नमक कानून के खिलाफ गांधी जी का दांडी मार्च, जिसने ब्रिटिश राज को हिला कर रख दिया
महात्मा गांधी के अंग्रेजी सरकार के अति आवश्यक वस्तु नमक तक पर कर लगाने के कदम के खिलाफ आवाज़ बुलंद उठाने और अंग्रेजी शासन के विरुद्ध एकजुट होने की अपील के रौद्र रुप ने ब्रिटिश सरकार को हिला कर रख दिया।
नई दिल्ली:
12 मार्च 1930, अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन अपने चरम पर था। पूर्ण स्वराज की मांग ज़ोर पकड़ती जा रही थी। इस बीच महात्मा गांधी ने अंग्रेजी सरकार के अति आवश्यक वस्तु नमक तक पर कर लगाने के कदम के खिलाफ आवाज़ बुलंद की और नमक कानून को ख़त्म करने का आह्नान किया।
इससे पहले एक और अहम घटना हुई थी। पूर्ण स्वराज की मांग के साथ 1929 के अंत में दिसंबर में कांग्रेस ने वार्षिक अधिवेशन लाहौर में किया था जिसमें अध्यक्ष के तौर पर जवाहर लाल नेहरु को चुना गया।
इसके बाद कांग्रेस ने गांधी जी के नेतृत्व में 26 फरवरी 1930 में देश भर में राष्ट्रीय ध्वज फहराकर स्वतंत्रता दिवस मनाया। इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती देने के लिए गांधी जी की अगली योजना थी अंग्रेजों के नमक कानून को तोड़ना।
इसके लिए 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी ने ब्रिटिश भारत के सर्वाधिक घृणित कानूनों में से एक नमक के उत्पादन और विक्रय पर राज्य को एकाधिकार देने को तोड़ने के लिए दांडी यात्रा शुरू की।
1857 की क्रांति और चंपारण, चिटागोंग समेत आज़ादी की अनेक लड़ाइयों के बाद गांधी जी की डांडी यात्रा ने अंग्रेजी हुकूमत को हिला कर रख दिया था।
जब गांधी जी ने इस यात्रा की शुरुआत की थी तो अंग्रेजों को भी नहीं पता था कि यह इतना बड़ा रुप ले लेगी कि जिसमें गांधी जी के एक आह्वान पर जहां-जहां से वो गुज़रेंगे हज़ारों की संख्या में लोग उनके कारवां से जुड़ते जाएंगे और यह काफिला इतना बड़ा हो जाएगा कि उसे रोकने में अंग्रेजी प्रशासन को ख़ासी मशक्कत का सामना करना पड़ेगा।
3 हफ्ते बाद गांधी जी साबरमती आश्रम से निकल समुद्र किनारे अपनी मंज़िल पर पहुंचे और खुद नमक बनाकर उन्होंने कानून तोड़ा। इसके साथ ही देश में अलग-अलग जगहों पर नमक यात्राएं भी आयोजित की जा रही थी।
1857 क्रांति: जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बजा आज़ादी का पहला बिगुल
गांधी जी के नमक कानून को तोड़ने से वो अंग्रेजी सरकार के अपराधी बन गए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। नमक आंदोलन में गांधी जी समेत करीब 60,000 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था।
नमक आंदोलन के दौरान रास्ते में गांधी जी द्वारा की गईं सभाओं और भाषणों में लोगों से अंग्रेजी सरकार के खिलाफ आंदोलन की एक-एक अपील पर लाखों लोगों ने आंदोलन में हिस्सा लेना शुरु कर दिया।
गाँधी जी ने आह्वान किया कि अंग्रेजी सरकार के विरोध में लोग सरकारी नौकरियाँ छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने के लिए शामिल हो जाएं, तो लाखों लोगों ने नौकरियां छोड़ दी और गांधी जी के साथ आज़ादी के इस संघर्ष में शामिल हो गए।
कस्बों में फैक्ट्री में काम करने वाले लोग हड़ताल पर चले गए। वकीलों ने ब्रिटिश अदालतों का बहिष्कार कर दिया। विद्यार्थियों ने सरकारी शिक्षा संस्थानों में पढ़ने से मना कर दिया।
इसके बाद अंग्रेजी सरकार घबरा गई और लोगों के विद्रोह को कुचलने के लिए दमनकारी रुप अपना लिया।
स्वतंत्रता संग्राम की सफलता का आधार गांधीजी का चंपारण सत्याग्रह
हज़ारों लोगों की गिरफ्तारी के साथ ही गांधी जी को पुणे की यरवदा जेल में डाल दिया गया। लेकिन यह अंग्रेजी हुकूमत के लिए नाकों चने चबाने जैसा हो गया। देश भर में गिरफ्तारियों की बाढ़ सी आ गई और अंग्रेजी सरकार समझ गई कि अब ज़्यादा दिन वो भारत पर राज नहीं कर सकेंगे।
गांधी-इरविन पैक्ट
इसके बाद 26 जनवरी, 1931 ई. को गाँधी जी और वायसराय लॉर्ड इरविन के बीच एक समझौता हुआ जिसे गाँधी-इरविन पैक्ट कहा गया। इसके मुताबिक यह तय हुआ कि जैसे ही सत्याग्रह बंद कर दिया जाएगा, सभी राजनैतिक कैदी छोड़ दिए जायेंगे और उसके बाद कांग्रेस गोलमेज सम्मलेन में हिस्सा लेगी।
जब चिटगांव में स्कूली बच्चों ने अग्रेज़ी हुकूमत को हिला कर रख दिया
हालांकि द्वितीय गोलमेज सम्मलेन में भाग लेने के लिए कांग्रेस के एक मात्र प्रतिनिधि के रूप में गाँधीजी लंदन गए। लंदन सम्मेलन में उन्होंने भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की, जिसे ब्रिटिश सरकार ने स्वीकार नहीं किया। गांधी जी को गहरा झटका लगा और उनका आंदोलन बदस्तूर तब तक जारी रहा जब तक भारत को आज़ादी नहीं मिल गई।
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