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आज़ादी का 72वां साल: अंग्रेज चले गए लेकिन इन 7 तरीकों से देश के विकास में दे गए योगदान

समस्त देशवासी हर साल 15 अगस्त को अंग्रेजों के चंगुल से आज़ाद होने का जश्न मनाते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि भारत में आज भी कई ऐसी व्यवस्था है जो अंग्रेजों की देन है।

Updated on: 14 Aug 2018, 11:41 AM

नई दिल्ली:

भारत इस बार आज़ादी की 72 वीं सालगिरह मना रहा है। ज़ाहिर है समस्त देशवासी हर साल 15 अगस्त को अंग्रेजों के चंगुल से आज़ाद होने का जश्न मनाते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि भारत में आज भी कई ऐसी व्यवस्था है जो अंग्रेजों की देन है। जैसे कि रेलवे, डाक व्यवस्था, सचिवालय, प्रशासनिक व्यवस्था, टीकाकरण, सेना, भारतीय जनगणना, समाज सुधार और अंग्रेज़ी भाषा।

यानि कि कहीं न कहीं हमारे देश के वैश्वीकरण में अंग्रेजों का भी हाथ है। कई इतिहासकारों का तो यहां तक मानना है कि उस वक़्त की लड़ाई अंग्रेज़ी व्यवस्था के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि राजा-रजवाड़े आदि की खोयी हुई सत्ता को वापस दिलाने के लिए शुरू की गई थी जो आगे चलकर आज़ादी की लड़ाई के रूप में परिणत हो गई।

ख़ैर यह एक अलग विषय है। यहां हमलोग उस विषय पर चर्चा कर रहे हैं जो अंग्रेजों की देन है। 

भारतीय रेल 

आज भारत में एशिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है वहीं एकल सरकारी स्वामित्व के मामले में भारतीय रेल विश्व का दूसरा सबसे बड़ा नेटवर्क है। भारतीय रेलवे के साथ 13 लाख से भी अधिक कर्मचारी जुड़े हैं। बता दें कि 1853 में पहली बार भारत में रेल सेवा का आरंभ किया गया। यह सेवा मुंबई से ठाणे के बीच चलाई गई थी।

हालांकि उस वक़्त 34 किलोमीटर के ट्रैक पर मालगाड़ी चलाई गई थी जिसका मुख्य उद्देश्य सामान की ढुलाई करना था। अब भारतीय रेल का विशाल नेटवर्क विकसित हो चुका है। वीकीपीडिया के मुताबिक 

115,000 किमी मार्ग की लंबाई पर 7,172 स्‍टेशन फैले हुए हैं।


समाजिक सुधार

अंग्रेजी शासनकाल से पहले हमारे देश में सती के नाम पर लाख़ों महिलाएं को उनके पति की चिता के साथ ज़िदा जला दिया जाता था। अंग्रेजों ने सबसे पहले 1829 में पश्चिम बंगाल में और उसके अगले साल देश के कई अन्य हिस्सों मे क़ानून लाकर बंद किया। ज़ाहिर है किसी महिला को सिर्फ इसलिए कि उसका पति मर गया उसे ज़िदा जला देना सबसे क्रूरतम घटना थी।

ऐसे में इस व्यवस्था को ख़त्म करने के लिए अगर सख़्ती नहीं दिखाई जाती तो इतनी आसानी से यह कुप्रथा ख़त्म नहीं होती।

इसके अलावा उस समय दास व्यवस्था भी थी जिसके तहत इंसानों की ख़रीद-फ़रोख़्त होती थी। अंग्रेजों ने 1834 में लॉ कमीशन बनाया और 1860 में इंडियन पैनल कोड, जिसके तहत सदियों पुरानी दास प्रथा को भी ख़त्म किया गया। इसके अलावा महिलाओं के साथ ज़बरन सेक्स को रोकने के लिए 376 सेक्शन के तहत विधिवत सज़ा का प्रावधान किया।

इसके अलावा मध्यकाल में चर्चित बहुपत्नीवाद जिसके तहत एक पुरुष एक से ज़्यादा पत्नियां रख सकता था को भी ख़त्म किया। उन दिनों हिंदू शासकों और बड़े सामंतों में कई बीवियां रखने का रिवाज़ था। अंग्रेजों ने आईपीसी 494 के तहत राजाओं के कई शादियां करने पर रोक लगा दी, जो बाद में हिंदू मैरिज एक्ट 1955 का आधार बना।

