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वर्मा, अस्थाना के अधिकार वापस लिए; राव प्रभारी निदेशक; अस्थाना के खिलाफ जांच कर रही टीम बदली

एक सरकारी आदेश में कहा गया कि अंतरिम उपाय के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली नियुक्ति समिति ने मंगलवार की देर रात संयुक्त निदेशक एम. नागेश्वर राव को तत्काल प्रभाव से सीबीआई निदेशक के पद का प्रभार सौंपा.

Updated on: 24 Oct 2018, 03:56 PM

नई दिल्ली:

केंद्र सरकार ने विवादों में उलझे सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना से सारे अधिकार वापस ले लिए हैं. सूत्रों ने यह जानकारी देते हुए कहा कि देश की शीर्ष जांच एजेंसी के इतिहास में इस तरह का यह पहला मामला है. एक सरकारी आदेश में कहा गया कि अंतरिम उपाय के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली नियुक्ति समिति ने मंगलवार की देर रात संयुक्त निदेशक एम. नागेश्वर राव को तत्काल प्रभाव से सीबीआई निदेशक के पद का प्रभार सौंपा. 

आदेश में कहा गया है, 'कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने मंजूर किया है कि उक्त अंतरिम उपाय के प्रभावी रहने की अवधि के दौरान आईपीएस एम. नागेश्वर राव, जो वर्तमान में सीबीआई के संयुक्त निदेशक के तौर पर काम कर रहे हैं, सीबीआई निदेशक के कर्तव्यों का निर्वाह करेंगे और तत्काल प्रभाव से इस पद का प्रभार ग्रहण करेंगे.' 

बीती रात प्रभारी निदेशक नियुक्त किए जाने के बाद राव ने अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कर रही टीम में बड़े बदलाव कर डाले. उन्होंने इस जांच टीम में बिल्कुल नए चेहरों को शामिल किया है. अधिकारियों ने यह जानकारी दी. 

उन्होंने बताया कि जांच अधिकारी से लेकर पर्यवेक्षण स्तर तक के अधिकारी बदल दिए गए हैं.

अधिकारियों ने बताया कि 1986 बैच के ओड़िशा कैडर के आईपीएस अधिकारी एम. नागेश्वर राव ने पुलिस अधीक्षक के तौर पर सतीश डागर को अस्थाना के खिलाफ दर्ज मामले की जांच का जिम्मा सौंपा है.

पिछले जांच अधिकारी डीएसपी ए. के. बस्सी का 'जनहित' में तबादला कर 'तत्काल प्रभाव' से पोर्ट ब्लेयर भेज दिया गया. सीबीआई की ओर से जारी आदेश में यह जानकारी दी गई. 

डागर इससे पहले डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह के खिलाफ मामलों की जांच कर चुके हैं. 

पुलिस अधीक्षक डागर की ओर से की जाने वाली जांच के पहले पर्यवेक्षण अधिकारी होंगे डीआईजी तरुण गाबा, जिन्होंने व्यापमं घोटाले के मामलों की जांच की थी. संयुक्त निदेशक स्तर पर वी. मुरुगेशन को लाया गया है.

गौरतलब है कि नागेश्वर राव गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारियों - ए.के. शर्मा और प्रवीण सिन्हा - के साथ अतिरिक्त निदेशक का भी प्रभार संभाल रहे थे. 

अभूतपूर्व कदम उठाते हुए सीबीआई ने 15 अक्टूबर को अस्थाना के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि एक मामले के आरोपी को क्लीन चिट देने की एवज में उन्होंने उससे कथित तौर पर रिश्वत ली.

कथित रिश्वत देने वाले सतीश सना के बयान पर यह केस दर्ज किया गया था. सना रिश्वतखोरी के एक अलग मामले में जांच का सामना कर रहा है, जिसमें मांस कारोबारी मोइन कुरैशी की कथित संलिप्तता है. करीब दो महीने पहले अस्थाना ने निदेशक वर्मा के खिलाफ की गई शिकायत में आरोप लगाया था कि सना ने राहत पाने के लिए वर्मा को रिश्वत के तौर पर दो करोड़ रुपए दिए.

