logo-image

Human Rights Day: दुनिया में मानवाधिकार पाने की जारी है लड़ाई, क्यों मनाते हैं यह दिवस और क्या है भारत की स्थिति?

भारत इस साल वैश्विक भूख सूचकांक में 119 देशों की सूची में 103वें नंबर पर आया था. वहीं मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) की 189 देशों की सूची में 130वें नंबर पर है.

Updated on: 10 Dec 2018, 03:44 PM

नई दिल्ली:

पूरी दुनिया में मानवाधिकारों को लेकर संघर्ष जारी है. आए दिन इसे लेकर हमारे देश या फिर दुनिया के किसी कोने में प्रदर्शन होते रहते हैं. मानव सभ्यता के विकास के साथ कुछ मूलभूत अधिकार और आधारभूत जरूरतें जीवन का हिस्सा बनता चला गया. 10 दिसंबर यानि आज (सोमवार) पूरे विश्व में मानवाधिकार दिवस मनाया जा रहा है। 70 साल पहले इसी दिन सन 1948 को संयुक्त राष्ट्र ने मानव अधिकारों के सार्वभौम (यूनिवर्सल) अधिकारों को अपनाया था. जिसमें मानव समुदाय के लिए राष्ट्रीयता, लिंग, रंग, धर्म, भाषा और किसी भी आधार पर बिना भेदभाव किए बुनियादी अधिकार सुनिश्चित किए गए थे. इससे वैश्विक परिवार के सभी सदस्यों को मानवाधिकार के तहत समान और बिना किसी को अलग किए दुनिया में शांति, न्याय और स्वतंत्रता का आधार मिला.

क्या है मानवाधिकार

व्यक्ति के मानवाधिकार और स्वंतत्रता के विचारों का उदय ब्रिटेन में हुआ है. ब्रिटेन के इतिहास में 1215 का मैग्ना कार्ट, 1679 का हैबियस कॉर्पस एक्ट और 1689 का बिल ऑफ राइट्स मानवाधिकार के विकास की ऐतिहासिक घटनाएं हैं. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र का मानव अधिकारों का सार्वभौम (यूनिवर्सल) घोषणा पत्र मानव अधिकारों के इतिहास में एक सबसे अहम दस्तावेज है.

संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के अनुसार, मानवाधिकार सभी मानव सभ्यता के पास जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, नस्ल, भाषा, धर्म या किसी भी आधार पर भेदभाव किए बिना मिले अधिकारों से हैं. मानव अधिकारों के अंतर्गत जीने का अधिकार और स्वतंत्रता, गुलामी और उत्पीड़न से मुक्ति, विचारों और अभिव्यक्ति की आजादी, काम और शिक्षा का अधिकार के अलावा और भी कई चीजें शामिल हैं. पूरी मानव जाति बिना किसी भेदभाव के इन अधिकारों को पाने का हकदार है.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकारों के सार्वभौम (यूनिवर्सल) घोषणा के अनुच्छेद-1 में ही कहा गया है कि सभी मनुष्य स्वतंत्र रूप से पैदा हुए हैं और सम्मान और अधिकार के मामले में सभी बराबर हैं. समय के साथ मानवाधिकार की परिभाषा में संशोधन कर इसे व्यक्ति की आजादी और अधिकारों के और करीब लाया गया. कई देशों में लोगों ने इसके लिए लड़ाईयों और प्रदर्शनों से अपना हक पाया है वहीं कई देशों में अब भी मूलभूत अधिकारों को पाने की लड़ाई जारी है.

10 दिसंबर को क्यों मनाया जाता है मानवाधिकार दिवस

द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) के दौरान मानव समाज पर ढाए गए जुल्म, सितम और उसके बाद असमानता, हिंसा, भेदभाव को देखते हुए अधिकारों की जरूरत को समझकर संयुक्त राष्ट्र ने यूनिवर्सल मानव अधिकार ड्राफ्ट किया था, जो 10 दिसंबर 1948 को अंगीकृत किया गया. बता दें कि 10 दिसंबर को ही मानव अधिकार के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र का पंचवर्षीय पुरस्कार दिया जाता है.

