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एक ऐसी मौत जिस पर सरकार-विपक्ष दोनों जोगिंदर और अन्नू बन गए

जोगिंदर तुम्हारी इस मौत को कोई भी याद नहीं रखेगा। न तो तुम्हारी मौत देशभक्ति की श्रेणी में गिनी जाएगी और न ही तुम्हारी मौत पर किसी तरह का लोगों में रोष होगा।

Updated on: 07 Aug 2017, 01:35 PM

नई दिल्ली:

जोगिंदर की मौत एक हादसा है या फिर ये घटना प्रशासन की अनदेखी और लापरवाही का नतीजा है। दिल्ली और देश के दूसरे हिस्सों से भी आए दिन सीवर साफ करते मजदूरों की मौत की खबरें आती रहती हैं। इन मौतों को लेकर न तो सरकार की तरफ से किसी तरह की कार्रवाई होती है और न ही जनता में किसी तरह की नाराज़गी दिखती है। सिर्फ आश्वासन देकर खानापूर्ति की जाती है।  

जोगिंदर और अन्नू की मौत एक आम घटना नहीं है, क्योंकि लगातार हो रही इन मौतों से सरकार और प्रशासन का गैर-ज़िम्मेदाराना रवैया नज़र आता है। नेता सिर्फ घड़ियाली आंसू बहाकर सद्भावना व्यक्त कर देता है। लेकिन ज़िन्दगी तबाह होती है उन मज़दूरों के परिवार वालों की जो दो वक्त की रोटी के मोहताज हो जाते हैं।

इन मौतों पर न धरती हिलती है और न ही प्रतिक्रियाएं होती हैं सरकार चाहे जिस पार्टी की हो। 

जोगिंदर और अन्नू हमारा और आपका उस गंदगी को साफ करते हैं जिसके तरफ हम देखना भी पसंद नहीं करते हैं..... और शायद लोग उन्हें भी उसी गंदगी का हिस्सा समझ कर उनके प्रति संवेदनहीन हो जाते हैं। 

मौत पर राजनीतिक दल क्यों चुप हैं

दिल्ली जल मंत्री राजेंद्र गौतम ने इन मौतों को लेकर ट्विटर पर खानापूर्ति कर लिया। ट्विटर के जरिए जांच बिठाने की मांग कर दी। लगे हाथ मौत से हाथ भी खींच लिया और कह दिया कि मृतक न तो दिल्ली जल बोर्ड के कर्मचारी थे और न ही दिल्ली जल बोर्ड द्वारा अधिकृत किए गए थे।

दिल्ली जल बोर्ड दिल्ली सरकार के अधीन है जहां आप की सरकार है। दिल्ली में कई नालियां जो कि एमसीडी के अंतर्गत आती है जहां बीजेपी के पार्षद हैं और विपक्ष में बैठी कांग्रेस तो इस मुद्दे पर पूरी तरह से शांत है। कफन की राजनीति करने वाले सभी दल जोगिन्दर और अन्नू बन बैठे हैं।

तीनों कर्मचारी सीवर के अंदर घुसकर सफाई कर रहे थे तभी जहरीली गैस की चपेट में आने के कारण बेहोश हो गए। बाद में तीनों को निकालकर एम्स के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती करवाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

सैप्टिक टैंकों से उफनने वाली जहरीली गैसों से जिन लोगों की मौत होती है उसमें से ज्यादातर लोग न जाने क्यों आंबेडकर कॉलोनियों में ही रहते हैं।

कैसे करते हैं ये लोग काम

ये लोग जब काम करने उतरते हैं तो इनके बदन पर सिर्फ एक अंडरवियर होता है और अक्सर काम करने से पहले शराब पीते हैं। जरा सोचिए मैनहोलों और सैप्टिक टैंकों में हमारे शरीरों से निकले बजबजाते मल में उतरने से पहले (शराब को मैं जायज नहीं ठहरा रहा) शराब न पिएं तो क्या करें।

उस मैनहोल में जहां धूप अंधेरा होता है। वहां सिर्फ गंदगी होती है। बाकी जो जगह बचे होते हैं उसमें जहरीली गैस भरी होती है। ऐसे में थोड़ी सी असावधानी होते ही कामगार काल के गाल में समा जाते हैं।

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ऐसा नहीं कि दिल्ली में घटी यह कोई पहली घटना है। इससे पहले 15 जुलाई को भी घिटोरनी में चार सफाई कर्मचारियों की मौत हो चुकी है। इसी साल सात मार्च को बंगलौर के कग्गादास नगर के मैनहोल में जहरीली गैस में दम घुटने के कारण अनजनिया रेड्डी, येरैया और धवंती नायडू की मौत हो गई थी।

पिछले साल यानि 2016 में एक मई (मजदूर दिवस) को हैदराबाद में एक मैनहोल साफ करते हुए वीरास्वामी और कोटैया का दम घुटा और दोनों मर गए। 2015 में नोएडा में भी मल साफ करने वाले अशरफ, धान सिंह और प्रेम पाल की मौत हो गई थी।

ये आंकड़े तो महज दिखाने को है। न जाने कितने लोग हैं देश भर में जो इन मैनहोल के गीले और बदबूदार अंधरों में दम तोड़ देते हैं। उनकी मौत न तो सरकार के आंकड़ो में दर्ज होती है।

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