कर पढ़ने वाले भूल गए
किस की माँ ने कितना ज़ेवर बेचा था
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