अमित शाह का ऐलान, मोदी सरकार लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा नहीं देगी
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने बड़ा ऐलान करते हुए कहा है कि लिंगायत-वीरशैव समुदाय को अलग धर्म का दर्जा नहीं दिया जाएगा और केंद्र सरकार इस प्रस्ताव को खारिज कर देगी।
नई दिल्ली:
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने बड़ा ऐलान करते हुए कहा है कि लिंगायत-वीरशैव समुदाय को अलग धर्म का दर्जा नहीं दिया जाएगा और केंद्र सरकार इस प्रस्ताव को खारिज कर देगी।
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि सिद्धारमैया सरकार लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देकर हिंदु धर्म को बांटने का काम कर रही है।
उन्होंने कर्नाटक की कांग्रेस सरकार की मांग को खारिज करते हुए कहाकि लिंगायतों को अलग धर्म का दर्जा नहीं दिया जाएगा। साथ ही वीरशैव संत को भरोसा दिया है कि इस तरह का कोई विभाजन नहीं किया जाएगा।
बीजेपी अध्यक्ष ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने सिर्फ वोट बैंक के लिए लिंगायत समुदाय का इस्तेमाल कर रही है।
उन्होंने कहा, 'बहुत सारे लोगों ने सिद्धारमैया सरकार के लिंगायत-वीरशैव समुदाय पर लाए गए प्रस्ताव पर चिंता जताई है। ये कुछ और नहीं बल्कि चुनाव के पहले लोगों को बरगलाने की कोशिश है ताकि बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बनने से रोका जा सके। लेकिन ऐसा होगा नहीं।'
उन्होंने कहा कि कर्नाटक सरकार की सिफारिशों को केंद्र सरकार नहीं मानेगी। अमित शाह ने होसपेट, काशी, उज्जैनी और श्रीशैल मठ के जगद्गुरुओं से मुलाकात की थी। उनका कहना है कि सभी सिद्धारमैया सरकार के इस फैसले से चिंतित हैं और उसका विरोध कर रहे हैं।
चुनाव पर पड़ सकता है असर
अमित शाह के इस ऐलान से कर्नाटक की राजनीति पर बड़ा असर पड़ सकता है। क्योंकि कर्नाटक में लिंगायत एक बड़ा वोटबैंक हैं और वो पारंपरिक तौर पर बीजेपी के समर्थक रहे हैं। बीजेपी के सीएम उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा लिंगायत समाज से आते हैं।
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कांग्रेस इसी को ध्यान में रखते हुए लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने का प्रस्ताव रखा है और कहा है कि उन्हें अल्पसंख्यक दर्जा मिल सकता है।
येदियुरप्पा बीजेपी के लिये लिंगायत वोट लाते हैं। दरअसल 2007 में जेडीएस के साथ गठबंधन सरकार बनी थी। लेकिन जेडीएस ने गठबंधन के समय रोटेशन की तय शर्तों का उल्लंघन कर येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया था।
जिसके बाद लिंगायत समुदाय जेडीएस से नाराज़ हो गया और येदियुरप्पा को आदर्श मानने लगा जिसका फायदा बीजेपी को हुआ।
सिद्धारमैया ने लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने का प्रस्ताव लाकर येदियुरप्पा की समुदाय पर पकड़ को कमज़ोर करने की कोशिश की है। यहां पर कांटे की टक्कर है और कांग्रेस जितना भी वोट लिंगायतों का अपने पाले में ला देगी वो बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकता है।
इसका अंदाजा इस तरह से भी लगाया जा सकता है जब 2013 के चुनाव हुए थे तब लिंगायत बीजेपी से नाराज थे और उन्होंने उसे वोट नहीं दिया था और पार्टी की करारी हार हुई थी।
क्या है रास्ता
लिंगायत समुदाय का थोड़ा वोट भी कांग्रेस की तरफ खिसकता है तो इस कांटे की टक्कर में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ेगा। ऐसे में बीजेपी के पास एक ही रास्ता बचता है कि वो वोक्कालिंगा समुदाय को पार्टी से जोड़ने की कोशिश करे। इस समुदाय का भी कर्नाटक की राजनीति में काफी असर है। राज्य में ये समुदाय भी काफी बड़ा है जो 12 प्रतिशत है।
लेकिन ये समुदाय जेडीएस के साथ है और बीजेपी को खासी मेहनत करनी होगी इस समुदाय को अपने पाले में लाने के लिये। जेडीएस के साथ गठबंधन का भी एक विकल्प है लेकिन ऐसा होना टेढ़ी खीर साबित हो सकती है।
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