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सलमान खान को जेल पहुंचाने में किसका है हाथ, जानें पूरा मामला

राजस्थान के जोधपुर में काला हिरण शिकार मामले में कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने इस मामले में सलमान खान को दोषी मानते हुए पांच साल की सजा सुनाई है।

Updated on: 05 Apr 2018, 03:58 PM

नई दिल्ली:

राजस्थान के जोधपुर में काला हिरण शिकार मामले में कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने इस मामले में सलमान खान को दोषी मानते हुए पांच साल की सजा सुनाई है।

कोर्ट ने बाकी सभी आरोपी अभिनेत्री तब्बू, सोनाली, नीलम, अभिनेता सैफ अली खान और दुष्यंतसिंह को बड़ी राहत दी है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इन सभी को बरी कर दिया है।

सलमान खान को सजा दिलाने में बिश्नोई समुदाय ने अहम भूमिका निभाई है। दरअसल, बिश्नोई समुदाय 29 नियमों का पालन करता है। 29 नियमों का पालन करने के कारण ही बिश्नोई शब्द 20 (बीस) और 9 (नौ) से मिलकर बना है। 1485 में गुरु जम्भेश्वर भगवान ने इसकी स्थापना की थी। वन्यजीवों को यह समाज अपने परिवार जैसा मानता है और पर्यावरण संरक्षण में इस समुदाय ने बड़ा योगदान दिया है।

बिश्नोई समुदाय के लोग जाति, धर्म में विश्वास नहीं करते हैं। इसलिए हिन्दू-मुसलमान दोनों ही जाति के लोग इनको स्वीकार करते हैं। जंभसार लक्ष्य से इस बात की पुष्टि होती है कि सभी जातियों के लोग इस संप्रदाय में दीक्षित हुए।

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बिश्नोई समाज की महिलाएं हिरण के बच्चों को अपना बच्चा मानती हैं। यह समुदाय राजस्थान के मारवाड़ में है। प्रकृति को लेकर इस गांव में बहुत अधिक प्यार है, खासकर हिरण को लेकर। यहां के पुरुषों को जंगल के आसपास कोई लावारिस हिरण का बच्चा या हिरण दिखता है तो वह उसे घर पर लेकर आते हैं, बच्चों की तरह उनकी सेवा करते हैं। यहां तक कि महिलाएं अपना दूध तक हिरण के बच्चों को पिलाती हैं। ऐसे में एक मां का पूरा फर्ज वे निभाती दिखती हैं। कहा जाता है कि पिछले 500 सालों से यह समुदाय इस परंपरा को निभाता आ रहा है।

इस समाज के पर्यावरण प्रेम को इस उदाहरण से समझा जा सकता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 1736 में जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव में बिश्नोई समाज के 300 से ज्यादा लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान दे दी।

बताया यह भी जाता है कि राज दरबार के लोग इस गांव के पेड़ों को काटने पहुंचे थे, लेकिन इस समुदाय के लोग पेड़ों से चिपक गए और विरोध करने लगे। इस समाज में उन 300 से ज्यादा लोगों को शहीद का दर्जा दिया गया है। इस आंदोलन की नायक रहीं अमृता देवी जिनके नाम पर आज भी राज्य सरकार कई पुरस्कार देती है।

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