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असम: नागरिकता संशोधन बिल पर टिप्पणी के कारण पत्रकार सहित 3 लोगों पर देशद्रोह का केस दर्ज

असम पुलिस ने साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हीरेन गोहैन, आरटीआई कार्यकर्ता अखिल गोगोई और पत्रकार मंजीत महंता के खिलाफ देशद्रोह का केस दर्ज किया है.

Updated on: 10 Jan 2019, 07:26 PM

गुवाहाटी:

नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 पर टिप्पणी करने के कारण के असम में तीन लोगों के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया है. 7 जनवरी को विरोध प्रदर्शन करने के दौरान इस बिल पर टिप्पणी करने के कारण असम पुलिस ने साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हीरेन गोहैन, आरटीआई कार्यकर्ता अखिल गोगोई और पत्रकार मंजीत महंता के खिलाफ देशद्रोह का केस दर्ज किया है. लोकसभा में मंगलवार को पारित हो चुके नागरिकता संशोधन बिल को लेकर सरकार के खिलाफ राज्य में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं और प्रशासन ने राज्य के कई इलाकों में प्रतिबंध लगा रखे हैं.

गुवाहाटी के पुलिस कमिश्नर दीपक कुमार ने कहा कि पुलिस ने लतसिल पुलिस स्टेशन में अपनी ओर से इन लोगों के खिलाफ धारा-124(ए) और 120(बी) (आपराधिक साजिश) सहित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज किया है.

उन्होंने कहा कि गोहैन, गोगोई और मंजीत महंता के खिलाफ आईपीसी की धारा 121 और 123 (सरकार के खिलाफ लड़ाई छेड़ने की कोशिश) के तहत भी केस दर्ज किया गया है. उन्होंने कहा कि एक मीटिंग के दौरान बिल के खिलाफ टिप्पणी करने के कारण तीनों पर केस दर्ज किया गया है और मामले की जांच की जांच की जा रही है.

ये तीनों एक सामाजिक समूह 'नागरिक समाज' का हिस्सा हैं जो बिल के खिलाफ लगातार विरोध कर रहे हैं. गुवाहाटी विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर और मशहूर साहित्यकार गोहैन ने कहा कि उन्हें मालूम चला है कि उनके खिलाफ देशद्रोह का केस दर्ज किया गया है लेकिन यह नहीं पता है कि किस आधार पर दर्ज किया गया.

उन्होंने कहा, 'मुझे नहीं पता कि किस आधार पर केस दर्ज किया गया है लेकिन मुझे पता चला है कि मेरे खिलाफ आरोप लगाए गए हैं कि मैंने 7 जनवरी को भाषण के दौरान 'स्वतंत्र असम' की बात कही थी.'

अखिल गोगोई मशहूर आरटीआई कार्यकर्ता हैं और कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) के अध्यक्ष हैं. वहीं महंता असम के एक दैनिक अखबार के पूर्व एक्जिक्युटिव एडिटर और स्तंभकार हैं. इससे पहले पिछले साल मई में भी इस बिल के खिलाफ प्रदर्शन करने के कारण अखिल गोगोई को गिरफ्तार किया गया था.

अखिल गोगोई ने केस को लेकर कहा है कि बीजेपी सरकार 'पागल' हो गई है और आपातकाल जैसी स्थिति पैदा करने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा, 'यह दुर्भाग्य है कि गोहैन सर जैसे विद्वान व्यक्ति को सरकार निशाना बना रही है. मैं अपने खिलाफ केस दर्ज होने का आदी हो चुका हूं और जेल जाना मेरे लिए जीवनशैली बन गई है.'

उन्होंने कहा, 'प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवल और राज्य के वित्त मंत्री हेमंत बिस्व सरमा असम के लोगों के हितों की रक्षा करने में असफल रहे हैं. असमवासियों के हितों के संरक्षण की कोशिश के लिए मुझे देशद्रोही कहलाना सम्मान की बात है.'

केएमएसएस की अगुआई में 70 अन्य संगठन ने राज्य के विभिन्न हिस्सों में नागरिकता संशोधन बिल का विरोध कर रहे हैं. 7 जनवरी को बिल के विरोध में राज्य भर में 'काला दिवस' मनाया गया था. इस दौरान अखिल गोगोई ने कहा था, 'भाजपा विधेयक के माध्यम से लोकसभा चुनाव जीतना चाहती है। हमने इसके खिलाफ पहले ही आंदोलन शुरू कर दिया है, जो इस विधेयक के खत्म होने तक जारी रहेगा।'

क्या है नागरिकता संशोधन बिल

लोक यह विधेयक हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाइयों को, जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से बिना वैध यात्रा दस्तावेजों के भारत पलायन कर आए हैं, या जिनके वैध दस्तावेजों की समय सीमा हाल के सालों में खत्म हो गई है, उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए सक्षम बनाता है.

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पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा की खबरों पर टिप्पणी करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने बुधवार को राज्यसभा में कहा था कि विधेयक के बारे में 'गलतफहमी' फैलाई जा रही है. राजनाथ ने कहा था कि विधेयक असम या पूर्वोत्तर के राज्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में लागू होगा.

लगातार हो रहा है विधेयक का विरोध

असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक के खिलाफ लोगों का बड़ा तबका प्रदर्शन कर रहा है. उनका कहना है कि यह 1985 के असम समझौते को अमान्य करेगा जिसके तहत 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई थी, भले ही उसका धर्म कोई भी हो.

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नया विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है. यह विधेयक कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदाय को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता प्रदान करेगा.

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा समेत कुछ अन्य पार्टियां लगातार इस विधेयक का विरोध कर रही हैं. उनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है.

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