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नरोदा पाटिया नरसंहार मामले में सुप्रीम कोर्ट से चार दोषियों को राहत, उमेश सहित चार को जमानत

साल 2002 के बहुचर्चित नरोदा पाटिया नरसंहार मामले में सुप्रीम कोर्ट से चार दोषियों को बड़ी राहत मिली है.

Updated on: 23 Jan 2019, 11:14 AM

नई दिल्ली:

साल 2002 के बहुचर्चित नरोदा पाटिया नरसंहार मामले में सुप्रीम कोर्ट से चार दोषियों को बड़ी राहत मिली है. सर्वोच्च न्यायलय ने उमेश भरवाड़, राजकुमार, हर्षद और प्रकाश भाई राठौड़  को जमानत दी है. हाई कोर्ट ने इस मामले में चारों दोषियों को 10 साल की सज़ा सुनाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने माना कि उन्हें सजा सिर्फ इस आधार पर मिली कि कुछ पुलिसवालों ने घटनास्थल पर उनकी मौजूदगी का बयान दिया. इन चारों के अलावा एक और दोषी प्रकाशभाई राठौड़ को बेटी की शादी के लिए 28 जनवरी से 15 फरवरी तक की जमानत मिली है. बाबू बजरंगी की जमानत अर्जी पर 31 जनवरी को सुनवाई होगी. 

पिछले साल अप्रैल में गुजरात हाई कोर्ट की एक खंड पीठ ने नरोदा पाटिया नरसंहार मामले में बीजेपी की पूर्व मंत्री माया कोडनानी को बरी कर दिया था जबकि बजरंग दल के कार्यकर्ता बाबू बजरंगी की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा. सात साल पहले निचली अदालत ने माया कोडनानी को मुख्य साजिशकर्ता बताते हुए 28 साल की सजा सुनाई थी. इस जनसंहार में 97 लोगों की मौत हुई थी. उस समय गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी थे.

साल 2012 में एसआईटी की अदालत ने कहा था कि माया घटनास्थल पर मौजूद थी, जहां भीड़ ने मुस्लिमों पर हमला किया था. दो साल पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अपने बयान में कहा कि घटना के दिन माया कोडनानी को विधानसभा में साढ़े आठ बजे और सुबह 11 बजे देखा गया था. उन्होंने बयान दिया था कि गुजरात विधानसभा गांधीनगर में है, इसलिए पूर्व मंत्री की दंगे के दिन नरोदा पाटिया में मौजूदगी की बात सही नहीं हो सकती.

एसआईटी अदालत ने अमित शाह के बयान को सबूत मानने से इनकार कर दिया था. हाई कोर्ट ने कई गवाहों के पलट जाने और घटनास्थल पर मौजूद होने के उनके खिलाफ सबूत के आभाव में माया कोडनानी को बरी कर दिया. एक निचली अदालत ने कोडनानी को साल 2002 में गोधरा रेल नरसंहार के बाद भीड़ को उकसाने के आरोप में दोषी करार दिया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. बजरंगी इस दंगे का मुख्य साजिशकर्ता था. 

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क्या था मामला?

गुजरात के गोधरा में 27 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन की एक बोगी में आग लगा दी गई थी, जिसमें झुलसकर अयोध्या से लौटे 59 साधुओं की मौत हो गई थी. इसी घटना का बदला लेने के लिए नरोदा पाटिया जनसंहार को अंजाम दिया गया था. वह देश के इतिहास में सांप्रदायिक दंगे की सबसे भयानक घटना थी. इस दंगे में शामिल लोगों को आपस में बात करते हुए सुना गया था, 'देखो, इसको कहते हैं दिमागदार.. ट्रेन की बोगी में आग हम ही ने लगाई थी और उसमें हमारे जितने मरे, बदले के नाम पर हमने उससे कई गुना ज्यादा जान ले ली.' यह बातचीत जिस शख्स ने सुनी, वह अब इस दुनिया में नहीं है. इसलिए इस षड्यंत्र का कोई सबूत नहीं है.

अगस्त 2009 में शुरू हुआ मुकदमा

इस मामले में अगस्त 2009 में मुकदमा शुरू हुआ और 62 आरोपियों के खिलाफ आरोप दर्ज किए गए. अदालत ने सुनवाई के दौरान 327 लोगों के बयान दर्ज किए. इनमें पत्रकार, पीड़ित, डॉक्टर, पुलिस अधिकारी और सरकारी अधिकारी भी शामिल थे. 29 अगस्त को न्यायधीश ज्योत्सना याग्निक की अध्यक्षता वाली अदालत ने बीजेपी विधायक और पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बाबू बजरंगी को हत्या और षड़यंत्र रचने का दोषी पाया. इनके अलावा 32 और लोगों को भी दोषी करार दिया गया था.