logo-image

संसद में फिर गूंजा 'सीबीआई तोता है', जानिए इसे 'पिंजरे का तोता' क्यों कहा गया था

कभी ये नारा यूपीए सरकार के दौरान बीजेपी लगाया करती थी, लेकिन इस बार तस्‍वीर जुदा थी. आइए हम आपको बताते हैं कि सीबीआई को तोता क्‍यों कहा गया.

Updated on: 04 Feb 2019, 12:43 PM

नई दिल्‍ली:

पश्‍चिम बंगाल की ममता सरकार और केंद्र CBI को लेकर आज आमने-सामने है. चिटफंड घोटालों (Chitfund Scam) के सिलसिले में कोलकाता के पुलिस आयुक्त राजीव कुमार (Rajiv Kumar) से पूछताछ की सीबीआई (CBI) की कोशिश के खिलाफ रविवार रात से धरने पर बैठीं हैं. पश्चिम बंगाल (West Bengal) की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी धरने पर बैठी हैं. इसको लेकर संसद के दोनों सदनों में जबरदस्‍त हंगा हो रहा है. हंगामें के बीच संसद में लगातार सीबीआई तोता है के नारे लग रहे थे. कभी ये नारा यूपीए सरकार के दौरान बीजेपी लगाया करती थी, लेकिन इस बार तस्‍वीर जुदा थी. आइए हम आपको बताते हैं कि सीबीआई को तोता क्‍यों कहा गया.

यह भी पढ़ेंः ममता बनर्जी के साथ धरने पर बैठने वाले कोलकाता कमिश्‍नर राजीव कुमार पर होगी कार्रवाई

दरअसल सीबीआई के पूर्व निदेशक सरदार जोगेंद्र सिंह ने एक साक्षात्कार में कहा था, जांच एजेंसी के पास एक वकील रखने का अधिकार तो है नहीं. गिरफ़्तारी हो या चार्जशीट, हर बात के लिए सरकार से मंजूरी लेनी पड़ती है. इस इंतजार में कई बार साक्ष्य नष्ट हो जाते हैं. अफसोस की बात है कि आजादी के इतने सालों बाद भी यह जांच एजेंसी डीएसपीई एक्ट के तहत चल रही है.

यह भी पढ़ेंः CBI vs Mamata LIVE: जावड़ेकर ने कहा- ममता बनर्जी संविधान की हत्या कर रही हैं TMC Protest LIVE

सीबीआई को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान करने के लिए इसे संवैधानिक दर्जा देना होगा. इस एजेंसी को राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाने का एकमात्र यही तरीका है. डॉ. एनएस चौधरी कहते हैं कि दिल्ली हाईकोर्ट ने जयदेव बनाम भारत सरकार केस में कहा था, सीबीआई का अपना डायेक्टर प्रोसिक्यूशन होगा. बाद में जांच एजेंसी ने इसकी स्वायत्तता पर भी अंकुश लगाकर इसे पुलिस नियमों के मुताबिक काम लेना शुरू कर दिया.

यह भी पढ़ेंः नए सीबीआई निदेशक ऋषि कुमार शुक्ला ने सोमवार सुबह संभाला पदभार, जानें उनके बारे में

सीबीआई को संवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए दोनों सदनों में अलग-अलग दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास होना जरुरी है. सीबीआई के पूर्व निदेशक यूएस मिश्रा ने एक साक्षात्कार में कहा था, पूर्ण स्वायत्तता न होने के कारण जांच एजेंसी को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. पूर्व दूरसंचार मंत्री सुखराम के मामले में निदेशक को पीएम ने बड़ी मुश्किल से मिलने का समय दिया था.

यह भी पढ़ेंः पश्चिम बंगाल के राज्यपाल ने भेजी केंद्र को रिपोर्ट, जानिए क्‍या कहा गवर्नर ने

पूर्व निदेशक आरके राघवन ने भी स्वीकारा था कि जांच एजेंसी पर राजनीतिक दबाव रहता है. हर बात में मंजूरी लेनी पड़ती है, मामलों की जांच में देरी होती है, नतीजा कोर्ट की फटकार खाओ. इससे बचाव का एक ही तरीका है कि जांच एजेंसी को पर्याप्त स्वायत्तता और अधिकार दिए जाएं.