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नरोदा पाटिया दंगा मामला: माया कोडनानी को गुजरात हाई कोर्ट ने बरी किया, बाबू बजरंगी की सजा बरकरार

गुजरात के नरोदा पाटिया में 2002 के दौरान हुए दंगों पर शुक्रवार को हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए पूर्व मंत्री माया कोडनानी को बरी कर दिया।

Updated on: 20 Apr 2018, 11:45 AM

नई दिल्ली:

गुजरात के नरोदा पाटिया दंगा मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने शुक्रवार को पूर्व मंत्री माया कोडनानी बरी कर दिया। 2002 के दौरान हुए दंगों पर शुक्रवार को हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। 

जस्टिस हर्षा देवानी और ए एस सुपैहिया की बेंच ने अगस्त में हुई सुनवाई के बाद आदेश को सुरक्षित रख लिया था।

अगस्त 2012 में एसआईटी केसों के लिए गठित विशेष अदालत ने बीजेपी के पूर्व मंत्री माया कोडनानी समेत 32 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

अदालत ने कोडनानी को 28 साल की जेल और पूर्व बजरंग दल नेता बाबू बजरंगी को मृत्यु तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। सात अन्य को 21 साल के आजीवन कारावास जिसमें और शेष अन्य को 14 साल के साधारण आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

LIVE अपडेट्स:

# पूर्व मंत्री माया कोडनानी के साथ गणपत निदावाला और विक्रम छारा को भी हाई कोर्ट ने बरी कर दिया।

बाबू बजरंगी के साथ किशन कोराणी, प्रकाश राठोर, सुरेश लंगडो, नरेश छारा, गणपत छनाजी, हरेश छारा की सजा बरकरार।

# गुजरात हाई कोर्ट ने कहा, हिंसा के वक्त घटना स्थल पर नहीं थी माया कोडनानी।

# बाबू बजरंगी की सजा बरकरार, मौत तक जेल में रहेंगे।

नरोदा पाटिया दंगा मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने बेनिफिट ऑफ डाउट के तहत शुक्रवार को पूर्व मंत्री माया कोडनानी बरी कर दिया।

अदालत ने सबूतों के अभाव में 29 अन्य को रिहा कर दिया था। एसआईटी ने विशेष अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की है। वहीं फैसले के खिलाफ दोषियों ने भी हाईकोर्ट में अपील की थी।

गौरतलब है कि मामले की गंभीरता और बर्बरता को समझने के लिए हाईकोर्ट के न्यायधीशों ने सुनवाई के दौरान नरोदा में उस इलाके का दौरा भी किया जहां दंगों के दौरान मुस्लिम समुदाय के 97 लोगों की हत्या की गई थी।

नरोदा पटिया दंगा 27 फरवरी 2002 को गोधरा ट्रेन में 59 कार सेवकों को जिंदा जलाने की घटना के बाद हुई सबसे बुरी घटनाओं में से एक है।

आपको बता दें कि कोडनानी फिलहाल जमानत पर बाहर है। विशेष अदालत ने कोडनानी को नरोदा हिंसा में मुख्य साजिशकर्ता के रूप में चिन्हित किया था।

इससे पहले न्यायमूर्ति अकील कुरेशी, एम आर शाह, के एस झावेरी, जी बी शाह, सोनिया गोकानी और आर एच शुक्ला समेत कई उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने अपील पर सुनवाई के दौरान मामले से खुद को अलग कर चुके हैं।

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