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'निजता का अधिकार संपूर्ण नहीं' अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में रखा पक्ष

निजता के अधिकार पर याचिकाकर्ताओं की दलील पूरी होने के बाद अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संवैधानिक पीठ के सामने सरकार का पक्ष रखा है।

Updated on: 26 Jul 2017, 02:17 PM

नई दिल्ली:

निजता के अधिकार पर याचिकाकर्ताओं की दलील पूरी होने के बाद अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संवैधानिक पीठ के सामने सरकार का पक्ष रखा है।

सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने दलील दी, 'संविधान में निजता के अधिकार को भी मूल अधिकार का दर्जा दिया जा सकता था, पर इसे संविधान निर्माताओं ने जान बूझकर छोड़ दिया।

उन्होंने कहा, 'इसलिए आर्टिकल 21 के तहत जीने या स्वतन्त्रता का अधिकार भी अधिकार नही है, अगर यह सम्पूर्ण अधिकार होता तो फांसी की सज़ा का प्रावधान नहीं होता। यह अपने आप में मूल सिद्धांत है।' 

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अटॉर्नी जनरल ने कहा कि, 'बिना कानून स्थापित तरीकों को अमल में लाए किसी व्यक्ति से ज़मीन, सम्पति और जिंदगी नहीं ली जा सकती है। लेकिन पर कानून सम्मत तरीकों से ऐसा किया जा सकता हैं। ऐसे में यह अधिकार सम्पूर्ण अधिकार नहीं हैं, इन अधिकार पर प्रतिबन्ध लागू होते हैं।

वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, 'वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट भी यह तस्दीक करती है कि हर विकासशील देश में आधार कार्ड जैसी योजना होनी चाहिये। कोई शख्स यह दावा नहीं कर सकता कि उसके बायोमेट्रिक रिकॉर्ड लेने से मूल अधिकार का हनन हो रहा है।'

सरकार की ओर से दलील रखते हुए अटॉर्नी जनरल ने आगे सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संवैधानिक पीठ के सामने कहा, 'इस देश में करोड़ो लोग शहरों में फुटपाथ और झुग्गी में रहने को मजबूर है। आधार जैसी योजना उन्हें भोजन, शरण जैसे बुनियादी अधिकारों को दिलाने के लिए लाई गई है ताकि उनका जीवन स्तर सुधर सके। महज कुछ लोगों के निजता के अधिकार की दुहाई देने से (विरोध करने से) एक बड़ी आबादी को उनकी बुनियादी जरूरतों से वंचित नही किया जा सकता है।'

हालांकि बीच में ही अटॉर्नी जनरल की दलीलों को रोकते हुए बेंच के सदस्य जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'यह दलील सही नहीं कि प्राइवेसी महज सम्भ्रांत (उच्च वर्ग) की चिंता का विषय है, यह बड़े वर्ग पर एक समान लागू होता है।' 

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