महात्मा गांधी ने इस वजह से चोंगा, पगड़ी और जूते का किया था परित्याग
महात्मा गांधी ने आज़ादी से पहले देश में जिस तरह की ग़रीबी देखी थी उससे उनका चित काफी व्याकुल हो उठा था. इसी व्याकुलता को देखते हुए गांधी ने अपने जीवन में कई कड़े फ़ैसले लिए थे.
नई दिल्ली:
आपने महात्मा गांधी की ज़्यादातर फोटो में उन्हें सिर्फ धोती पहने देखा होगा लेकिन क्या आपको पता है कि वो सभी मौसम में सिर्फ धोती ही क्यों पहनते थे? दरअसल महात्मा गांधी ने आज़ादी से पहले देश में जिस तरह की ग़रीबी देखी थी उससे उनका चित काफी व्याकुल हो उठा था. इसी व्याकुलता को देखते हुए गांधी ने अपने जीवन में कई कड़े फ़ैसले लिए थे. कपड़ा नहीं पहनने का फ़ैसला भी उन्हीं में से एक था. आईए अब क़िस्सा विस्तार से समझते हैं.
महात्मा गांधी अफ्रीका में रंगभेद नीति के ख़िलाफ़ मुहिम चलाने के बाद वापस भारत पहुंचे थे. महात्मा गांधी ने चंपारण ज़िले के किसानों की मर्मस्पर्शी कहानी सुनी जिसके बाद उन्होंने यहां जाने का फ़ैसला किया. महात्मा गांधी 15 अप्रैल 1917 को दोपहर तीन बजे चंपारण के मोतिहारी स्टेशन उतरे. गांधी ने यहां पहुंचकर किसानों से मुलाक़ात की. गांधी ने देखा कि यहां के किसानों और महिलाओं पर काफी जुल्म किया जा रहा है. अंग्रेज़ किसानों से केवल नील की खेती करवा रहे थे. इस वजह से किसान अपने खान-पान के लिए चावल और गेंहू जैसे अनाज पैदा नहीं कर पा रहे थे.
महिलाओं को पीने का पानी और शौच जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए भी काफी जद्दोजहद करना पड़ता था. इतना ही नहीं महिलाओं के पास पहनने के लिए एक ज़ोड़ी कपड़े तक नहीं होते थे. कुछ महिलाओं को अंग्रेज़ों द्वारा एक जोड़ी कपड़ा दिया जाता था जिससे की वो बुलावे के अनुसार यौन दासी के रुप में उनके सामने उपस्थित हो सके. बच्चों को पढ़ाई-लिखाई से दूर रखा जाता था और उसे अंग्रेज़ अधिकारियों के साथ काम-काज पर लगा दिया जाता था.
गांधी जी कठियावाड़ी पोशाक पहनकर चंपारण पहुंचे थे. बदन पर शर्ट, नीचे एक धोती, कलाई में घड़ी, सिर पर टोपी, पांवों में चमड़े का जूता और गले में एक सफ़ेद गमछा. इनमें से ज़्यादातर कपड़े भारतीय मिल में बने हुए थे. गांधी जी को जब पता चला कि नील फैक्ट्रियों के मालिक निम्न जाति के हैं और उन्हें मील के अंदर जूते पहनने की इज़ाजत नहीं हैं तो वह काफी व्यथित हुए और तभी से उन्होंने जूते का परित्याग करने का फ़ैसला किया.
8 नवंबर 1917 को गांधीजी ने सत्याग्रह आंदोलन का दूसरा चरण शुरू किया. इस दौरान उन्होंने यहां कि महिलाओं को सक्षम बनाने की दिशा में कार्या प्रारंभ किया. गांधी जी ने यहां कि कुछ पढ़ी लिखी महिलाओं के सहयोग से स्कूल शुरू किया जिससे कि महिलाओं को हिंदी और उर्दू में बुनियादी शिक्षा दी जा सके. इसके अलावा उन्होंने महिलाओं को खेती और कपड़े की बुनाई जैसी चीज़ें भी सिखाईं. गांधी ने इस दौरान महिलाओं को साफ-सफ़ाई के लिए भी प्रेरित किया. इसके साथ ही उन्होंने अपनी पत्नी कस्तुरबा को महिलाओं को शारीरिक साफ-सफ़ाई के लिए प्रेरित करने के काम में लगाया. इस दौरान उन्हें पता चला कि इन महिलाओं के पास केवल एक ही कपड़ा है इसलिए अगर इन्होंने वह कपड़े साफ किए तो उनके पास पहनने के लिए कुछ भी नहीं होगा.
गांधी जी ने तभी से अपना चोंगा का परित्याग कर दिया. 1918 में गांधी जी जब अहमदाबाद में करखाना मज़दूरों की लड़ाई में शरीक हुए तो उन्होंने देखा कि उनकी पगड़ी में जितने कपड़े लगते है, उसमें 'कम से कम चार लोगों का तन ढका जा सकता है.' उन्होंने उसी वक्त से पगड़ी छोड़ने का फ़ैसला ले लिया.
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31 अगस्त 1920 को खेड़ा में किसानों के सत्याग्रह के दौरान गांधी जी ने खादी को लेकर प्रतिज्ञा ली कि 'आज के बाद से मैं ज़िंदगी भर हाथ से बनाए हुए खादी के कपड़ों का इस्तेमाल करूंगा.'
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