इस सार्वभौमिक घोषणा के अंदर 30 अनुच्छेद हैं जो व्यक्ति के बुनियादी अधिकारों के बारे में वर्णित है. इस ऐतिहासिक दस्तावेज में मौलिक मानवाधिकारों को पहली बार वैश्विक तरीके से संरक्षित किया गया था और इसे अब तक 500 से अधिक भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है.

मानवाधिकार का ड्राफ्ट औपचारिक रूप से 4 दिसंबर 1950 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के पूर्ण अधिवेशन में लाया गया, जिसके तहत महासभा ने प्रस्ताव 423वीं को घोषित कर सभी देशों और संगठनों को अपने-अपने तरीके से मनाने के लिए कहा गया. इस दिन मानव अधिकार के मुद्दों पर कई बड़े राजनीतिक विमर्श, बैठक और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है.

मानवाधिकारों पर सार्वभौम घोषणा की कुछ जरूरी बातें

सभी व्यक्ति को जीने का अधिकार, स्वतंत्रता और वैयक्तिक सुरक्षा का अधिकार है. किसी को भी गुलामी या दासता की हालत में नही रखा जाएगा. गुलामी प्रथा और गुलामों का व्यापार अपने सभी रूपों में निषिद्ध होगा. किसी को भी शारीरिक रूप से उत्पीड़ित नहीं किया जाएगा और किसी के प्रति निर्दय, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार होगा.

हर किसी को कानून की नजर में व्यक्ति के रूप में स्वीकृति प्राप्ति का अधिकार है. सभी व्यक्ति को संविधान या कानून द्वारा प्राप्त बुनियादी अधिकारों उल्लंघन होने पर राष्ट्रीय अदालतों की समुचित सहायता पाने का अधिकार है. किसी को भी मनमाने ढंग से गिरफ्तार, नजरबंद या देश से निष्कासित नहीं किया जा सकता है.

और पढ़ें : UN में भारत की बड़ी जीत, 3 साल के लिए चुना गया मानवाधिकार परिषद का सदस्य

हर व्यक्ति को देश की सीमाओं के अंदर स्वतंत्रतापूर्वक आने, जाने और बसने का अधिकार है. हर व्यक्ति को सताये जाने पर दूसरे देशों में शरण लेने का और रहने का अधिकार है. हालांकि इसका लाभ ऐसे मामलों में नहीं मिलेगा जो गैर-राजनीतिक अपराधों से संबंधित हैं या जो संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों और सिद्धांतों के विरुद्ध कार्य हो.

सभी व्यक्ति को विचार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धर्म की आजादी का अधिकार है. सभी को शिक्षा का अधिकार है जिसमें कम से कम प्रारंभिक शिक्षा नि:शुल्क और अनिवार्य हो. सभी को विश्राम और अवकाश पाने का अधिकार है. इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र ने कई अधिकारों को लोगों के लिए सुनिश्चित किया जिसे सभी सदस्य देशों ने अपनाया.

कई देशों में मानवाधिकार दूर की कौड़ी

मानवाधिकार पाने की स्थिति में कुछ देशों की स्थिति काफी दयनीय है. शताब्दी के सबसे गंभीर मानवाधिकारों का हनन सीरिया और यमन में चल रहा है. जिसमें युद्धग्रस्त यमन, सीरिया, ईराक, यूक्रेन जैसे देशों में मानवाधिकार सुनिश्चित करना तो दूर, लोग खाने और मौत से बचने को तरस रहे हैं. हाल ही में एक रिपोर्ट के मुताबिक, यमन में युद्ध के तीन साल के भीतर पांच साल की कम उम्र के अनुमानित 85 हजार बच्चों की मौत अत्याधिक कुपोषण से हुई है.

