नई दिल्ली:
भारत में तेजी से बढ़ती रेप की घटनाओं को लेकर ट्वीट करने वाले 2010 बैच के यूपीएससी परीक्षा के टॉपर शाह फैज़ल के खिलाफ जम्मू-कश्मीर सरकार ने अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू कर दी है।
फैज़ल के ट्वीट को लेकर उन्हे जम्मू-कश्मीर सरकार ने नोटिस जारी किया है।
नोटिस मिलने के बाद फैज़ल ने उसकी एक कॉपी को ट्वीट करते हुए लिखा, ' दक्षिण एशिया में रेप की बढ़ती घटनाओं के खिलाफ मेरे व्यंग्यात्मक ट्वीट के बदले मुझे मेरे बॉस से मिला लव लेटर (नोटिस)।'
Love letter from my boss for my sarcastic tweet against rape-culture in South Asia.
— Shah Faesal (@shahfaesal) July 10, 2018
The Irony here is that service rules with a colonial spirit are invoked in a democratic India to stifle the freedom of conscience.
I'm sharing this to underscore the need for a rule change. pic.twitter.com/ssT8HIKhIK
फैज़ल को भेजे गये नोटिस में लिखा है, 'आप पर आरोप है कि आधिकारिक पद पर बने रहते हुए आप अपने कर्तव्यों का पूरी ईमानदारी और निष्ठा से पालन करने में असफल रहे हैं जो कि बिल्कुल उचित व्यवहार नहीं है।'
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, विभाग ने केन्द्र सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ परसेनल एंड ट्रेनिंग) के अनुरोध पर फैज़ल के खिलाफ कार्रवाई शुरू की है।
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गौरतलब है कि फैज़ल ने ट्वीट किया था कि 'जनसंख्या + पितृसत्ता + निरक्षरता + शराब + पॉर्न + तकनीक + अराजकता = रेपिस्तान'। जिसके बाद उनके इस ट्वीट को लेकर चारों तरफ विवाद शुरू हो गया है।
वहीं जम्मू एवं कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला फैज़ल के बचाव में उतर आए हैं।
अधिकारी का बचाव करते हुए उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया, 'मैं इस नोटिस को नौकरशाही के अति उत्साह में आकर उठाए गए मामले के रूप में देखता हूं। वे उस समय की भावना को समझ नहीं पा रहे हैं, जिसमें हम रह रहे हैं।'
उन्होंने कहा, 'राजस्थान और अन्य जगहों के अधिकारियों द्वारा शासन और आचरण के मानदंडों को ताक पर रखने से आपको कोई परेशानी नहीं है, लेकिन फैज़ल की ओर से रेप बारे में किया गया ट्वीट आपको परेशान करता है। हालांकि, इससे मुझे किसी तरह की कोई हैरानी नहीं है।'
उमर ने कहा, 'ऐसा लगता है कि डीओपीटी ने प्रशासनिक सेवाओं से शाह फैज़ल को निकालने का मन बना लिया है। इस पेज की आखिरी पंक्ति चौंकाने वाली और अस्वीकार्य है जहां वे फैज़ल की 'सत्यनिष्ठा और ईमानदारी' पर सवाल उठाते हैं। एक व्यंग्यात्मक ट्वीट बेईमानी कैसे है? यह उन्हें भ्रष्ट कैसे बनाता है?।'
फैज़ल ने कहा, 'मुझे लगता है कि हमें यह समझने की जरूरत है कि सरकारी कर्मचारी समाज में रहते हैं और वे समाज के नैतिक प्रश्नों से पूरी तरह से अलग-थलग नहीं रह सकते हैं। बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक पूरी तरह से अस्वीकार्य है।'
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