उस दौर में बाल-विवाह, छूआछूत व जातिवाद जैसी बुरी प्रथाएं भी थीं जिनको हटाने के लिए अंग्रेजों ने सख़्त क़ानून बनाए। ज़ाहिर है सदियों से परंपरा के नाम पर चल रही कुप्रथा को ख़त्म करने में अंग्रेजों का महत्वपूर्ण योगदान है।

अस्पताल और स्कूलों के चलन की शुरुआत

ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुंबई के सात द्वीपों को मिलाकर एक भू-भाग के तौर पर विकसित किया। इसके बाद 1756 में यहां किंग्स सीमेन्स हॉस्पि‍टल, 1822 में एलफिंसटन
हाईस्कूल, 1853 में रेलवे, 1856 में बॉम्बे स्पिनिंग ऐंड वीविंग कंपनी ताड़देव नाम से मिल, 1857 में मुंबई यूनिवर्सिटी, 1873 में बिजली एवं ट्रांसपोर्ट (बेस्ट ) और 1875 में कारोबारी
गतिविधियों (बॉम्बे स्टॉक एक्चेंज) कू शुरुआत की। समझा जा सकता है कि अंग्रेजों की वजह से ही आज मुंबई व्यवसायिक केंद्र बना हुआ है।

अंग्रेज़ी भाषा और वर्तमान शिक्षा पद्धति
कई बार हंसी मज़ाक में आपने यह कहते सुना होगा कि अंग्रेज चले गए और अंग्रेज़ी छोड़ गए और यही सच भी है। हालांकि इसका संदर्भ ज़्यादातर नकारात्मक रहा है लेकिन सच कहें तो अंग्रेज़ी भाषा की वजह से हम विश्व के अन्य हिस्सों से जुड़ने में कामयाब रहे हैं। इस भाषा ने हमें अन्य देशों को देखने और समझने का नज़रिया दिया है। हालांकि अंग्रेजों ने हमें यह भाषा इसलिए सिखाई थी जिससे कि उन्हें प्रशासनिक सहूलियत हो। इसके साथ ही वर्तमान शिक्षा प्रणाली भी अंग्रेजों की देन है। उनसे पहले बच्चे गुरुकुल और मदरसे में पढ़ने जाते थे। जिससे कि उनकी शिक्षा धर्म के इर्द-गिर्द ही रहती थी लेकिन अंग्रेजों ने स्कूल की स्थापना कर ईसाई धर्म की शिक्षा के साथ इतिहास, भूगोल, व्याकरण, गणित, साहित्य आदि विषयों के पठन-पाठन की भी शुरुआत की।

डाक सेवा
ई कामर्स सेवा आज पूरे भारत के लिए वरदान साबित हो रहा है लेकिन क्या आप जानते हैं कि अगर अंग्रेजों ने डाक सेवा की शुरुआत नहीं की होती तो शायद यह संभव नहीं था। मार्च 1774 में भारत में डाक सेवा की शुरुआत हुई। 1727 में कोलकाता में भारत का पहला पोस्ट ऑफिस शुरु हुआ था।

वहीं 1852 में भारत को सिंध डाक के नाम से अपना पहला डाक टिकट मिला। इसी तरह भारत को 1854 में टेलीग्राम भी मिला।

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भारतीय सेना

आज पूरा देश जिस सेना पर नाज करता है और पूरे विश्व में जिसके शौर्य की गाथा कही जाती है वो भी अंग्रेजों की ही देन है। भारतीय सेना का गठन भी अंग्रेजों के शासनकाल में किया गया था। आज भी सेना के अंदर कई ऐसे नियम-क़ानून माने जाते हैं जो दरअसल अंग्रेजों की देन है। संस्कृति, अऩुशासन और सैन्य गतिविधियां जो भारत की आज़ादी से पहले और आज भी विद्यमान है वो हमें अंग्रजों ने ही सिखाया है।

टीकाकरण
19 सदी के पूर्वार्द्ध और 20 सदी की शुरुआत में हमारे देश में महामारी और चेचक जैसी कई ऐसी बीमारी थी जिसकी वजह से हज़ारों हज़ार की संख्या में लोगों की अकाल मौत होती थी। दरअसल भारतीयों के पास साफ-सफाई और जागरूकता की काफी कमी थी जिसकी वजह से हर साल काफी संख्या में लोग काल के गाल में समा जाते थे।

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अंग्रेजों ने स्थिति को समझते हुए 1892 में एक क़ानून पास किया और टीकाकरण को अमिवार्य कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने साफ सफाई और स्वास्थ्य-संबंधी सुनिश्चित करने के लिए कमिश्नरों की नियुक्ति की।