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ISRO जासूसी केस में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, वैज्ञानिक एस नंबी नारायणन को मिली राहत

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में जस्टिस एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने 76 वर्षीय नारायणन को बड़ी राहत दी।

Updated on: 14 Sep 2018, 03:03 PM

नई दिल्ली:

इसरो के टॉप वैज्ञानिक और क्रायोजनिक प्रॉजेक्ट के डायरेक्टर नारायणन के जासूसी मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया। अदालत ने उत्पीड़न का शिकार हुए इसरो वैज्ञानिक को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि इस केस में वैज्ञानिक एस. नंबी नारायणन को 24 साल पहले केरल पुलिस द्वारा बेवजह गिरफ्तार किया गया था। उन्हें (नारायणन) परेशान किया गया और मानसिक प्रताड़ना दी गई।

सुप्रीम कोर्ट ने केरल के पुलिस अधिकारियों की भूमिका की जांच करने का भी आदेश दिया है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में जस्टिस एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने 76 वर्षीय नारायणन को बड़ी राहत दी। नारायणन ने केरल हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

दरअसल, हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि पूर्व डीजीपी और दो रिटायर्ड एसपी केके जोशुआ और एस विजयन के खिलाफ कार्रवाई करने की कोई जरूरत नहीं है, जबकि वैज्ञानिक की गलत गिरफ्तारी के लिए सीबीआई द्वारा ये जिम्मेदार ठहराए गए थे।

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इसके साथ ही कोर्ट ने जासूसी मामले में नारायणन को आरोपित किए जाने की जांच के लिए पूर्व न्यायामूर्ति डीके जैन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय पैनल गठित किया। आपको बता दें कि 1994 के जासूसी मामले में बरी किए गए इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नारायणन तब से कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे।

वैज्ञानिक का कहना था कि उन्हें जासूसी के झूठे केस में फंसाया गया था। जासूसी मामले में नारायणन और एक अन्य को गिरफ्तार कर पुलिस ने दावा किया था कि उन्होंने कुछ गुप्त दस्तावेज पाकिस्तान को दिए थे।

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जांच के बाद सीबीआई ने कहा था कि ये आरोप झूठे हैं। हालांकि फिर से जांच के आदेश दिए गए पर 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले को रद्द कर दिया।

इसके बाद नारायणन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पहुंचे, जहां से 10 लाख रुपये मुआवजे का आदेश दिया गया। हालांकि वह संतुष्ट नहीं हुए और सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए।