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शांति भूषण की याचिका खारिज, SC ने कहा- CJI ही 'मास्टर ऑफ रोस्टर'

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण की मांग को खारिज करते हुए कहा कि मुख्य न्यायाधीश ही मास्टर ऑफ रोस्टर होता है।

Updated on: 06 Jul 2018, 02:05 PM

ऩई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण की मांग को खारिज करते हुए कहा कि मुख्य न्यायाधीश ही मास्टर ऑफ रोस्टर होता है। उसके पास ही अलग-अलग बेंच को केस आवंटित करने का अधिकार होता है।

पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने मांग की थी कि केस आवंटित करने का अधिकार सिर्फ चीफ जस्टिस को नहीं होना चाहिए। 5 वरिष्ठतम जजों को मिल कर मुकदमों का आवंटन करना चाहिए।

जिसका अटॉर्नी ऑफ जनरल के के वेणुगोपालन ने विरोध करते हुए कहा कि यह अव्यवहारिक है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'पहले भी कई फैसलों में ये साफ किया जा चुका है कि चीफ जस्टिस 'मास्टर ऑफ रोस्टर' हैं। उन्हें ही जजों को केस आवंटित करने का अधिकार है। केसों के आवंटन में सीजीआई का मतलब चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया है ना कि कॉलेजियम। संविधान सीजीआई के मुद्दे पर मौन है लेकिन परपंरा और बाद के फैसलों में सभी द्वारा माना गया है कि सीजीआई बराबर में सबसे पहले हैं। वरिष्ठतम होने की वजह से उन्हें ये अधिकार है।'

दो जजों की बेंच ने अलग-अलग आदेश में कहा कि मामलों को आवंटित करने और बेंच नामित करना सीजेआई का विशेषाधिकार होता है।  अदालत ने इस प्रक्रिया को प्रभावित करने को लेकर भी चेताते हुए कहा कि इससे न्यायपालिका की आजादी बाधित हो सकती है। 

जस्टिस ए के सीकरी ने कहा, ' न्यायिक प्रणाली के लिए लोगों के दिमाग में न्यायपालिका का क्षरण सबसे बड़ा खतरा है।' जस्टिस सीकरी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश होने के नाते, न्यायपालिका के प्रवक्ता और नेता हैं।

जस्टिस अशोक भूषण ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट की समृद्ध परंपरा रही है। समय-समय पर यह सही साबित हुई है। लिहाजा, इसमें छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए।' उन्होंने कहा कि कोई भी सिस्टम आसान नहीं होता है और न्यायपालिका के कामकाज में हमेशा सुधार के लिए गुंजाइश है।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल  से केस में सहयोग मांगा था कि जजों की नियुक्ति का तरह क्या संवेदनशील केसों के आवंटन के मामले में CJI का मतलब कॉलेजियम होना चाहिए। 

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