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Amrita Pritam birthday: अमृता, साहिर और इमरोज, ‘खामोश-इश्क़’ की ऐसी कहानी जिसे बस दिल वाले समझ सकते हैं

भारत की सबसे मशहूर कवियत्रियों में से एक अमृता प्रितम का आज जन्दिन है। वही अमृता जिनके प्रेम को सरहदों, जातियों, मजहबों या वक्त के दायरे में नहीं बांधा जा सकता।

Updated on: 31 Aug 2018, 08:16 AM

नई दिल्ली:

भारत की सबसे मशहूर कवियत्रियों में से एक अमृता प्रितम का आज जन्दिन है। वही अमृता जिनके प्रेम को सरहदों, जातियों, मजहबों या वक्त के दायरे में नहीं बांधा जा सकता। लोग कविता लिखते हैं और जिंदगी जीते हैं मगर अमृता जिंदगी लिखती थी और कविता जीती थी। अमृता ने साहिर से प्यार किया और इमरोज ने अमृता से और फिर इन तीनों ने मिलकर इश्क की वह दास्तां लिखी जो अधूरी होती हुई भी पूरी थी। अगर अमृता को साहिर या इमरोज को अमृता मिल गई होती तो मुमकिन था कि इनमें से कोई पूरा जाता लेकिन इस सूरत में इश्क अधूरी रह जाती।

'साहिर मेरा खुला आसमान है और इमरोज मेरे घर की छत, यह बात और है कि छत खुलती आसमान में है।'

ज़रा इस पंक्ति को पढ़ने के साथ समझिएगा भी। इसमें उस इंसान के लिए भी जगह है जिससे अमृता प्यार करती है और उस इंसान के लिए भी जो अमृता से प्यार करता था। इश्क के मायने यही है जो सबको अपना ले वही मोहब्बत है।

31 अगस्त 1919 में गुजरांवाला जो अब पाकिस्तान में है वहां एक ऐसी लड़की का जन्म हुआ जो बाद में 'इश्क' की परिभाषा बन गई। केवल 6 साल की उम्र में
अमृता की शादी व्यापारी प्रीतम सिंह से कर दी गई। हालांकि उनका गौना नहीं हुआ और वे अपने पिता के घर पर ही रहीं।

छोटे-छोटे हाथों ने जब कलम थामा तो मानों इश्क की बरसात हो गई। उन्हें नज्म लिखने का शौक चढ़ा और 16 साल की उम्र में उनकी पहली किताब ‘अमृत लहरें’ प्रकाशित हुई अमृता अपना सारा समय लिखने में बिताने लगी कि तभी उनके पति जिनसे 6 साल की उम्र में शादी हुई थी वह उन्हें अपने साथ विदा कर ससुराल ले गए। छोटी उम्र में शादी जैसी जिम्मेदारी उनको समझ नही आ रही थी। अकेले में अमृता का नज्म लिखने का कारबां जोर पकड़ता चला गया और वो शायरियां लिखने लगीं।

बात 1944 की है जब दिल्ली और लाहोर के बीच स्थित प्रीत नगर में एक मुशायरे का आयोजन हुआ। यही मुशायरा था जहां अमृता की भेंट साहिर से हुई। इश्क कई मुलाकातों का इंतजार नहीं करता सो दोनों में पहली नज़र में प्यार हो गया। वह अलग बात है कि आखों में जो इश्क था वह लफ्जों में ढ़लकर जबान पर नहीं पहुंचे। जब भी मौका मिलता दोनों मिल लेते थे। दोनों घटो खामोश एक-दूसरे के अगल-बगल बैठे रहते। धीरे-धीरे प्यार परवान चढ़ रहा था लेकिन जब 15 अगस्त 1947 में देश के 2 हिस्से हुए तो अमृता से साहिर और साहिर से अमृता भी अलग हो गए।

साहिर लाहौर में ही रह गए और अमृता पति के साथ दिल्ली चली आईं। हालांकि दो मोहब्बत करने वालों के बीच की इस दूरी को खतों ने दूर किया। जिस्म के छुअन से संबंध जरूर बनते हैं मगर वह इश्क हो जरूरी नहीं है। इश्क तो रूह के छुअन से होता है। साहिर और अमृता ने एक-दूसरे के रूह को छू लिया था।

सरहद की दूरिया दोनों के बीच पनपे प्यार को कम न कर सकी और प्यार के पैगामों का ये सिलसिला यूं ही लाहौर और दिल्ली के बीच जारी रहा। दिल्ली आ चुकी अमृता 2 बच्चों की मां बन चुकी थी मगर साहिर के लिए प्यार कभी कम नहीं हुआ। वह साहिर से लगातार संपर्क में रही और यही बात उनके पति पृतम को नगवार गुजरी और रिश्तों में तनाव बढ़ गया। फिर दोनों अलग हो गए।

बंटवारे के बाद साहिर बम्बई के होकर रह गये और अमृता दिल्ली की। दोनों के बीच फिर भी प्यार एक-दूसरे को भेजे ख़तों में महूसस किया जा सकता था। हालांकि यह रिश्ता एक समय के बाद धीमे धीमे खत्म होता गया।

वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन
उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा

लाइफ में इमरोज की एंट्री

साहिर के जाने के बाद अमृता की ज़िंदगी में अभी उनके हिस्से की मोहब्बत बाकी थी। 1958 में उन्हें इमरोज़ मिले। इमरोज़ को उनसे इश्क़ हो गया और इश्क भी ऐसा जिसकी मिसाल लोग आज तक देते हैं।

दोनों एक ही छत के नीचे कई साल तक अलग-अलग कमरों में रहे। इमरोज़ और अमृता के बीच एक ‘खामोश-इश्क़’ था जो उम्र भर चलता रहा। इमरोज जानते थे कि साहिर और अमृता की गहरी दोस्ती है लेकिन फिर भी उनका प्यार कभी अमृता के लिए कम नहीं हुआ। अमृता प्रीतम रात के समय लिखना पसंद था और इसलिए इमरोज लगातार 50 साल तक रात के एक बजे उठ कर उनके लिए चाय बना कर चुपचाप उनके आगे रख देते।

अमृता प्रीतम रात के समय लिखना पसंद था और इसलिए इमरोज लगातार 50 साल तक रात के एक बजे उठ कर उनके लिए चाय बना कर चुपचाप उनके आगे रख देते। जब भी इमरोज कभी अमृता को स्कूटर पर बैठाकर कहीं ले जाते तो वह इमरोज के पीठ पर उंगलियों से कुछ लिखती थी। इमरोज जानते थे वह शब्द 'साहिर' हुआ करता था।

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इमरोज के लिए इश्क एक इबादत जैसी थी। इमरोज़ ने अपने एक लेख में लिखा है मुझे फिर मिलेगी अमृता मे लिखा है कि रिश्ता बांधने से नहीं बंधता। प्रेम का मतलब होता है एक-दूसरे को पूरी तरह जानना, एक-दूसरे के जज़्बात की कद्र करना और एक-दूसरे के लिए फ़ना होने का जज़्बा। उन्होंने इमरोज के लिए लिखा- 

मैं तुझे फिर मिलूंगी
कहां, कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं
की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरुंगी