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कश्मीर में बातचीत की केंद्र की पहल, अलगाववादियों को बातचीत की मेज पर लाना होगी बड़ी चुनौती

कश्मीर में बातचीत शुरू किए जाने के केंद्र सरकार की पहल का राज्य की मुख्यमंत्री से लेकर विपक्ष के लगभग सभी नेताओं ने स्वागत किया है। हालांकि केंद्र सरकार की इस पहल पर अलगाववादियों ने चुप्पी साध रखी है।

Updated on: 23 Oct 2017, 10:46 PM

highlights

  • केंद्र की कश्मीर पर शुरू की गई बातचीत के प्रस्ताव पर अलगाववादियों ने साधी चुप्पी
  • पिछले अनुभव को देखते हुए केंद्र सरकार के लिए अलगाववादियों को बातचीत की मेज पर लाना बड़ी चुनौती

नई दिल्ली:

कश्मीर में बातचीत शुरू किए जाने के केंद्र सरकार की पहल का राज्य की मुख्यमंत्री से लेकर विपक्ष के लगभग सभी नेताओं ने स्वागत किया है। हालांकि केंद्र सरकार की इस पहल पर अलगाववादियों ने चुप्पी साध ली है। 

केंद्र सरकार की तरफ से पूर्व आईबी (खुफिया ब्यूरो) प्रमुख दिनेश्वर शर्मा को वार्ताकार बनाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेताओं की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। 

कश्मीर पर बाततीच के लिए शर्मा को वार्ताकार बनाए जाने के फैसले की घोषणा करते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, 'उन्हें राज्य में मौजूद हर पक्ष से बात करने की आजादी दी गई है और उन पर किसी तरह की बंदिश नहीं होगी।'

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केंद्र सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हुए राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इस समय की जरूरत बताया।

मुफ्ती ने कहा, 'यह एक अच्छी पहल है और समय की जरुरत है। मैं केंद्र सरकार के इस फैसले का स्वागत करती हूं।' महबूबा ने शर्मा की तारीफ करते हुए कहा कि वह इससे पहले पूर्वोत्तर से जुड़े मामलों में होने वाली बातचीत में शामिल रहे हैं।

NIA की कार्रवाई के चंगुल में अलगाववादी

केंद्र सरकार ने कश्मीर के सभी 'पक्षों' से ऐसे समय में बातचीत की पहल की है, जब करीब 10 से अधिक अलगाववादी नेता कथित टेरर फंडिंग के मामले में गिरफ्तार किए जा चुके हैं।

राज्य की मुख्यमंत्री इससे पहले भी अलगाववादियों और पाकिस्तान के साथ बातचीत की पहल करती रही है लेकिन केंद्र का रुख इसके उलट रहा था।

पैलेट गन के इस्तेमाल रोके जाने के एक मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में साफ कहा था कि वह किसी भी सूरत में अलगाववादियों के साथ बातचीत नहीं करेगा।

उन्होंने कहा, 'लोग इन दिनों बहुत हिंसा देख चुके और उन्हें अब इससे आजादी चाहिए। दोनों पक्षों की तरफ से कोई शर्त नहीं रखी गई है और मैं उम्मीद करती हूं कि सभी संबंधित पक्ष इस मौके का इस्तेमाल करेंगे और बातचीत में अपनी हिस्सेदारी देंगे।'

बातचीत पर मोदी सरकार का बदला रुख

हालांकि 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर पर केंद्र सरकार की संभावित नीति के संकेत दिए थे।
मोदी ने कहा था, 'ना गोली से ना गाली से बल्कि कश्मीर की समस्या सुलझेगी गले लगाने से।'

हालांकि अलगावादी नेताओं के खिलाफ एनआईए की मौजूदा कार्रवाई को लेकर राज्य में सवाल उठने लगे हैं।

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राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने केंद्र की पहल का स्वागत करते हुए कहा, 'जम्मू-कश्मीर में एनआईए जांच का क्या मतलब है? एनआईए जांच निलंबित की जाएगी, क्या बातचीत के लिए बंद हुर्रियत नेताओं पर जांच बंद होगी?'

जम्मू-कश्मीर में शांति और स्थायित्व के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी अलगावादियों से बातचीत के पक्षधर थे और उनके शासनकाल में इस दिशा में कोशिश भी की गई थी, लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकल पाया।

इसके बाद से कश्मीर में 2010 में भयानक हिंसा और अशांति की स्थिति उत्पन्न हुई, जिसके बाद तत्कालीन यूपीए सरकार ने तीन सदस्यीय वार्ताकार को नियुक्त किया, लेकिन उनकी सिफारिशों को सिरे से नजरअंदाज कर दिया गया।

2010 की हिंसा और विरोध प्रदर्शनों की स्थिति पर काबू पाने के बाद राज्य में करीब-करीब शांति रही।

लेकिन 8 जुलाई 2016 को हिजबुल मुजाहिद्दीन के कमांडर बुरहान वानी की मुठभेड़ में हुई मौत के बाद राज्य में हिंसा फिर से भड़क उठी, जिसमें करीब 90 से अधिक लोगों की मौत हुई।

2016 में शुरू हुई इस हिंसा को कई लोगों ने 2010 की वापसी के तौर पर देखा और राज्य की पीडीपी-बीजेपी सरकार पर मौजूदा स्थिति को नजरअंदाज करने का आरोप लगा।

पिछले एक साल में केंद्र सरकार ने कई मौकों पर अलगाववादियों से किसी तरह की बातचीत के संकेत नहीं दिए जबकि राज्य में उनकी गठबंधन सरकार की मुखिया महबूबा लगातार इसकी वकालत करती रहीं।

अलगाववादियों को टेबल पर लाना बड़ी चुनौती

आखिरकार केंद्र ने कश्मीर में बातचीत के लिए वार्ताकार की नियुक्ति कर सभी को चौंकाया, लेकिन सरकार के सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती सभी पक्षों में शामिल एक पक्ष अलगाववादियों को इस बातचीत में शामिल करने की होगी।

यहां यह जानना जरूरी है कि जब 2010 में तत्कालीन धानमंत्री मनमोहन सिंह ने मशहूर दिवंगत पत्रकार दिलीप पडगावंकर, प्रोफेसर एम एम अंसारी और राधा कुमार की सदस्यता वाली समिति का गठन किया था तब अलगाववादियों ने इस समूह से कोई बातचीत नहीं की थी।

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इसकी वजह पहले गठित की गई के सी पंत, एन एन वोहरा और पांच वर्किंग समूहों की सिफारिशों को नजरअंदाज किया जाना रहा।

मौजूदा वार्ताकार के लिए स्थिति इसलिए भी अधिक चुनौतीपूर्ण है क्योंकि अब इस श्रृंखला में मनमोहन सिंह सरकार के समय गठित की गई वार्ताकार समिति की नजरअंदाज की गई सिफारिशें भी शामिल हैं।

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