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एयर इंडिया ने क्रू मेंबर को नहीं दी नौकरी, ट्रांसजेंडर ने राष्ट्रपति से की इच्छामृत्यु की मांग

एक तरफ जहां देश में ट्रांसजेंडर को बराबरी का दर्जा देनी की बातें कही जाती है वहीं इसकी हकीकत कुछ और ही है।

Updated on: 14 Feb 2018, 06:05 PM

नई दिल्ली:

एक तरफ जहां देश में ट्रांसजेंडर को बराबरी का दर्जा देनी की बातें हो रही है वहीं असल में इसकी हकीकत कुछ और ही है।

अनुभव और क्वालिफिकेशन के बावजूद एक ट्रांसजेंडर को उम्मीदों की उड़ान न मिलने का मामला सामने आया है। एयरलाइन्स कंपनी एयर इंडिया ने शानवी को क्रू मेंबर की नौकरी देने से इंकार कर दिया सिर्फ इसलिए क्योंकि वो ट्रांसजेंडर है।

इस बात से हताश होकर शानवी ने राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को पत्र लिख इच्छामृत्यु की दरख्वास्त की है। दरअसल, शानवी ने एयर इंडिया में क्रू मेंबर की नौकरी के लिए आवेदन दिया था लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली।

शानवी ने कहा, 'एयर इंडिया ने कहा कई उनके पास ट्रांस-महिला की श्रेणी नहीं है पर, क्या मुझे टैक्स पर डिस्काउंट मिलता है ? मुझे वो चुकाना पड़ता है। मेरे पास क्वालिफिकेशन और अनुभव दोनों है।

आगे उन्होंने कहा, 'मैंने किसी और एयरलाइन में ट्राई नहीं किया था। अगर सरकारी एयरलाइन में कोई श्रेणी नहीं है तो हम प्राइवेट एयरलाइन से क्या उम्मीद कर सकते है। राष्ट्रपति के हाथों में ही मेरी मृत्यु और जिंदगी है।'

एयर इंडिया के नौकरी देने से इनकार करने के बाद शानवी पोन्नुस्वामी ने राष्ट्रपति को इच्छामृत्यु का पत्र लिखा था। गौरतलब है कि एयरलाइन कंपनी के नौकरी देने से मना करने के बाद शानवी ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट का रुख कर कंपनी के फैसले को चुनौती दी थी। 

सुप्रीम कोर्ट ने एयर इंडिया और नागर विमानन मंत्रालय से चार हफ्ते में जवाब देने के लिए कहा कहा था।

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शानवी ने न्यूज नेशन से की थी बातचीत

शानवी ने न्यूज़ नेशन को बताया कि उन्होंने एयर इंडिया में केबिन क्रू पद के लिए आवेदन किया था। चार बार परीक्षा दी लेकिन टेस्ट में अच्छा करने के बावजूद उन्हें शॉर्टलिस्ट नहीं किया गया।

बाद में उन्हें पता चला कि ट्रांसजेंडर होने के चलते उन्हें ये नौकरी नहीं मिली है क्योंकि एयर इंडिया में ट्रांसजेंडर के लिए नौकरी का प्रावधान नहीं है। इसके बाद उसने नागरिक उड्डयन मंत्रालय के दफ़्तर से सम्पर्क किया लेकिन एयर इंडिया के सीएमडी से मुलाकात नही हो सकी।

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क्या था सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला ?

साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने औपचारिक तौर पर ट्रांसजेंडर्स को थर्ड जेंडर के तौर पर मान्यता दी थी। कोर्ट ने कहा था कि शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेते वक्त या नौकरी देते वक्त ट्रांसजेंडर्स की पहचान थर्ड जेंडर के रूप में की जाए। इसके लिए बाकायदा थर्ड जेंडर की एक केटेगरी बनाई जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किन्नरों या तीसरे लिंग की पहचान के लिए कोई कानून न होने की वजह से उनके साथ शिक्षा या जॉब के क्षेत्र में भेदभाव नहीं किया जा सकता और उन्हें ओबीसी की तर्ज पर शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण मिलना चाहिए।

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