अटल बिहारी वाजपेयी का मतलब... प्रेरणा, ईमानदारी, शांति, विश्वास, सम्मान और शौर्य
अटल बिहारी वाजपेयी का नाम राजनीति में किसी एक व्यक्ति विशेष का नाम नहीं बल्कि यह नाम है, एक संपूर्ण विचारधारा का।
नई दिल्ली:
अटल बिहारी वाजपेयी का नाम राजनीति में किसी एक व्यक्ति विशेष का नाम नहीं बल्कि यह नाम है, एक संपूर्ण विचारधारा का। वह विचारधारा जिसमें विश्वास है, सत्य है, शिष्टाचार है, राष्ट्रप्रेम है और अपने विरोधियों के लिए सम्मान भी है। राजनीतिक जमीन पर अटल ने जब-जब मोहब्बत का राग छेड़ा तो क्या अपने और क्या राजनीतिक विरोधी सभी ने सिर्फ शांत होकर उनको सुना। अटल बिहारी वाजपेयी के किरदार में प्रेरणा, ईमानदारी, शांति, विश्वास, सम्मान, शौर्य, स्वाभिमान सभी कुछ समाया हुआ था।
अटल जी एक ऐसे व्यक्ति थे, जो राजनीति नहीं बल्कि 'राष्ट्रनीति' में विश्वास रखते थे। उन्होंने एक बार कहा था कि आपका भाषण आपके ज्ञान को उजागर करता है तो आपका मौन आपके विवेक को दर्शाता है। उनकी वाणी सदैव विवेक और संयम का ध्यान रखती थी। बारीक से बारीक बात भी वह हंसी की फुलझड़ियों के बीच कह देते थे।
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अटल के भाषणों का ऐसा जादू रहा कि लोग उन्हें सुनते ही रहना चाहते थे। फिर बात संयुक्त राष्ट्र में पहली बार हिंदी में भाषण देने की हो या शहीद सैनिकों के शवों को घर भेजने की, अटल ने हमेशा जनता की नब्ज़ टटोली।
अटल बिहारी वाजपेयी एक कवि और राजनेता दोनों ही थे। राजनीति में माना जाता है कि दिल में जो कुछ भी हो, किसी को पता नहीं चलना चाहिए और कविता कहती है कि दिल में कहीं भी थोड़ी फड़फड़ाहट हो तो उसकी खबर पूरी दुनिया को होनी चाहिए। अटल जी ने दोनों ही किरदार को बखूबी निभाया।
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आज राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन हो या 2019 के लिए बन रहा 'विपक्ष का गठबंधन', दोनों ही पक्ष के राजनीतिक दलों को अटल के 'गठबंधन धर्म' से सीख लेनी चाहिए। अटल जब तक राजनीति में सक्रिय रहे तब तक 'राजधर्म' का पालन किया। वह मानते थे कि 'राजधर्म' का पालन किए बिना राजकाज नहीं चल सकता।
वह पूरी दुनिया में भारत का सिर ऊंचा करने और 21वीं सदी में भारत को विश्वगुरु बनाने का ख्वाब देखते थे। अटल बिहारी वाजपेयी ने न सिर्फ देश की विविध संस्कृतियों के बारे अलग-अलग मंचों पर बताया बल्कि उस विविध संस्कृति को जिया भी।
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देश और दुनिया में प्रेम बना रहे, यह उनकी सबसे बड़ी इच्छा थी। अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में विदेश मंत्री के नाते भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए हिंदी में भाषण दिया तो अंत में ‘जय जगत’ बोला। 'जय जगत' भारत के ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की परंपरा को उजागर करता है।
आज देश में जब हिन्दुत्व को लेकर सभी जगह अलग-अलग परिभाषा गढ़ी जा रही है तो ऐसे वक्त में अटल बिहारी को याद रखना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि अटल 'राजनीतिक विरोधाभास' और 'वैचारिक विरोधाभास' वाले देश में उस प्रकाश की तरह थे, जिन्होंने हिन्दू होते हुए भी सभी धर्मों को रोशनी देने का काम किया। उनके लिए सभी धर्म बराबर रूप से प्रिय थे।
16 मई 1996 को वो पहली बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से 13 दिन बाद 31 मई 1996 को उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। इसके बाद 'राजधर्म' ही था कि वह इस्तीफा देने के बाद 1998 तक लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे।
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एक बार फिर 1998 में आम चुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ एक बार फिर जीत कर वह प्रधानमंत्री बने, लेकिन एआईएडीएमके द्वारा गठबंधन से समर्थन वापस ले लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए।
1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और उनकी सरकार को बहुमत हासिल हुआ। वाजपेयी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली। अटल अपने पूरे राजनीतिक करियर में नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं। 1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे।
अटल के लिए जितने महत्वपूर्ण बीजेपी के सदस्य थे, उतने ही जरूरी गैर बीजेपी दल के सदस्य भी थे। गैर-बीजेपी मुख्यमंत्रियों के साथ अटलजी लगातार सम्पर्क बनाए रखते थे। कई बार वह देर शाम पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु से एक-एक घंटे तक फोन पर बातचीत करते थे।
मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अटलजी को 'गुरुजी' कहकर पुकारते थे। जेएच पटेल, मुलायम सिंह यादव आदि नेताओं के साथ अटलजी के अच्छे संबंध रहे।
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अटल बिहारी वाजपेयी की आखिर 'मौत से ठन गई' और उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन उनके शब्दों में ही कहें तो...
"मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं।"
'अटल' आज-कल में खत्म होने वाला सिलसिला नहीं है, बल्कि वह सदियों तक हम सबके ज़हन में जिंदा रहने वाला नाम है। अटल बिहारी वाजपेयी का संपूर्ण व्यक्तित्व शिखर पुरुष के रूप में दर्ज है।
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