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आजादी के 70 साल, लेकिन इन समस्याओं ने अब भी देश को बना रखा है गुलाम

हमारा देश इस साल 71 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। अंग्रजों की गुलामी की बेड़ी को तोड़ने में हमें 300 सालों से भी ज्यादा का वक्त लगा तब जाकर 15 अगस्त 1947 को हम आजादी के सूर्योदय को देख पाए।

Updated on: 09 Aug 2017, 06:23 PM

highlights

  • आजादी के 70 साल बाद भी देश को अशिक्षा, भूखमरी, गरीबी और आतंकवाद से नहीं मिली है आजादी
  • इस साल देश में मनाया जाएगा 71 वां स्वतंत्रता दिवस

नई दिल्ली:

हमारा देश इस साल 71 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। अंग्रजों की गुलामी की बेड़ी को तोड़ने में हमें 300 सालों से भी ज्यादा का वक्त लगा तब जाकर 15 अगस्त 1947 को हम
आजादी के सूर्योदय को देख पाए। इस स्वतंत्रता को पाने के लिए हमने एक तरफ भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, तात्या टोपे जैसे वीरों की शहादत दी तो वहीं दूसरी तरफ हमें लाला
लाजपत राय और बाल गंगाधर तिलक जैसे महान आत्माओं को भी हमेशा के लिए खोना पड़ा।

हमें आज से 70 साल पहले जीने की आजादी तो मिल गई लेकिन इतने साल बीतने के बावजूद भी हमें गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा, बेरोजगारी, आतंकवाद, जैसी मौलिक समस्याओं से स्वतंत्रता नहीं मिली है।

देश की सच्चाई यही है कि एक तरफ तो हम मंगल पर पहुंच गए हैं लेकिन दूसरी तरफ आज भी हमारे देश में कई लोग भूखमरी की वजह से रोज दम तोड़ देते हैं। आजादी के इस मौके पर देश की उन समस्याओं से हम आपको रू-बरू कराते हैं जिससे आजादी के लिए हमें अभी लगातार लड़ने की जरूरत है।

गरीबी - वर्तमान में भारत दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश है। हमारे देश की जीडीपी करीब-करीब 8 फीसदी के आसपास पहुंच चुकी है। लेकिन दूसरी सच्चाई ये भी है कि पूरे विश्व में जितनी गरीबी है उसका तीसरा हिस्सा सिर्फ भारत में है।

2010 के विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक अंतर्राष्ट्रीय मानक के हिसाब से भारत की 32.7 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे अपना गुजर बसर करती है। योजना आयोग जो अब नीति आयोग में बदल चुका है उसके 2009-10 के आंकड़ों के मुताबिक पांच साल में देश में गरीबी 37.2 फीसदी से घटकर 29.8 फीसदी पर आ गई है। हालांकि योजना आयोग के इन आकंड़ों पर विवाद भी हुए थे और गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने के तय पैमाने पर भी सवाल उठे थे।

हमारे देश की वर्तमान स्थिति ये है कि आजादी के वक्त 240 रुपये से कम सालाना कमाने वाले व्यक्ति को गरीबी रेखा के नीचे रखा गया था लेकिन 70 सालों बाद शहरों में 859 रुपये महीना कमाने वाले लोग गरीबी नहीं रहे।

विश्व बैंक के साल 2015 के आंकड़ों के मुताबिक देश के कुल आबादी के 12.4 फीसदी लोग अभी भी गरीबी रेखा से नीचे जीने पर मजबूर हैं। आरबीआई के साल 2015 के आंकड़ों के मुताबिक देश में गरीबी से सबसे ज्यादा पीड़ित राज्य छत्तीसगढ़ है। छत्तीसगढ़ में करीब 40 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन बिताने पर मजबूर हैं।

भुखमरी - हमारे देश में भुखमरी एक बड़ी समस्या है। जहां कुछ लोग आए दिन खाना बर्बाद करते हैं वहीं कुछ लोग कई दिनों तक खाना नहीं मिलने के कारण समय से पहले काल के गाल में समा जाते हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ के साल 2014-15 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 19 करोड़ 40 लाख लोग भुखमरी के शिकार हैं जो विश्व में किसी भी दूसरे देश के मुकाबले सबसे ज्यादा है।

एफएओ के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2009 में 23 करोड़ 10 लाख लोग भुखमरी का सामना कर रहे थे। हमारे देश में गरीबी हटाने और लोगों को भोजन मुहैया कराए जाने के लिए कई सरकारी कार्यक्रमों के बाद भी भुखमरी और कुपोषण सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है।

इंडियन इन्सटिट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल 23 करोड़ टन दाल, 12 करोड़ टन फल और 21 टन सब्जियां वितरण प्रणाली में गड़बड़ी के चलते बर्बाद हो जाती हैं।1990 से 2015 के दौरान भारत में भी भुखमरी में गिरावट आई है। 1990-92 में भारत में खाने से वंचित लोगों की संख्या 21.1 करोड़ थी जो कि 2014-15 में घटकर 19.46 करोड़ हो गई है।

शिक्षा की कमी - समाज में शिक्षा की कमी को सभी समस्याओं का जड़ माना जाता है। यही वजह है कि हमारे देश में भी शिक्षा की कमी की वजह से गरीबी, बेरोजगारी जैसी मूलभूत दिक्कतें अपना जड़ जमा चुकी है।

