logo-image

सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग और अफवाहों से निपटने के लिए सरकार कितनी गंभीर है?

हाल ही में सुषमा स्वराज और प्रियंका चतुर्वेदी जब ट्रोलिंग का शिकार हुईं तो सोशल मीडिया पर अफवाहों के साथ-साथ ट्रोलिंग पर नए सिरे से बहस शुरू हुई।

Updated on: 09 Jul 2018, 04:02 PM

नई दिल्ली:

बीते दिनों सोशल मीडिया पर बच्चा चोर की अफवाह फैली और इसी के आधार पर भीड़ ने कई निर्दोषों की जान ले ली। बीते दो महीने में देश के अलग अलग हिस्सों में 22 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है।

ऐसी ही अफवाहों के चलते 2012 में पूर्वोत्तर के लोगों को बेंगलुरू छोड़ना पड़ा था। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों से लेकर जुलाई 2017 में पश्चिम बंगाल में हुई सांप्रदायिक हिंसा तक में सोशल मीडिया की ऐसी ही कई अफवाहों की बड़ी भूमिका थी।

सोशल मीडिया में ट्रोलिंग एक नई और बड़ी समस्या है। वैसे तो कहानियों में डरावने जानवर को ट्रोल कहा जाता था, लेकिन सोशल मीडिया में ट्रोल वो हैं, जो किसी भी मुद्दे पर गैर जरूरी बातों से मुद्दे को ही भटका दे। आपके बारे में उल जलूल बातें लिखें...धमकियां दें।

व्यक्तिगत स्तर पर कोई ऐसा करें तो उसकी मनोवैज्ञानिक दिक्कत हो सकती है, लेकिन दुनियाभर में राजनीतिक दल, सरकारें और बड़ी संस्थाएं तक ट्रोलिंग को बढ़ावा देते हैं। आरोप हमारे दलों और नेताओं पर भी हैं।

हाल ही में सुषमा स्वराज और प्रियंका चतुर्वेदी जब ट्रोलिंग का शिकार हुईं तो सोशल मीडिया पर अफवाहों के साथ-साथ ट्रोलिंग पर नए सिरे से बहस शुरू हुई।

ट्विटर के मुताबिक नई तकनीक के सहारे हर रोज 50 हजार नकली खातों पर रोक लगी है, वहीं व्हाट्सएप ने सख्ती का ऐलान किया है। डेटा चोरी विवाद के बाद फेसबुक भी ऐसा ही ऐलान कर चुका है।

तो क्या सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग बंद हो जाएगी? सोशल मीडिया पर अफवाहें नहीं फैलेंगीं? क्यों राजनीतिक दलों को ट्रोलिंग की जरूरत पड़ती रही है? कैसे नेताओं की आईटी टीम काम करती हैं? क्या इन सबसे निपटने के लिए मौजूदा कानून काफी हैं या सुधार की गुंजाइश है? आप अफवाहों से कैसे बचे?

इसी मुद्दे पर देखिए, मेरे साथ देश के सबसे पसंदीदा डिबेट शो में से एक "इंडिया बोले", आज शाम 6 बजे न्यूज़ नेशन टीवी पर।

और पढ़ें: निर्भया गैंगरेप के दोषियों को मिलेगी फांसी, SC का राहत से इंकार