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आम बजट 2017 से पहले जानें बजट से जुड़ी मुश्किल बातें, आसान भाषा में!

1 फरवरी को आम बजट 2017 पेश होना है ऐसे में ऐसे कई मुश्किल बातें जो नहीं पता है जानें आसान भाषा में।

Updated on: 31 Jan 2017, 02:46 PM

नई दिल्ली:

1 फरवरी को आम बजट 2017 पेश होना है। वित्त मंत्री अरुण जेटली संसद में बजट पेश करेंगे। कई बार बजट के दौरान कुछ ऐसे टर्म इस्तेमाल होते हैं जो आम लोगों की समझ से काफी दूर होते हैं। आइए आसान भाषा में जानें कुछ ऐसे ही टर्म जो बहुत महत्वपूर्ण होते हैं और इन्हें जानना बेहद ज़रुरी है।    

क्या है रिसिट्स/एक्सपेंडिचर 

i) कैपिटल रिसिट/एक्सपेंडिचर: ऐसे खर्चे या फिर खर्चों की रिसिट जिनके बदले लिक्विडिटी उत्पन्न होती है, उन्हें कैपिटल रिसिट कहा जाता है। उदाहरण के लिए मान लें कि अगर सरकार अपनी होल्डिंग वाली कंपनी का विनिवेश करती है जैसे कि मारुति कंपनी में किया गया था, तो ऐसे खर्चों को कैपिटल एकाउंट में रखा जाता है। यानि की इनकी बिक्री या बेचने से प्राप्त हुई आय को कैपिटल रिसिट या एक्सपेंडिचर कहा जाता है।

ii) रेवेन्यु रिसिट्स/एक्सपेंडिचर: ऐसी रिसिट्स या खर्चें जिनसे रेवेन्यु पैदा नहीं किया जा सकता है रेवेन्यु एकाउंट के अंदर रखा जाता है। करों को महत्वपूर्ण रेवेन्यु रिसिट माना जाता है। जबकि ऐसा कोई खर्च जिनसे एसेट बनाए नहीं जा सकते उन्हें रेवेन्यु एक्सपेंडिचर कहा जाता है। सैलरी, सब्सिडीज़ और इंटरेस्ट पेयमेंट्स रेवेन्यु एक्पेंडिचर का अच्छा उदाहरण है। 

iii) प्लान एक्सपेंडिचर: राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के वित्तीय खर्चों के लिए केंद्रीय बजट सहयोग देता है और उसके अनुसार प्लानिंग करता है। सभी बजट प्रमुखों की तरह यह भी रेवेन्यु और कैपिटल कंपोनेट्स के बीच बंटा होता है। 

iv) नॉन प्लान एक्सपेंडिचर: यह सरकार का सबसे बड़ा रेवेन्यु एक्सपेंडिचर होता है। सबसे बड़े खर्चों में इंटरेस्ट पेयमेंट्स, सब्सिडियों के खर्च, सैलरी के खर्चे, डिफेंस और पेंशन के खर्चे शामिल है। 

कर यानि टैक्स

i) डायरेक्ट टैक्स: इन करों का बोझ सीधे तौर पर उस व्यक्ति पर पड़ता है जिस पर यह टैक्स लागू होते हैं। डायरेक्ट टैक्स सीधे तौर पर व्यक्ति विशेष या कंपनी पर लगाया जाता है। उदाहरण के लिए एक टैक्सभोगी सीधे तौर पर सरकार को डायरेक्ट टैक्स कई चीज़ों के लिए देता है जिसमें रियल प्रॉपर्टी टैक्स, निजी प्रॉपर्टी टैक्स, इनकम टैक्स या एसेट टैक्स शामिल है।

ii) इनडायरेक्ट टैक्स: अमूमन इनडायरेक्ट टैक्स सीधे तौर पर व्यक्ति विशेष पर नहीं पड़ता लेकिन उनका भुगतान वस्तुओं की बिक्री या खरीद पर लगता है। यह ज़्यादातर खर्चों जैसे कस्टम, एक्साइज़ और सर्विस टैक्स के रुप में लगता है। 

iii) नॉन टैक्स रेवेन्यु: इसमें ज्यादातर वो रिसिट्स आते हैं जो इंटरेस्ट भुगतान के लिए होते हैं (जैसे सरकार द्वारा राज्यों को दिए गए लोन के बदले मिलने वाली रकम, रेलवे को दिए लोन पर मिलने वाली रकम आदि।) इसके अलावा सरकारी कंपनियों को दिए गए डिविडेंड्स और उनके द्वारा मिलने वाले मुनाफे की रकम आदि। सरकार द्वारा संचालित कई अन्य क्षेत्र जैसे पुलिस, डिफेंस और कम्युनिटी सर्विसेज़ ( मेडिकल सेवाएं और आर्थिक सेवाएं), बिजली रेलवे सेक्टर भी सरकार के लिए रेवेन्यु जुटाते हैं।

iv) कॉरपोरेट टैक्स: कंपनियों के मुनाफे पर लगने वाला टैक्स

v) इनकम टैक्स: कॉरपोरेट टैक्स के अलावा आय पर लगने वाले अन्य टैक्स उदाहरण के लिए नॉन-कॉरपोरेट्स और प्रति व्यकित से मिलने वाला इनकम टैक्स।

