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#BadaSawaal : क्या अदालत के फैसले से अयोध्या मामले की सुनवाई में तेजी आएगी?

सुप्रीम कोर्ट ने 'मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है या नहीं' के बारे में कोर्ट के 1994 के फैसले को फिर से विचार के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने से गुरुवार को इनकार कर दिया।

Updated on: 27 Sep 2018, 05:52 PM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद (अयोध्या केस) मामले को बड़ी संवैधानिक बेंच के पास भेजे जाने की याचिका खारिज कर दी है और निर्णय लिया कि नई गठित तीन सदस्यीय बेंच 29 अक्टूबर से इस मामले की सुनवाई करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने 'मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है या नहीं' के बारे में कोर्ट के 1994 के फैसले को फिर से विचार के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने से गुरुवार को इनकार कर दिया. जस्टिस अशोक भूषण ने खुद और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की ओर से फैसले को पढ़ते हुए कहा, 'मामले को संवैधानिक पीठ के पास भेजे जाने का कोई मामला नहीं बनता.' हालांकि जस्टिस अब्दुल नजीर ने मामले को बड़ी संवैधानिक पीठ के पास भेजे जाने की पैरवी की. तो क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अयोध्या मामले की सुनवाई में तेजी आएगी?

इसी मुद्दे पर आज आपके लोकप्रिय चैनल न्यूज नेशन पर शाम पांच बजे खास शो 'बड़ा सवाल' में बहस होगी. इस बहस में आप भी ट्विटर और फेसबुक के जरिए हिस्सा लेकर एंकर अजय कुमार और मेहमानों से अपने सवाल पूछ सकते हैं.

इस मुद्दे पर चर्चा के लिए आज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सांसद साक्षी महाराज, पूर्व सांसद और धार्मिक नेता राम विलास वेदांती, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना रशीदी फिरंगी मेहली, मुस्लिम स्कॉलर वसीम गाजी, मौलाना अथर हुसन देहलवी, मौलान अतिक उर रहमान, धर्मगुरु यति नरसिंहानंद सरस्वती, बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुदेश वर्मा और समाजवादी पार्टी के नेता जफर अमीन जुड़ेंगे.

सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच अयोध्या मामले में 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई कर रही थी. कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर अपने फैसले में जमीन को तीन हिस्से में बांट दिया था.

कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लल्ला में बराबर-बराबर बांट दिया जाये.

जस्टिस अशोक भूषण ने अपनी और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा कि मौजूदा मामले में 1994 का फैसला प्रासंगिक नहीं है क्योंकि उक्त निर्णय भूमि अधिग्रहण के संबंध में सुनाया गया था.

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इस विवादास्पद मुद्दे पर कोर्ट के फैसले के बाद और भी कई सवाल उठने लगे हैं कि क्या चुनाव से पहले अयोध्या विवाद सुलझ जाएगा या जमीन अधिग्रहण पर कोर्ट के फैसले के क्या मायने हैं?