यूनिस्कों की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 2 करोड़ 87 लाख ऐसे एडल्ट हैं जो पूरी तरह अशिक्षित हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक पुरुषों की साक्षरता 82.14% और 65.46% महिलाओं की साक्षरता थी। कम महिला साक्षरता भी लिखने और पढ़ने की गतिविधियों के लिए महिलाओं के पुरुषों पर निर्भर रहने के लिये जिम्मेदार है। अगर देश में साक्षरता दर की बात करें तो केरल में जहां सबसे ज्यादा 93.91 फीसदी लोग साक्षर हैं वहीं इस मामले में सबसे पिछड़ा हुआ राज्य बिहार है। बिहार में सारक्षरता दर पूरे देश में सबसे कम 63.82 फीसदी है।

आतंकवाद - आज हमारे देश की आतंरिक और बाहरी सुरक्षा के लिए आतंकवाद सबसे बड़ी समस्या है। वर्तमान में भारत ही नहीं विश्व का लगभग हर देश आतंकवाद के कैंसर से पीड़ित हो चुका है।

आए दिन किसी ना किसी देश में आतंकवादी घटनाएं होती रहती है जिसमें सिर्फ और सिर्फ निर्दोष लोग मारे जाते हैं। चाहे वो अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुआ आतंकी हमला हो या फिर मुंबई में 26 नवंबर 2018 को हुए हमला। इन आतंकी हमलों से देश ही पूरी दुनिया दहल उठी थी। इसी तरह इराकी आतंकी संगठन आईएसआईएस ने पूरे इराक को बर्बाद कर दिया और वहां कब्जा तक जमा लिया।

भारत में आतंकवाद की शुरूआत 70 के दशक में उस वक्त हुई जब भारत की पहल पर पाकिस्तान के एक हिस्से को अलग कर बांग्लादेश का निर्माण किया गया। जब 1971 में भारत से हार के बाद पाकिस्तान को ये महसूस हुआ कि वो अब सीधे युद्ध में नहीं जीत सकता तो उसने देश को अस्थिर करने और जम्मू-कश्मीर पर कब्जे के लिए आतंकवाद का सहारा लेना शुरू कर दिया। उसी वक्त से हमारा देश आतंकवाद से पीड़ित हो गया।

भारत में आतंवादी हमले की लिस्ट काफी लंबी है लेकिन 1993 का बम धमाका, 2003 झावेरी बम धमाका, 2001 में संसद भवन हमला, 2005 में दिल्ली के सरोजनी नगर में हुआ धमाका, 2005 में अयोध्या में आतंकी हमला, 2008 में मुंबई आतंकी हमला, 2010 में वाराणसी में बम धमाका, पंजाब में खलिस्तानी आतंकियों के हमले, नागालैंड और असम में सिलसिलेवार आतंकी हमले।

ये ऐसी लिस्ट है जो दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। भारत के लगातार अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इसे उठाने की वजह से अब आतंकवाद को दुनिया के लिए बड़ा खतरा माना जाने लगा है। भारत में सबसे ज्यादा आतंकी हमले पड़ोसी देश पाकिस्तान प्रायोजित रहे हैं।

बेरोजगारी - आज देश में सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है लगातार बढ़ रही जनसंख्या के लिए रोजगार मुहैया कराना। भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से बढ़ने के लिए बेहद जरूरी है कि देश के हर युवा को उसकी क्षमता के मुताबिक रोजगार मिले।

जबतक लोगों को रोजगार नहीं मिलेगा तब तक लोगों के खरीदने की क्षमता नहीं बढ़ेगी। अगर खरीदने की क्षमता नहीं बढ़ी तो इसका सीधा असर देश में होने वाले उत्पादन और मांग पर पड़ेगा।

यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017-18 में देश में बेरोजगारी दर में और इजाफा हो सकता है। 2015-16 में बेरोजगारी दर पिछले पांच साल के सबसे उच्च स्तर पर पहुंच चुका है। 2012-13 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 15 से 29 साल के युवाओं की बेरोजगारी दर 13.3 फीसदी है।

हमारे देश के लिए चिंता की बात ये है कि देश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी 20 से 24 साल के लोग हैं। देश में करीब 25 फीसदी ऐसे लोगों इस उम्र के जिनके पास कोई काम-धंधा नहीं है। देश में 25 से 29 की उम्र के ऐसे 17 फीसदी युवा हैं जो पूरी तरह बेरोजगार हैं। वहीं 20 साल से ज्यादा उम्र के करीब 14 करोड़ 30 लाख ऐसे युवा है जो नौकरी की तलाश में जुटे हुए हैं। आकंड़ों के मुताबिक वर्तमान में हमारे देश में करीब 12 करोड़ लोग पूरी तरह बेरोजगार हैं।

ये देश की कुछ ऐसी मूल समस्या है जिसका सामना हम आजादी मिलने के 70 साल बाद भी कर रहे हैं। सच्ची आजादी के मायने उसी दिन सिद्ध होंगे जिस दिन हम और हमारा देश इन मूलभूत समस्याओं से आजादी पा लेगा तब जाकर हम सही मायनों में आजाद हो पाएंगे।