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नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में बीजपी नेता ने दिया इस्तीफा

इस विधेयक के विरोध में बीजेपी से इस्तीफा देने वाले बोरा पहले अहम व्यक्ति हैं. उन्होंने असम बीजेपी के अध्यक्ष रंजीत कुमार दास को अपना इस्तीफा सौंपा.

Updated on: 08 Jan 2019, 07:13 PM

गुवाहाटी:

लोकसभा में नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 पारित होने के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) प्रवक्ता मेहदी आलम बोरा ने पार्टी के सभी पदों से मंगलवार को इस्तीफा दे दिया. इस विधेयक के विरोध में बीजेपी से इस्तीफा देने वाले बोरा पहले अहम व्यक्ति हैं. उन्होंने असम बीजेपी के अध्यक्ष रंजीत कुमार दास को अपना इस्तीफा सौंपा. नागरिकता संशोधन विधेयक मंगलवार को लोकसभा में चर्चा के बाद पास हो गया. इससे पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सोमवार को ही बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के गैर मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता प्रदान के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी दी थी.

बोरा ने इस्तीफे के पत्र में कहा, 'मैं नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध करता हूं. मुझे लगता है कि इससे असमिया समुदाय को नुकसान पहुंचेगा. विधेयक से असम की भाषा, संस्कृति पर संकट लाएगा और असम समझौते को पूरी तरह से अमान्य कर देगा.'

उन्होंने कहा कि इसके कारण असम समाज के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को भी नुकसान पहुंचेगा. मैं हमेशा से इस बिल का विरोध करता आया था. उन्होंने कहा, 'लोकसभा में बिल पारित होने के बाद मैं बीजेपी के साथ सहमत नहीं हो सका और इसलिए पार्टी की प्राथमिक सदस्यता सहित अन्य सभी पदों से इस्तीफा दे दिया.'

बीजेपी की सहयोगी एजीपी ने भी सरकार का साथ छोड़ा

असम में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में सहयोगी असम गण परिषद (एजीपी) ने सोमवार को समर्थन वापस ले लिया था. एजीपी पिछले काफी समय से असम नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 का विरोध कर रही थी. एजीपी असम में भाजपानीत गठबंधन सरकार में बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट के साथ सहयोगी थी और पार्टी के तीन विधायक मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल के मंत्रिमंडल का हिस्सा हैं.

सरकार से निकलने के बाद एजीपी अध्यक्ष अतुल बोरा ने कहा था, 'हमने इस विधेयक को खत्म करने के लिए संयुक्त संसदीय समिति, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री समेत हर किसी से मिले लेकिन दुर्भाग्य से यह नहीं हो सका. चुंकि हम सरकार का हिस्सा थे, इसलिए सरकार के साथ बने रहने के लिए अपना बेहतरीन दिया था. लेकिन हमें लगा कि बीजेपी सरकार बिल पारित करने के लिए प्रतिबद्ध है. राजनाथ सिंह से मिलने के बाद यह सुनिश्चित हो गया.'

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एजीपी के गठबंधन तोड़ने से हालांकि असम में गठबंधन वाली बीजेपी सरकार को कोई खतरा नहीं है. 126 सदस्यों वाली असम विधानसभा में बीजेपी के 61 सदस्य हैं और उसे एक निर्दलीय विधायक का समर्थन प्राप्त है जबकि इसके सहयोगी बीपीएफ के 13 सदस्य हैं, एजीपी के 14 विधायक, कांग्रेस के 24 और एआईयूडीएफ के 13 सदस्य हैं.

लगातार हो रहा है विधेयक का विरोध

असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक के खिलाफ लोगों का बड़ा तबका प्रदर्शन कर रहा है. उनका कहना है कि यह 1985 के असम समझौते को अमान्य करेगा जिसके तहत 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई थी, भले ही उसका धर्म कोई भी हो.

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नया विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है. यह विधेयक कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदाय को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता प्रदान करेगा.

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा समेत कुछ अन्य पार्टियां लगातार इस विधेयक का विरोध कर रही हैं. उनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है.