और पढ़ें : जाने अपने अधिकार: स्वच्छ हवा पाना हमारा हक़ और पर्यावरण को बचाना कर्तव्य

यही हाल सीरिया का है जहां 2011 से चल रहे गृह युद्ध में अब तक 5 लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, इनमें हजारों बच्चे शामिल हैं. दिसंबर 2017 में शरणार्थियों के अधिकार समूह (रिफ्यूजी राइट्स ग्रुप) के मुताबिक, अब तक 1.3 करोड़ (13 मिलियन) लोग अपने घर छोड़कर चले गए और शरणार्थी बन गए. साथ ही 35 लाख बच्चों को उनके मूलभूत अधिकारों, शिक्षा जैसी चीजों से वंचित कर दिया गया.

मानवाधिकार मामले में भारत की स्थिति

भारत में भी 28 सितंबर 1993 से मानव अधिकार कानून को लागू किया गया और 12 अक्टूबर 1993 को 'राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग' का गठन हुआ था. जिसके बाद राज्य या केंद्र सरकार के द्वारा व्यक्ति के अधिकार हनन होने पर मानवाधिकार आयोग मामले में हस्तक्षेप करती है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 14,15,16,17,19,20,21,23,24,39,43,45 के तहत देश के अंदर मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की गई है।

संविधान किसी भी व्यक्ति के मानव अधिकारों का हनन होने पर सुप्रीम कोर्ट में संवैधानिक उपचार का अधिकार भी देता है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव मामले में 5 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को लेकर कहा था कि असहमति ही लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व है अगर यह नहीं होगा तो प्रेशर कुकर फट जाएगा.

और पढ़ें : जानें अपने अधिकार: हर व्यक्ति को स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराना सरकार की है ज़िम्मेदारी

इसी साल 6 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-377 को अवैध करार देकर समलैंगिक यौन संबंधों को मंजूरी दी थी जो भारतीय मानवाधिकार इतिहास का एक अभूतपूर्व फैसला है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एलजीबीटीआईक्यू (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर/ट्रांससेक्सुअल, इंटरसेक्स और क्वीर) समुदाय के दो लोगों के बीच निजी रूप से सहमति से सेक्स अब अपराध नहीं है. तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि किसी भी व्यक्ति को अपने शरीर पर पूरा अधिकार है और उसका लैंगिक रुझान उसकी अपनी पसंद का मामला है.

आधारभूत मामलों में भारत की स्थिति बेहद दयनीय

भारतीय संविधान में व्याप्त मौलिक अधिकारों के बावजूद भारत के कई राज्यों में मानवाधिकार की स्थिति बेहद दयनीय है. महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड और बिहार के कई इलाकों में सरकारी नीतियों की उपेक्षा के कारण लोगों को अपना बुनियादी हक नहीं मिल पाया है. पिछले एक साल में सिर्फ झारखंड राज्य में भूख के कारण कई मौतों ने सिस्टम पर सवाल खड़े किए थे. इसके अलावा देश के हर राज्यों में स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधाओं के नहीं मिलने से होने वाली मौतें मानवाधिकार उल्लंघन का स्याह सच है.

भारत इस साल वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में 119 देशों की सूची में 103वें नंबर पर आया था. वहीं मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) की 189 देशों की सूची में 130वें नंबर पर है. इसके अलावा स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में भारत 195 देशों की सूची में 145वें स्थान पर है. जो मानवाधिकार को लेकर भारत की मौजूदा स्थिति को बयां करता है.

और पढ़ें : जानें अपने अधिकार: संविधान हर नागरिक को उपलब्ध कराता है धर्म की आज़ादी

हाल ही में भारत संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार परिषद के सदस्य देशों में दोबारा चुना गया था. भारत को एशिया प्रशांत श्रेणी में कुल 188 वोट मिले थे. भारत का कार्यकाल 1 जनवरी 2019 से 3 साल के लिए शुरू होगा. इससे पहले भारत 2011-14 और फिर 2014-17 के बीच मानवाधिकार परिषद का सदस्य रह चुका है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद का गठन 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मानवाधिकार के मुद्दों से निपटने के लिए किया गया था.