सीबीआई ने अस्थाना की टीम में डीएसपी रहे देवेंदर कुमार को भी गिरफ्तार किया है.

जांच एजेंसी ने मंगलवार को दिल्ली की एक अदालत को बताया था कि हाई-प्रोफाइल मामलों की आड़ में सीबीआई में एक ‘‘वसूली रैकेट’’ चलाया जा रहा था.

सीबीआई के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि इसके दो सबसे बड़े अधिकारी कलह में उलझे हैं.

दोनों आला अधिकारियों की कलह उस वक्त सामने आई जब वर्मा ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के समक्ष तत्कालीन अतिरिक्त निदेशक अस्थाना की विशेष निदेशक पद पर तरक्की का विरोध किया. 

वर्मा के विरोध को दर्ज तो किया गया, लेकिन सीवीसी ने एकमत से विशेष निदेशक पद के लिए अस्थाना के नाम को मंजूरी दे दी, जिससे वह जांच एजेंसी में दूसरे सबसे वरिष्ठ अधिकारी बन गए.

एनजीओ कॉमन कॉज ने उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर अस्थाना को विशेष निदेशक बनाए जाने को चुनौती दी थी.

विजय माल्या, अगस्ता वेस्टलैंड और हरियाणा में जमीन अधिग्रहण से जुड़े मामले सहित कई संवेदनशील केस की जांच कर रही एसआईटी के प्रभारी रहे अस्थाना ने 24 अगस्त को वर्मा के खिलाफ एक सनसनीखेज शिकायत कर आरोप लगाया कि उन्होंने एक मामले के आरोपी से दो करोड़ रुपए की कथित रिश्वत ली. 

अस्थाना ने वर्मा के खिलाफ 10 और मामलों में भ्रष्टाचार एवं अनियमितता के आरोप लगाए थे. उन्होंने आरोप लगाया था कि वर्मा ने राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के परिसरों पर छापेमारी रोकने की कोशिश की थी.

सरकार ने यह मामला सीवीसी के हवाले कर दिया था जिसने अस्थाना की शिकायत में दर्ज मामलों की फाइलें तलब की.

अपने जवाब में वर्मा ने आयोग को बताया कि कम से कम छह मामलों में अस्थाना की भूमिका जांच के दायरे में है. इसमें एक मामला गुजरात स्थित स्टर्लिंग बायोटेक की ओर से कर्ज न चुकाने से संबंधित है.

उन्होंने सीवीसी को यह भी बताया कि उनकी गैर-मौजूदगी में दूसरे सबसे वरिष्ठ अधिकारी अस्थाना सतर्कता आयोग की बैठकों में उनका प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते. 

अस्थाना ने सरकार से दखल देने का अनुरोध किया था. उन्होंने कहा था कि वर्मा के खिलाफ लगाए गए आरोपों की स्वतंत्र जांच कराई जाए. 

वर्मा और अस्थाना से जुड़े मामलों की सूचनाओं का जब आधिकारिक स्तर पर आदान-प्रदान हो रहा था, उसी वक्त उन सूचनाओं को मीडिया में भी लीक किया जा रहा था जिससे दोनों अधिकारियों के बीच की कलह खुलकर सामने आ गई.

सीबीआई के पूर्व अधिकारियों ने नाम का खुलासा नहीं करने की शर्त पर बताया कि यह स्थिति ‘‘दुर्भाग्यपूर्ण’’ है और इससे विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के प्रत्यर्पण से जुड़े मामलों पर असर पड़ सकता है. 

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उन्होंने कहा कि जांच एजेंसी के आला अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के मद्देनजर अब आरोपी दलील दे सकते हैं कि उनके खिलाफ लगे आरोप प्रेरित हैं.