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विधि आयोग की बैठक रही बेनतीजा, एक राष्ट्र एक चुनाव पर ज्यादातर पार्टियों का विरोध

अधिकतर राजनीतिक पार्टियों ने शनिवार को विधि आयोग से कहा कि वो लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव एकसाथ करवाने के प्रस्ताव का विरोध करते हैं।

Updated on: 08 Jul 2018, 08:03 AM

नई दिल्ली:

अधिकतर राजनीतिक पार्टियों ने शनिवार को विधि आयोग से कहा कि वो लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव एकसाथ करवाने के प्रस्ताव का विरोध करते हैं। विरोधी पार्टियों ने इसके साथ ही कहा कि यह संविधान के विरुद्ध है और यह क्षेत्रीय हितों को कमजोर कर देगा।

तृणमूल कांग्रेस, माकपा, आईयूएमएल ने इस प्रस्ताव का विरोध किया। वहीं बीजेपी की करीबी माने जाने वाली अन्ना द्रमुक (एआईडीएमके) और गोवा में सहयोगी गोवा फॉरवर्ड पार्टी ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया। एआईडीएमके ने कहा कि वह 2019 में एकसाथ चुनाव कराने का विरोध करेगा लेकिन अगर इस मुद्दे पर सहमति बनी तो वह 2024 में एकसाथ चुनाव करवाने पर विचार कर सकता है।

बीजेपी की सहयोगी शिरोमणी अकाली दल ने प्रस्ताव का समर्थन किया।

विधि आयोग के साथ इस संबंध में देश के मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों की दो दिवसीय बैठक यहां आयोजित की गई।

तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा, 'संविधान के बुनियादी ढांचे को बदला नहीं जा सकता। हम एक साथ चुनाव कराने के विचार के खिलाफ हैं, क्योंकि यह संविधान के खिलाफ है। ऐसा नहीं किया जाना चाहिए।'

उन्होंने कहा, 'मान लीजिए कि 2019 में केंद्र और सभी राज्यों में एक साथ चुनाव होते हैं। अगर केंद्र में एक गठबंधन की सरकार बनती है और वह बहुमत खो देती है तो केंद्र के साथ-साथ सभी राज्यों में फिर से चुनाव कराने होंगे।'

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बनर्जी ने कहा, 'यह अव्यावहारिक, असंभव और संविधान के प्रतिकूल है। लोकतंत्र और सरकार को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। वित्तीय मुद्दा कम महत्व का है, पहली प्राथमिकता संविधान और लोकतंत्र है। संविधान को बरकरार रखा जाना चाहिए।'

अन्ना द्रमुक के नेता एम थंबीदुरई ने कहा, '2019 में एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं है। गुजरात, पंजाब, हिमाचल, तमिलनाडु और अन्य राज्य ने पांच साल के लिए सरकार को वोट दिया है, इन्हें अपना कार्यकाल पूरा करने दीजिए।'

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) सचिव अतुल कुमार अंजान ने यहां बैठक में हिस्सा लेने के बाद संवाददाताओं से कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक साथ चुनाव कराने की परिकल्पना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।

अंजान ने कहा, 'संसद इस मुद्दे पर चर्चा के लिए उपयुक्त मंच है। संविधान में किसी तरह के परिवर्तन के लिए संसद में चर्चा होनी चाहिए।'

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि विधि आयोग को एक राष्ट्र एक चुनाव कराने की परिकल्पना पर परामर्श करने का अधिकार नहीं है।

उन्होंने कहा कि विधि आयोग कानून मंत्रालय को कानून में बदलाव के लिए सुझाव दे सकता है, लेकिन संसद से बाहर किसी भी अथॉरिटी को यह अधिकार नहीं है कि वह संविधान की समीक्षा करे।

गोवा में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाली सरकार में शामिल गोवा फॉरवार्ड पार्टी (जीएफपी) के अध्यक्ष विजय सरदेसाई ने संवाददाताओं से कहा, 'प्रस्ताव पूरी तरह अव्यावहारिक है। यह कारगर नहीं होगा।'

उन्होंने कहा कि अगर प्रस्ताव को अमल में लाया गया तो क्षेत्रीय मसले ठंडे बस्ते में चले जाएंगे।

शहर एवं ग्राम नियोजन और कृषि मंत्री विजय सरदेसाई ने कहा, 'सुझाव अच्छा है, लेकिन इससे क्षेत्रीय मुद्दे कमजोर पड़ जाएंगे। अगर एक साथ चुनाव हुए तो हमारे जैसे क्षेत्रीय दल और मसलों की अहमियत कम हो जाएगी। यही कारण है कि हम इसका विरोध कर रहे हैं। यह क्षेत्रीय भावना के खिलाफ है।'

कांग्रेस ने कहा है कि वह आयोग के समक्ष अपना विचार रखेगी।

पार्टी नेता आर.पी.एन. सिंह ने कहा, 'हम सभी विपक्षी पार्टियों के साथ चर्चा कर रहे है और हम इसपर संयुक्त निर्णय लेंगे। हम इसे खारिज नहीं कर रहे हैं। हम विपक्षी नेताओं से चर्चा करेंगे और खुद के सुझाव के साथ आगे आएंगे।'

आयोग ने 'एक साथ चुनाव : संवैधानिक और कानूनी परिप्रेक्ष्य' नामक एक मसौदा तैयार किया है और इसे अंतिम रूप देने और सरकार के पास भेजने से पहले इसपर राजनीतिक दलों, संविधान विशेषज्ञों, नौकरशाहों, शिक्षाविदों और अन्य लोगों सहित सभी हितधारकों से इस पर सुझाव मांगे हैं।

चुनाव आयोग ने पहले ही कह दिया है कि वह एक साथ चुनाव करवाने में सक्षम है, बशर्ते कानूनी रूपरेखा और लॉजिटिक्स दुरुस्त हो।

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