Hamari Sansad Sammelan: चुनावी हार-जीत से परे बिहार की राजनीति का चमकता सितारा रघुवंश प्रसाद सिंह
Hamari sansad Sammelan में भाग लेने आ रहे बिहार की राजनीति के दिग्गज चेहरे रघुवंश प्रसाद सिंह का कद चुनावी हार-जीत से परे रहा है. वह बेबाक और स्पष्टवादी नेता माने जाते हैं.
highlights
- अपने बेबाक बयानों के लिए जाने जाते हैं राजद नेता रघुवंश प्रसाद सिंह.
- बिहार से लेकर केंद्र तक में निभा चुके हैं महत्वपूर्ण जिम्मेदारी.
- गणित में डॉक्टरेट रघुवंश प्रसाद को राजनीतिक गणित की भी है गहरी समझ.
नई दिल्ली.:
राष्ट्रीय जनता दल के दिग्गज नेता और बिहार के वैशाली क्षेत्र से कई बार सांसद रहे डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह भले ही पिछले दो बार से लोकसभा चुनाव हार रहे हों, लेकिन उनके राजनीतिक कद पर इस हार-जीत से कोई फर्क नहीं पड़ा है. विभिन्न मसलों पर अपनी बात खुलकर रखने वाले रघुवंश प्रसाद इस हद तक स्पष्टवादी है कि उन्होंने एनडीए के घटक दल जेडीयू के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक को साथ आने का ऑफर दे दिया. हाल ही में उन्होंने तेजस्वी यादव के बारे में बयान जारी कर बिहार से लेकर केंद्र तक सनसनी फैला दी थी.
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जीवन परिचय
इस बेबाक और मुखर नेता का जन्म 6 जून 1946 को वैशाली के शाहपुर में हुआ था. डॉ. प्रसाद ने बिहार यूनिवर्सिटी से गणित में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की. युवावस्था में उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए आंदोलनों में भाग लिया. 1973 में उन्हें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का सचिव बनाया गया. 1977 से 1990 तक वे बिहार राज्यसभा के सदस्य रहे.
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बिहार की राजनीति में धमक
1977 से 1979 तक वे बिहार राज्य के ऊर्जा मंत्री रहे. इसके बाद उन्हें लोकदल का अध्यक्ष बनाया गया. 1985 से 1990 के दौरान वे लोक लेखांकन समिति के अध्यक्ष रहे. 1990 में उन्होंने बिहार विधानसभा के सहायक स्पीकर का पदभार संभाला. लोकसभा के सदस्य के रूप में उनका पहला कार्यकाल 1996 से प्रारंभ हुआ. वे 1996 के लोकसभा चुनाव में निर्वाचित हुए और उन्हें बिहार राज्य के लिए केंद्रीय पशुपालन और डेयरी उद्योग राज्यमंत्री बनाया गया.
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केंद्र में निभाई जिम्मेदारी
लोकसभा में दूसरी बार वे 1998 में निर्वाचित हुए तथा 1999 में तीसरी बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए. इस कार्यकाल में वे गृह मामलों की समिति के सदस्य रहे. 2004 में चौथी बार उन्हें लोकसभा सदस्य के रूप में चुना गया और 23 मई 2004 से 2009 तक वे ग्रामीण विकास के केंद्रीय मंत्री रहे. इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने पांचवी बार जीत दर्ज की. हालांकि 2014 और 2019 में उन्हें शिकस्त का सामना करना पड़ा है, लेकिन इससे उनके राजनीतिक कद पर कोई फर्क नहीं पड़ा है.
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