vi) सर्विस टैक्स: यह सेवाओं पर लगने वाला टैक्स होता मसलन टेलीफोन बिल, बिजली बिल आदि पर लगने वाला टैक्स आदि।

vii) फ्रिंज बैनेफिट टैक्स: कंपनी के द्वारा अपने कर्मचारियों को सैलरी/भत्ते के अतिरिक्त फ्रिंज बेनेफिट ( perks/ भत्तों को) सुविधाओं पर लगाए जाने वाले कर को फ्रिंज बैनेफिट टैकस कहा जाता है। यह पहली बार सरकार ने 2005-06 के बजट में शुरु किया था। अब कंपनियों को अपने फ्रिंज बैनेफिट खर्चों पर कुछ प्रतिशत कर के रुप में सरकार को चुकाना होगा।

viii) सिक्टयोरिटीज़ ट्रांसेक्शन टैक्स: ऐसी किसी भी प्रॉपर्टी या शेयर की बिक्री जिस पर मुनाफा या नुकसान हो। एसेट को होल्डिंग के समय को देखते हुए, उससे हुए फायदे या नुकसान को ऐसे देखा जाता है।

ix) लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन या शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स: 2004-05 के बजट में सरकार ने लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स को ख़त्म कर उसकी जगह एसटीटी यानि सिक्योरिटी ट्रांसेक्शन टैक्स लगा दिया था। 

x) कस्टम ड्यूटी: आयात पर लगाए गए टैक्स को कस्टम कहते हैं। हालांकि यह रेवेन्यु के लिहाज से महत्वपूर्ण है लेकिन कस्टम ड्यूटी घरेलू इंडस्ट्री और सेक्टर को बचाने के लिए लगाया जाता है। 

घाटा यानि डेफेसिट

i) रेवेन्यु डेफेसिट: रेवेन्यु रिसिट्स के अंतर्गत ज़्यादा रिसिट्स बांटने के चलते जो घाटा होता है उसे रेवेन्यु डेफेसिट कहते हैं। रेवेन्यु खाते में अगर खर्चे रिसिट्स से ज़्यादा हो जाते हैं तो रेवेन्यु डेफेसिट होता है।

ii) वित्तीय घाटा यानि फिस्कल डेफेसिट: जब सरकार के अपने गैर-उधारी खाते से खर्चे पूरे नहीं कर पाती और सरकार को खर्चें पूरा करने के लिए उधार लेना पड़ता है तो उसे वित्तीय घाटा कहता है।

iii) प्राइमरी घाटा: रेवेन्यु एक्पेंडिचर में सरकार के पिछले उधार पर ब्याज दर की रकम शामिल की जाती है। प्राइमरी घाटे के आंकलन के लिए वित्तीय घाटे से ब्याज दर के भुगतान की रकम को निकाल दिया जाता है। प्राइमरी घाटे में कमी वित्तीय घाटे की बढ़िया सेहत को दर्शाती है। बजट दस्तावेजो में घाटे को जीडीपी की तुलना में दर्शाया जाता है। 

iv) करंट एकाउंट डेफेसिट चालू खाता घाटा: यह देश के व्यापारिक रुझान को बताता है। यह तब होता है जब देश में गुड्स एंड सर्विसेज़ का निर्यात के मुकाबले आयात ज़्यादा होता है।

मुद्रास्फीति या महंगाई

i) होलसेल प्राइस इंडेक्स: यह महंगाई मापन की दर है, इसके अंतर्गत होलसेल गुड्स पर कीमतों की दर मापी जाती है।

ii) कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स: इसके अंतर्गत हाउसहोल्ड चीज़ों के दाम की कीमत की दर मापी जाती है।

अन्य बड़ी बातें -

i) पर्चेज़िंग पावर पैरिटी: पर्चेंज़िग पावर पैरिटी कई देशों की मुद्राओं को एक स्तर पर मापने की प्रणाली को कहते है। इससे यह पता लगता है कि एक चीज़ को खरीदने के लिए उन देशों की मुद्राओं की क्षमता क्या है और फिर उस चीज़ की कीमत को एक स्तर पर रख कर मापा जाता है।

ii) वार्षिक वित्तीय विवरण या एन्युअल फाइनेंशियल स्टेटमेंट: संविधान की धारा 113 के मुताबिक सरकारको संसद में रिसिट्स और खर्चों का एक अनुमान हर वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च के बीच देना होता है। इसे एन्युअल फाइनेंशियल स्टेटमेंट यानि वार्षिक वित्तीय विवरण कहा जाता है। यह अमूमन 10 पेजों का होता है। यह तीन भागों में विभाजित होता है। कंसोलिडेटेड फंड, कंटीजेंसी फंड और पब्लिक एकाउंट।

iii) आक्समिक निधि कोष- कंटीन्जेंसी फंड: किसी भी तत्काल या अप्रत्याशित खर्च को आकस्मिक निधि कोष से पूरा किया जाता है। 500 करोड़ रुपये के इस फंड का इस्तेमाल राष्ट्रपति की अनुमति के बाद किया जाता है। इस फंड के इस्तेमाल के लिए संसद की भी अनुमति की ज़रुरत होती है और जो रकम निकाली जाती है उसे ब्याज के साथ जमा करनी होती है।