गुजरात दंगे के बाद जब लालकृष्ण आडवाणी ने किया था मोदी का बचाव, अटल बिहारी वाजपेयी ने कही थी ये बात
करीब 37 साल पुरानी बीजेपी में आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबकुछ हैं, लेकिन कभी कुछ साल पहले अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी हुआ करते थे।
नई दिल्ली:
देश के पूर्व प्रधामनंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपनी जिंदगी और मौत से हर पर पल लड़ रहे है। वाजपेयी की हालत गुरुवार से नाजुक बनी हुई है और उन्हें एम्स में जीवन रक्षक प्रणाली (लाइफ सपोर्ट सिस्टम) पर रखा गया है। उनकी हालत में बुधवार शाम से कोई सुधार नहीं है। वाजपेयी एक ऐसे प्रधानमंत्री रहे हैं जिनके हर कोई मुरीद है पक्ष विपक्ष हर कोई उनसे उतना ही लगाव रखता है। अपने सरल और प्रभावी व्यक्तित्व की वजह से हर किसी से पसंदीदा नेता रहे हैं। उनकी पहचान एक कुशल राजनीतिज्ञ, प्रशासक, भाषाविद, कवि, पत्रकार और लेखक के रूप में है।
करीब 37 साल पुरानी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबकुछ हैं, लेकिन कभी कुछ साल पहले अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी हुआ करते थे।
अटल बिहारी वाजपेयी 1996 में महज कुछ दिनों के लिए प्रधानमंत्री पद पर रहे और फिर 1998 से 2004 तक प्रधानमंत्री रहे। खराब स्वास्थ्य के कारण वो करीब एक दशक से ज्यादा समय से सक्रिय राजनीति से दूर हैं। इसके बाद वाजपेयी अपनी बढ़ती उम्र के साथ एकांतवास में चले गये, वहीं आडवाणी बीजेपी में मोदी युग की शुरुआत के साथ भारतीय जनता पार्टी की नई राजनीतिक पारी शुरू हुई।
साल 1984 में बीजेपी की करारी शिकस्त के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की तरफ से नरेन्द्र मोदी को पार्टी में भेजा गया। आडवाणी ने गुजरात में पार्टी कार्य की जिम्मेदारी मोदी को सौंपी। उनका कद बढ़ता गया। पार्टी ने आडवाणी के राम रथयात्रा की जिम्मेदारी गुजरात में मोदी को दी। सितंबर 1990 में आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन के समर्थन में अयोध्या के लिए 'रथयात्रा' शुरू की। रथयात्रा में मोदी आडवाणी की 'सारथी' की भूमिका में थे।
आडवाणी ने 1995 में राष्ट्रीय मंत्री के रूप में उन्हें पांच प्रमुख राज्यों में पार्टी संगठन का काम दिया गया था। जिसे उन्होंने बखुबी निभाया। 1998 में उन्हें राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) का उत्तरदायित्व दिया गया। बीजेपी ने अक्टूबर 2001 में केशुभाई पटेल को हटाकर गुजरात के मुख्यमन्त्री पद की कमान नरेंद्र मोदी को सौंप दी।
मोदी के मुख्यमंत्री बने हुए एक साल भी नहीं हुए थे की गुजरात सांप्रदायिक दंगों से झुलस उठा। करीब 1000 लोगों की मौत हो गई। मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सवालों के घेरे में थे। सामाजिक संगठन, विपक्ष के साथ बीजेपी के भीतर मोदी के इस्तीफे की मांग उठने लगी। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मोदी का इस्तीफा चाहते थे। तब आडवाणी ने मोदी का बचाव किया और वाजपयेपी को अपनी बात मनवाया।
लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी किताब 'माई कंट्री माई लाइफ' में भी इसका जिक्र किया है। आडवाणी ने कहा कि जिन दो मुद्दों पर वाजपेयी और मुझमें एक राय नहीं थी, उसमें पहला अयोध्या का मुद्दा था जिसपर आखिर में वाजपेयी ने पार्टी की राय को माना और दूसरा मामला था गुजरात दंगों पर नरेंद्र मोदी के इस्तीफे की मांग।
आडवाणी द्वारा मोदी का बचाव किये जाने के बावजूद वाजपेयी ने उन्हें 'राजधर्म' का पाठ पढ़ाया। गुजरात में दंगों के बाद 4 अप्रैल 2002 को अहमदाबाद पहुंचे वाजपेयी ने मोदी को दिये संदेश में कहा, 'मुख्यमंत्री के लिए एक ही संदेश है कि वे राजधर्म का पालन करें। राजधर्म- यह शब्द काफी सार्थक है। मैं उसी का पालन करने का प्रयास कर रहा हूं। राजा के लिए प्रजा-प्रजा में भेदभाव नहीं हो सकता।' इस मौके पर मोदी मौजूद थे।
2004 में भारतीय जनता पार्टी की हार के साथ अटल बिहार वाजपेयी ने मुख्य धारा की राजनीति से अपने आप को अलग कर लिया। अब बीजेपी में सबसे वयोवृद्ध और प्रधानमंत्री बनने के योग्य आडवाणी थे। 2009 के चुनाव में आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया, लेकिन पार्टी को हार मिली। कांग्रेस सत्ता में आई। गुजरात में मोदी लगातार मजबूत हो रहे थे इसलिए वो अब दिल्ली आने के लिए अपना पक्का इरादा बना चुके थे। जो आडवाणी के लिए प्रधानमंत्री बनने की राह में सबसे बड़ी बाधा बने।
हालांकि फिर भी पीएम मोदी आडवाणी और वाजपेयी के विजन को याद करना नहीं भूलते हैं। कश्मीर समस्या हो या केंद्र सरकार की योजनाओं का नाम वाजपेयी का विजन उसमें जरूर दिखता है।
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