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बोफोर्स मामला: अटॉर्नी जनरल के विरोध के बावजूद 14 साल बाद SC पहुंची CBI

बोफोर्स मामले में सीबीआई ने 2005 के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मामले में हाई कोर्ट ने सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया था।

Updated on: 03 Feb 2018, 11:46 AM

नई दिल्ली:

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने शुक्रवार को दिल्ली हाई कोर्ट के वर्ष 2005 के उस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसमें बोफोर्स 155 एमएम होवित्जर तोप की खरीद से संबंधित भ्रष्टाचार मामले में ब्रिटेन स्थित हिंदुजा बंधुओं श्रीचंद, गोपीचंद और प्रकाश हिंदुजा को बरी कर दिया गया था।

सीबीआई ने वर्ष 2005 में हाई कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध अपनी याचिका में कुछ नए तथ्यों के बारे में बताया है, जिसकी जांच कराए जाने का आधार बनाकर बोफोर्स मामले को दोबारा खोलने की मांग की गई है।

सीबीआई ने हालांकि 'नए तथ्यों' की ओर इशारा किया है, लेकिन 12 वर्ष लंबे अंतराल के बाद याचिका पर सुनवाई का निर्णय लेना सुप्रीम कोर्ट के लिए आसान नहीं होगा।

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सरकार को बताया कि उनके विचार में वर्ष 2005 में दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय के विरुद्ध इतने लंबे समय बाद याचिका दाखिल करने का औचित्य सिद्ध करना मुश्किल होगा।

कार्मिक सचिव को लिखे एक पत्र में वेणुगोपाल ने कहा है, 'इस निर्णय के 12 वर्ष से ज्यादा समय गुजर गए हैं। इस समय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष इस संबंध में याचिका, मेरे विचार में देरी के आधार पर संभवत: खारिज कर दी जाएगी।'

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सूत्रों के अनुसार, हालांकि बाद में वेणुगोपाल ने 2005 के आदेश को चुनौती देने के एजेंसी के कदम को अपनी मौखिक सहमति दे दी।

वर्ष 2005 में हिंदुजा बंधुओं को इस मामले से बरी करने के फैसले को वकील अजय अग्रवाल ने चुनौती दी है, जोकि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हुए हैं।

अग्रवाल की याचिका पर 16 जनवरी को सुनवाई के दौरान अतिरिक्त महाधिवक्ता मनिंदर सिंह ने अदालत से कहा कि सीबीआई ने इस फैसले को चुनौती नहीं दी, जबकि उसे ऐसा करने की सलाह दी गई थी और निर्णय को चुनौती दिए जाने की जरूरत है।

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