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वक्त बदला लेकिन नहीं बदला तो शीर्ष नेताओं का महिमामंडन

ऐसा नहीं कि किसी शीर्ष नेता की इस तरह से पहली बार तारीफ की गई हो। अपने नेताओं की महिमामंडन की परंपरा बहुत पहले से कायम है।

Updated on: 23 Dec 2016, 12:04 AM

नई दिल्ली:

राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। उसके बाद राजनीति तेज़ हो गई। कांग्रेस और बीजेपी के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। दोनों पार्टियां अपने नेताओं के बचाव में आ गईं।

राहुल के आरोप के तुरंत बाद बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर बरसते हुए कहा कि जो शख्स नेशनल हेराल्ड केस में चीटिंग के आरोप में बेल पर हैं वो गंगा समान पवित्र प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं।

ऐसा नहीं कि किसी शीर्ष नेता की इस तरह से पहली बार तारीफ की गई हो। अपने नेताओं की महिमामंडन की परंपरा बहुत पहले से कायम है। हर पार्टी में और हर दौर में ऐसा एक समय आता है जब पार्टी के शीर्ष नेता की चाकरी करते हुए इस परंपरा को परवान चढ़ाने की मिसाल कायम करके सुर्खियां बटोरते हैं।

याद कीजिए इंदिरा गांधी का वह दौर जब देवकांत बरुआ कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष थे और इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री। देवकांत बरुआ ने यह कहकर सबको चौंका दिया था कि 'इंदिरा इज़ इंडिया, इंडिया इज़ इंदिरा'

वेंकैया नायडु का मोदी के लिए दिया गया बयान के बाद बरुआ की मृत आत्मा भी पशोपेश में पड़ गई होगी। जिसमें उन्होंने मोदी को भारत के लिए भगवान का दिया वरदान बताया था।

हद तो तब हो गई जब भगवान और धर्म कर्म में यकीन रखने वाले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नरेंद्र मोदी को दैवीय शक्ति वाला शख्स बताया दिया था।

इतना ही नहीं आरएसएस के कद्दावर दिवंगत नेता अशोक सिंहल ने तो मोदी को अवतारों का अवतार यानी राम का अवतार कहा था।

ऐसा नहीं कि पार्टी के शीर्ष नेता की तारीफ करने वाले नेता आज ही पैदा हुए हों इससे पहले कांग्रेस का पुराना इतिहास रहा है कि वो अपने नेताओं की तारीफ करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। कांग्रेस की राजनीति में ऐसे बयानों की परंपरा बहुत पुरानी रही है।

1. नेताओं की भक्ति को आगे बढ़ाते हुए छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नेता चरण दास महंत ने कहा था कि "मैं वही करता हूं जैसा पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी और राहुल गांधी आदेश देते हैं। अगर सोनिया गांधी आदेश दें तो मैं छ्त्तीसगढ़ के कांग्रेस कार्यालय में झाड़ू लगाने को भी तैयार हूं। उनका आदेश मेरे लिए सर्वोच्च है।" वे यूपीए सरकार में फूड प्रोसेसिंग राज्य मंत्री थे।

2. आज से करीब 34 साल पहले भी इसी तरह का एक बयान सामने आया था जिसमें पंजाब कांग्रेस के कद्दावर नेता और राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ज्ञानी जैल सिंह ने कहा था कि ''मैं इंदिरा गांधी के लिए कुछ भी कर सकता हूं। अगर इंदिरा गांधी कहें तो मैं उनके घर में झाड़ू लगाने को भी तैयार हूं।'' जैल सिंह का यह बयान तब सामने आया था जब उन्हें इंदिरा गांधी ने 1982 में उन्हें राष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित किया था।

3. अपने नेताओं की अंधभक्ति में एक और नाम कांग्रेस से ही आता है आपातकाल के समय कांग्रेस के अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने भी कुछ इसी तरह का बयान दिया था। देवकांत बरुआ का इंदिरा के लिए दिया गया कथन तो कुछ दिनों के लिए नारा सा बन गया था। ऐसा नहीं कि लोग उसे भूल चुके हैं आज भी कांग्रेस के विरोधी इसे मुहावरे के रूप में याद दिलाने से नहीं हिचकते। बरुआ ने अपने बयान में कहा था कि “इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा।”

4. साल 2004 में बीजेपी के चुनाव हारने के बाद कांग्रेस 218 सीटें जीतकर देश की सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। चारो तरफ से यह आवाज उठने लगी थी कि सोनिया गांधी देश के प्रधानमंत्री बनें। लेकिन सोनिया ने ऐसा करने से इंकार कर दिया था। सोनिया के इस इंकार के बाद गुजरात कांग्रेस के कद्दावर नेता और तत्कालीन कपड़ा मामलों के मंत्री शंकरसिंह वाघेला ने सोनिया की तुलना महात्मा गांधी से किया था।

बाघेला ने कहा था कि "महात्मा गांधी के बाद भारतीय इतिहास में त्याग करने वाले लोगों में सोनिया गांधी का नाम आता है।" एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान उन्होंने कहा था कि "भारतीय राजनीति के इतिहास में सोनिया गांधी जैसा महान त्याग किसी और व्यक्ति ने नहीं किया।”