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हिमाचल चुनाव 2017: कांग्रेस के 'पुश्तैनी' गढ़ 'दून' में क्या सेंध लगा पाएगी बीजेपी?

कई सीटें किसी नेता के लिए खास है तो कुछ पार्टियों के लिए विशेष महत्व रखती हैं। कुछ यही हाल है हिमाचल प्रदेश की दून विधानसभा सीट का, जिसे कांग्रेस का 'पुश्तैनी' गढ़ कहा जाता है।

Updated on: 03 Nov 2017, 03:22 PM

highlights

  • दून विधानसभा में हुए अब तक कुल 11 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सात बार जीत दर्ज की है
  • दून विधानसभा क्षेत्र में चौधरी बिरादरी का दबदबा बताया जाता है
  • हिमाचल प्रदेश की दून विधानसभा सीट को कांग्रेस का 'पुश्तैनी' गढ़ कहा जाता है

नई दिल्ली:

हिमाचल प्रदेश में सत्ता हासिल करने के लिए यूं तो हर सीट का अपना एक अहम किरदार है लेकिन कुछ सीटें ऐसी हैं जहां का सूरते हाल अपनी कहानी खुद बयां करता है। कई सीटें किसी नेता के लिए खास है तो कुछ पार्टियों के लिए विशेष महत्व रखती हैं। कुछ यही हाल है हिमाचल प्रदेश की दून विधानसभा सीट का, जिसे कांग्रेस का 'पुश्तैनी' गढ़ कहा जाता है।

हिमाचल प्रदेश की विधानसभा सीट संख्या-52 दून विधानसभा। शिमला लोकसभा क्षेत्र और सोलन जिले के हिस्से दून की कुल आबादी वर्तमान में 99,238 है जिसमें से 61,269 मतदाता इस बार अपने मत का प्रयोग कर सकेंगे।

दून क्षेत्र में मुख्य रुप से पंजाबी भाषा का प्रभाव है और यहां अधिकतर लोग पंजाबी ही बोलते हैं। दून विधानसभा क्षेत्र में चौधरी बिरादरी का दबदबा बताया जाता है।

यहां 1967 में पहला चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार लेख राम ने जीता था लेकिन उनकी मदद से कांग्रेस ने इस क्षेत्र पर अपना कब्जा इस तरह जमाया कि राज्य में विपक्षी भारतीय जनता पार्टी का कोई नेता उस नींव को हिलाने में कामयाब नहीं हो पाया।

दून विधानसभा में हुए अब तक कुल 11 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सात बार जीत दर्ज की है। साथ ही पिछले पांच विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने चार बार 1993, 1998, 2003 और 2012 में जीत हासिल कर भाजपा को इस क्षेत्र से दूर ही रखा है।

चौधरी बिरादरी का दबदबा और भाजपा के पास कोई बड़ा नाम न होने के कारण भाजपा इस सीट पर जीत के लिए तरसती दिखाई दे रही है। 2007 में भाजपा की विनोद कुमारी इसका अपवाद रही हैं। भाजपा के पास चौधरी बिरादरी का मजबूत जनाधार वाला नेता न होना पार्टी के लिए सिरदर्द बना हुआ है।

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दून विधानसभा क्षेत्र के आंकड़े बताते हैं कि इस क्षेत्र का प्यार और साथ दोनों ही कांग्रेस को बड़े पैमाने पर मिला है। 1990 में जनता दल के टिकट पर चुनाव जीतने वाले चौधरी लज्जा राम ने 1993 में कांग्रेस का हाथ थामा और अगले तीन चुनाव में लगातार कांग्रेस की झोली में ये सीट आती गई।

2007 में भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ने वाली विनोद कुमारी ने दो चुनाव में मिली हार का बदला चुकाते हुए लज्जा राम को करीब 3 हजार वोटों से हराया। लेकिन जनता ने 2012 के चुनाव में फिर से कांग्रेस नेता और लज्जा राम के बेटे राम कुमार को चुना और जीत दिलाई।

राम कुमार ने दून विधानसभा चुनाव 2017 के लिए दोबारा नामांकन दाखिल किया है। विरासत में मिली राजनीति राम कुमार के लिए एक संजीवनी है। राम कुमार को एक विवादास्पद नेता के रूप में जाना जाता है। राम का बहुचर्चित ज्योति मर्डर केस में नाम आया था लेकिन बाद में उन्हें अदालत ने बरी कर दिया था।

हालांकि इस मामले को लेकर राम बहुत आलोचना झेल चुके हैं। इस चुनाव में राम पर अपने पिता की विरासत को आगे ले जाने का दबाव होगा।

वहीं भाजपा ने इस बार परमजीत सिंह पर दांव आजमाया है। 52 वर्षीय परमजीत सिंह ने पिछला चुनाव कांग्रेस पार्टी से टिकट न मिलने के कारण निर्दलीय लड़ा था और चुनाव में वह तीसरे स्थान पर रहे थे। ऐसा पहली दफा हो रहा है कि वह किसी राष्ट्रीय पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी जिला परिषद सदस्य भी रह चुके हैं।

इसके अलावा एक जाति विशेष का दबदबा होने के कारण सिर्फ एक ही निर्दलीय उम्मीदवार इंद्र सिंह ठाकुर मैदान में है।

दून विधानसभा में जहां एक तरफ एक बेटे पर अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने का भार है तो वहीं दूसरी एक पार्टी अपनी जड़ें तलाशने की कोशिश कर रही है। फैसले की घड़ी नजदीक है तो सियासी हलचल बढ़ना लाजमी है। हिमाचल प्रदेश में मतदान 9 नवंबर को होना है।

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