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बीजेपी पर भारी पड़ा संघ, RSS के चहेते योगी आदित्यनाथ बने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चुने जाने के मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पसंद बीजेपी पर भारी पड़ी है। पूर्वांचल में हिंदू राजनीति का अगुआ रहे योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री बनाया गया है। योगी का नाम आखिरी वक्त में सामने आया और बीजेपी विधायक दल की बैठक में उन्हें नेता चुन लिया गया।

Updated on: 18 Mar 2017, 09:44 PM

highlights

  • राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और बीजेपी के बीच संघर्ष में बीजेपी पर भारी पड़ा संघ
  • संघ को नजरअंदाज कर मुख्यमंत्री के नाम पर फैसला नहीं लिया जा सकता था
  • मोदी और शाह की कोशिश अपने विश्वासपात्र को मुख्यमंत्री बनाने की थी
  • लेकिन संघ गोरखपुर सांसद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने में सफल रहा है

New Delhi:

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चुने जाने के मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पसंद बीजेपी पर भारी पड़ी है। पूर्वांचल में हिंदू राजनीति का अगुआ रहे योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री बनाया गया है। योगी का नाम आखिरी वक्त में सामने आया और बीजेपी विधायक दल की बैठक में उन्हें नेता चुन लिया गया।

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए मुख्यमंत्री के नाम पर फैसला लिए जाने में हो रही मुश्किलों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां संघ को नजरअंदाज कर मुख्यमंत्री के नाम पर फैसला नहीं लिया जा सकता था

वहीं मोदी और शाह की कोशिश अपने विश्वासपात्र को मुख्यमंत्री बनाने की थी, ताकि 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले मोदी अपने उन सभी वादों को पूरा कर सकें। लेकिन मुख्यमंत्री के चयन में संघ बीजेपी पर भारी पड़ा है।

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद पार्टी और संगठन दोनों में मोदी की स्थिति पहले के मुकाबले और अधिक मजबूत हुई है। वहीं राम मंदिर आंदोलन का केंद्र रहा उत्तर प्रदेश संघ के लिए बेहद अहम है। मंदिर आंदोलन के दौरान भी बीजेपी को यूपी में उतनी सीटें नहीं मिली थी, जितनी की 2017 में मिली है। इसके अलावा पार्टी ने अपने घोषणापत्र में भी राम मंदिर को जगह दी है।

उत्तर प्रदेश में बीजेपी को मिली शानदारी जीत के बाद पार्टी को मुख्यमंत्री का नाम तय किए जाने में काफी जद्दोजहद का सामना करना पड़ा। पहले मोदी और शाह के करीबी और पूर्वांचल के गाजीपुर से सांसद और मंत्री मनोज सिन्हा का नाम आगे चल रहा था, लेकिन आखिरी वक्त में उनका नाम कट गया।

बीजेपी को विधानसभा में तीन चौथाई से भी अधिक बहुमत मिलने के बाद पार्टी के सामने गठबंधन या किसी अन्य जातीय समीकरणों को साधने की मजबूरी नहीं है। ऐसे में प्रदेश के मुख्यमंत्री के चयन में संघ का पसंद को प्राथमिकता मिलना तय माना जा रहा था।

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वहीं यूपी चुनाव के बाद पार्टी और संगठन में मजबूत हुए अमित शाह के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाने की होगी। उत्तर प्रदेश में बीजेपी को मिली अभूतपूर्व जीत ने पार्टी और संगठन दोनों में मोदी और शाह की पकड़ को पुख्ता कर दिया है, जिस पर दिल्ली और बिहार की चुनाव में मिली हार के बाद सवाल उठने लगे थे।

इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश मोदी के लिहाज से इसलिए भी अहम है कि अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी की वापसी का रास्ता भी लखनऊ से होकर ही गुजरेगा। मोदी प्रदेश की चुनाव रैलियों में यह बार-बार दोहराते रहे हैं कि राज्य और प्रदेश में अलग-अगल सरकार होने की वजह से उत्तर प्रदेश के विकास में बाधा आती है।

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अगले आम चुनाव में मोदी के पास बचाव का कोई तर्क नहीं होगा, क्योंकि लोकसभा में प्रदेश की 80 सीटों में से 73 सीटें और अब विधानसभा की 403 सीटों में से एनडीए को 325 सीटें मिली हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मोदी ही पार्टी का प्रमुख चेहरा थे, ऐसे में अगले लोकसभा चुनाव के साथ-साथ प्रदेश में जनता चुनावी वादों को पूरा किए जाने की उम्मीद मोदी से ही लगाएगी।

मोदी ने चुनाव के दौरान कई अहम वादे किए हैं, जिसे पूरा किया जाना उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की प्राथमिकता में होगा। वहीं राम मंदिर जैसै मुद्दे को पार्टी के घोषणापत्र में जगह मिलने के बाद संघ की भूमिका और ज्यादा प्रबल हो गई है। पार्टी के लिए संघ और मोदी की पसंद के बीच तालमेल बिठाने की चुनौती थी, जिसमें संघ बीजेपी पर भारी पड़ा है।

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